नई दिल्ली। मादक पदार्थों की तस्करी की रोकथाम पर बिम्सटेक सम्मेलन कल नई दिल्ली में संपन्न हुआ। इसने दो दिनों के व्यापक विचार-विमर्श के बाद भागीदार राष्ट्रों को अपने विचार साझा करने और इस क्षेत्र में मादक पदार्थों के खतरे से निपटने के लिए आवश्यक सर्वोत्तम प्रथाओं का आदान-प्रदान करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान किया।
विश्व के दो प्रमुख अफीम उत्पादक क्षेत्र- गोल्डन क्रीसेंट और गोल्डन ट्राइंगल- की भौगोलिक निकटता के कारण बिम्सटेक के सभी भागीदार देशों के लिए स्थिति काफी जोखिमपूर्ण रहती है। भारत की स्थिति कहीं अधिक चिंताजनक है क्योंकि हम गोल्डन क्रीसेंट और गोल्डन ट्राइंगल के बीच स्थित हैं। पिछले कुछ वर्षों से अफगानिस्तान में अफीम की बम्पर फसल होने के कारण सभी बिम्सटेक देशों में हेरोइन की आपूर्ति में वृद्धि हुई है। कुछ बिम्सटेक देशों में बड़ी तादाद में मेथमफेटामाइन विनिर्माण संयंत्रों का होना भी चिंता की बात है। इन संयंत्रों में बड़ी मात्रा में मेथमफेटामाइन का विनिर्माण होता है जिसकी तस्करी सभी बिम्सटेक देशों में की जाती है।
समुद्री मार्ग से मादक पदार्थों की तस्करी भी चिंता की बात है क्योंकि वह सभी बिम्सटेक देशों को प्रभावित करती है। हालांकि बंगाल की खाड़ी के रास्ते अरबों डॉलर का व्यापार होता है, लेकिन मादक पदार्थों के तस्कर इस विशाल नेटवर्क का उपयोग भी अपने फायदे के लिए करते हैं। हाल में बंगाल की खाड़ी में दो जहाजों से भारतीय अधिकारियों द्वारा 371 किलोग्राम और 1156 किलोग्राम मेथमफेटामाइन की बरामदगी हुई जो इसके उल्लेखनीय उदाहरण हैं। इसके अलावा बिम्सटेक क्षेत्र औषधि निर्माण एवं व्यापार के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। यह चीन से काफी करीब भी है जो औषधि क्षेत्र का एक प्रमुख बाजार है। ऐसे में बिम्सटेक क्षेत्र फार्मास्युटिकल ड्रग्स के डायवर्सन एवं तस्करी के लिए काफी संवेदनशील बन गया है।
प्रौद्योगिकी के विकास ने मादक पदार्थों से संबंधित कानूनों की प्रवर्तन एजेंसियों के लिए एक चुनौती पैदा की है। डार्कनेट का उपयोग मादक पदार्थों की तस्करी में तकनीकी के इस्तेमाल का एक खराब पहलू है। डार्कनेट और कूरियर/डाक डिलिवरी के संयोजन ने नार्को/साइकोट्रॉपिक पदार्थों की तस्करी को अधिक सुगम बना दिया है। भारतीय उपमहाद्वीप और बिम्सटेक देशों में इस प्रकार की समस्याएं आम हैं। इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए इस सम्मेलन के विभिन्न सत्र तैयार किए गए थे।
सम्मेलन के पहले दिन यानी 13.02.2020 को दो विषयगत सत्रों का आयोजन हुआ। पहला सत्र समुद्री मार्ग के जरिए मादक पदार्थों की तस्करी के बारे में बिम्सटेक देशों के अनुभवों को साझा करने पर केंद्रित था। सत्र की अध्यक्षता भारतीय तटरक्षक बल के महानिदेशक, पीटीएम, टीएम श्री कृष्णस्वामी नटराजन ने किया। जबकि सह-अध्यक्षता श्रीलंका और थाईलैंड के प्रतिनिधियों द्वारा की गई। सत्र के दौरान में सभी सदस्य देशों द्वारा विस्तृत प्रस्तुतियां दी गईं। सभी प्रस्तुतियों में आम बात यह थी कि बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में हेरोइन की तस्करी बढ़ गई है। अध्यक्ष और सह-अध्यक्षों ने समुद्री मार्गों के जरिए मेथामफेटामाइन और केटामाइन की तस्करी के बारे में चिंता जताई। तटरक्षक बलों द्वारा हाल में की गई मादक पदार्थों की बरामदगी ने सदस्य देशों के बीच बेहतर समन्वय एवं सूचना साझा करने के प्रति सचेत किया है।
