नई दिल्ली । कल लेह सियाचिन पायनियर्स: 114 ने लद्वाख सेक्टर में जंस्कार घाटी के दूर दराज के पहुंच वाले क्षेत्रों में एक साहसिक केसवाक मिशन का संचालन किया। यह हताहत जम चुकी जंस्कार नदी के ऊपर आयोजित ‘चादर ट्रेक‘ का एक हिस्सा था। बेहद कम समय में प्राप्त सूचना के बावजूद, क्रू संदेश मिलने के शीघ्र बाद हेलिकॉप्टर के जरिये वहां पहुंच गया। बेहद दुर्गम क्षेत्र में होने के कारण इस मिशन के लिए दो हेलिकॉप्टर को बुलाया गया।
इसका अर्थ यह है कि अगर एक हेलिकॉप्टर नीचे आया तो दूसरा सहायता के लिए वहां उपस्थित हो। चूंकि निम्न संचार व्यवस्था के कारण उस स्थान के लिए समन्वय उपलब्ध नहीं था, एयरक्रू को बर्फीले पहाड़ों एवं जंस्कार घाटी की दरारों में हताहत की खोज करने के बेहद दुष्कर कार्य से जूझना पड़ा। जैसे ही हताहत को खोज लिया गया-कैप्टन विंग सीडीआर खान ने महसूस किया कि एक बिना तैयार सतह पर तंग घाटी के भूभाग में लैंडिंग एक मुश्किल और खतरनाक कार्य हो सकता है।
इस कठिन परिस्थिति में बिना डिगे एवं यूनिट के इस ध्येय के अनुरूप कि ‘ हम कठिन कार्य तो रूटीन के तहत करते हैं और असंभव कार्य में बस थोड़ा अधिक समय लग सकता है‘ क्रू ने बेहद कम स्थान में वायुयान को उतरने के असाधारण कौशल का प्रदर्शन किया और हेलिकॉप्टर को खड़े पहाड़ों के बीच में नदी के बगल में चट्टानी रास्ते पर उतार दिया। दूसरे हेलिकॉप्टर ने पहले हेलिकॉप्टर को वायु समर्थन दिया और इस कठिन कार्य कां अंजाम दे दिया गया। हताहत की सफलतापूर्वक निकासी कर दी गई और उसे लेह ले आया गया-इस प्रकार भारतीय वायु सेना के हेलिकॉप्टर द्वारा एक और बहुमूल्य जीवन बचा लिया गया।