नयी दिल्ली। तीस हजारी अदालत परिसर में वकीलों और पुलिस के बीच संघर्ष के बाद की घटनाओं के मद्देनजर ‘बार काउन्सिल ऑफ इंडिया’ ने बार संगठनों को पत्र लिखकर ‘उपद्रव करने वाले’ वकीलों की पहचान करने का अनुरोध किया है। बार काउन्सिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष ने वकीलों से अपना विरोध खत्म करने का आग्रह किया है क्योंकि इससे संस्थान की छवि खराब हो रही है।
बार काउन्सिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने एक पत्र में कहा है कि इस तरह के ‘उपद्रवी तत्वों’ को बख्शने की वजह से संस्थान की छवि खराब हो रही है और बार संगठनों की निष्क्रियता तथा सहनशीलता ऐसे वकीलों का हौसला बढ़ाती है जिसकी परिणति उच्च न्यायालयों या उच्चतम न्यायालय में अवमानना कार्यवाही के रूप में होती है।
पत्र में कहा गया है कि साकेत के कुछ वकीलों द्वारा कल मोटरसाइकिल सवार एक पुलिसकर्मी की पिटाई करने, एक आटो रिक्शा चालक से मारपीट करने और आम जनता से झड़प की घटनायें बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं और बार काउन्सिल ऑफ इंडिया इसे बर्दाश्त नहीं करेगी। ये गंभीर कदाचार के कृत्य हैं।
पुलिसकर्मियों और वकीलों के बीच रविवार से ही तनाव बढ़ रहा है। रविवार को तीस हजारी अदालत परिसर में पार्किंग को लेकर हुये विवाद में कम से कम 20 सुरक्षाकर्मी और अनेक वकील जख्मी हो गये थे।
इस घटना के बाद सोमवार को दिल्ली में सभी जिला अदालतों-तीस हजारी, कड़कड़डूमा, साकेत, द्वारका, रोहिणी और पटियाला हाउस- में वकीलों ने अदालत की कार्यवाही का बहिष्कार किया।
मिश्रा ने अपने पत्र में कहा, ‘‘दिल्ली उच्च न्यायालय के शानदार कदम के बाद भी जिस तरह से कुछ वकील आचरण कर रहे हैं, कुछ वकीलों के कल (चार नवंबर) के आचरण ने हमें विचलित किया है। अदालत से अनुपस्थित रहने या हिंसा का सहारा लेना हमारे लिये मददगार नहीं होगा बल्कि ऐसा करके हम अदालतों, जांच कर रहे न्यायाधीश, सीबीआई, गुप्तचर ब्यूरो और सतर्कता विभाग की सहानुभूति भी खो रहे हैं। यहां तक कि आम जनता की राय भी हमारे विरूद्ध जा रही है। इसके नतीजे खतरनाक हो सकते हैं।’’
मिश्रा ने पत्र में आगे लिखा है, ‘‘बार में उपद्रव और हिंसा के लिये कोई जगह नहीं है। नेताओं को तत्काल इसे रोकना होगा। यह मेरा विनम्र अनुरोध है। कृपया उन वकीलों (यदि वास्तव में वे वकील हैं) की पहचान करें और उनके नाम और अन्य विवरण कल तक बीसीआई कार्यालय भेजें।’’
दिल्ली उच्च न्यायालय ने रविवार को हुयी घटना के बारे में मीडिया में आयी खबरों का स्वत: संज्ञान लिया और कहा कि पूर्व न्यायाधीश एस. पी. गर्ग इस मामले की न्यायिक जांच करेंगे।
उच्च न्यायालय ने जांच के दौरान विशेष आयुक्त संजय सिंह और अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त हरिन्दर सिंह का तबादला करने का निर्देश पुलिस आयुक्त को दिया था और यह भी स्पष्ट किया था कि किसी भी वकील के खिलाफ कोई दण्डात्मक कार्रवाई नहीं की जायेगी।
इस पत्र में दिल्ली की बार एसोसिएशनों के बड़े नेताओं से अपील की गयी है कि वे सोमवार को पारित प्रस्ताव वापस ले लें और मंगलवार से ही अपना काम शुरू कर दें।
बार काउन्सिल आफ इंडिया ने बार एसोसिएशनों के प्रस्ताव को बेमतलब और बगैर किसी कानूनी आधार वाला बताया। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि यदि पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार नहीं किया गया तो वे अनिश्चितकालीन हड़ताल करेंगे।
पत्र में यह भी कहा गया है कि यदि शांति और सद्भाव बहाल नहीं किया गया और ये प्रस्ताव (काम से अनुपस्थित रहने का) वापस नहीं लिये गये तो हमारे पास इस प्रकरण से दूरी बनाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होगा। हम न तो जांच में शामिल होंगे और न ही हमारे लिये अदालत में या बाहर किसी का भी बचाव करना संभव होगा।
उच्च न्यायालय के आदेश पर पुनर्विचार करने के लिये पुलिसकर्मियों के आग्रह की उम्मीद करते हुये बीसीआई ने कहा, ‘‘न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार उच्च न्यायालय अवकाश के दिन बैठा और उसने वकीलों के पक्ष में अप्रत्याशित आदेश दिया। वकीलों को न्यायालय की इस पहल को भूलना नहीं चाहिए और ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिसकी परिणति इस आदेश को वापस लेने के रूप में हो जाये।’’
बीसीआई ने कहा कि दिल्ली बार के नेताओं की यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है कि न्यायिक जांच के अंतिम परिणाम के रूप में दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो, उन्हें जेल भेजा जाये और अंतत: दोषी ठहराकर सेवा से हटाया जाये।
बार नेताओं को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि जांच के दौरान एक कुछ भी प्रतिकूल सामने नहीं आये जिससे कोई वकील परेशानी में पड़ जाये।