पहले दिन का दूसरा विषयगत सत्र इस क्षेत्र में मेथामफेटामाइन के उत्पादन और तस्करी पर केंद्रित था। इसकी अध्यक्षता भारत के राजस्व आसूचना निदेशालय के महानिदेशक श्री बालेश कुमार ने की। सह-अध्यक्षता म्यांमार के श्री ये विन औंग और पुलिस मेजर सूरिया सिंघकामोल ने की। सत्र के दौरान होने वाली चर्चा मुख्य तौर पर इस क्षेत्र में मेथमफेटामाइन के विनिर्माण एवं तस्करी की समस्या से निपटने के लिए क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता पर केंद्रित थी। अधिकतर सदस्यों ने अफगानिस्तान और ईरान के पादप आधारित मेथमफेटामाइन के प्रमुख केंद्र के तौर पर उभरने पर भी अपने साझा किए।
सम्मेलन के अंतिम दिन की शुरुआत ड्रग ट्रैफिकिंग एंड डार्कनेट – कूरियर एंड पोस्टल इंटरडिक्शन्स पर आयोजित एक तकनीकी सत्र के साथ हुई। इस सत्र के वक्ताओं में युनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (यूएनओडीसी) के प्रतिनिधि एवं प्रमुख भारतीय टेक्नोक्रेट्स शामिल थे। दक्षिण एशिया में यूएनओडीसी के प्रतिनिधि श्री सर्गेई कैपिनोस ने सदस्य देशों को आवश्यक सहायता उपलब्ध करने के लिए एक एजेंसी के रूप में यूएनओडीसी के महत्व पर प्रकाश डाला। भारत के राजस्व आसूचना निदेशालय के पूर्व महानिदेशक एवं यूएनओडीसी के सलाहकार श्री जयंत मिश्रा ने यूएनओडीसी द्वारा उठाए गए क्षमता निर्माण के उपायों के बारे में चर्चा की जो सदस्य देशों के लिए उपयोगी हो सकते हैं। उन्होंने सदस्य देशों के लिए खुफिया/ सूचना साझा करने के लिए एक बेहतर मंच की परिकल्पना की। पैनल के अन्य प्रमुख वक्ताओं में प्रो. पोन्नुरंगम कुमारगुरु और डॉ. प्रभात कुमार शामिल थे। इस सत्र की अध्यक्षता प्रधानमंत्री कार्यालय के पूर्व राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक डॉ. गुलशन राय ने की। उन्होंने कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए डार्कनेट के इस्तेमाल और तकनीकी समाधान के विभिन्न पहलुओं के बारे में बताया।
बिम्सटेक देशों के लिए खास तौर पर फार्मास्युटिकल ड्रग्स के डायवर्सन और तस्करी को ध्यान में रखते हुए तीसरे सत्र का विषय नशीले और साइकोट्रोपिक पदार्थों से युक्त औषधि की तस्करी पर केंद्रित था। इस सत्र की अध्यक्षता भारत के संयुक्त औषधि महानिंत्रक जनरल डॉ. के. बंगारूराजन ने की। जबकि सह-अध्यक्षता बांग्लादेश और नेपाल के प्रतिनिधियों ने की। इस दौरान मुख्य तौर पर कानूनी रूप से विनिर्मित नार्को/ साइकोट्रोपिक पदार्थों से युक्त औषधियों की तस्करी के पर विचार-विमर्श किया गया। विभिन्न हितधारकों की बीच बेहतरीन प्रथाओं के बारे में भी चर्चा की गई।
सम्मेलन का अंतिम विषयगत सत्र सदस्य देशों द्वारा मांग एवं नुकसान कम करने के उपयों पर केंद्रित था। इस सत्र की अध्यक्षता भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के सचिव श्री आर.सुब्रह्मण्यम ने की। जबकि सह-अध्यक्षता भूटान के श्री उग्येन त्सरिंग और बांग्लादेश के श्री संजय कुमार चौधरी ने की। यह सत्र मुख्य तौर पर पुनर्वास उपायों और सामुदायिक भागीदारी दृष्टिकोण पर केंद्रित था। सदस्यों द्वारा सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में भी जानकारी भी साझा की गई।
इस सम्मेलन में बिम्सटेक देशों में ड्रग कानून प्रवर्तन के संदर्भ में सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में जानकारी मिली। सभी बिम्सटेक देशों ने सहयोग बढ़ाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।