-लोक निर्माण मंत्री ने किया दो हिंदी सत्याग्रहियों को सम्मानित
गुरुग्राम, 12 नवंबर : हरियाणा के वन एवं लोक निर्माण मंत्री राव नरबीर सिंह ने आज अपने निवास पर गुरुग्राम जिला के दो हिंदी सत्याग्रहियों को सम्मानित किया. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि इन सत्याग्रहियों ने ही हरियाणा के अलग राज्य के रूप में निर्माण की नींव रखी थी । राव नरबीर सिंह ने आज हिंदी आंदोलन में यातनाएं सह चुके सोहना के 87 वर्षीय लाजपत राय खरबंदा तथा गुरुग्राम के शिवाजी नगर वासी 76 वर्षीय ईश्वरचंद को सम्मानित किया ।
इस मौके पर मीडिया प्रतिनिधियों से बातचीत करते हुए लोक निर्माण मंत्री राव नरबीर सिंह ने कहा कि संयुक्त पंजाब सरकार के पंजाबी को अनिवार्य करने के आदेश के बाद हिंदी आंदोलन शुरू हुआ क्योंकि हिंदी भाषी क्षेत्र में भी पंजाबी को अनिवार्य किया जा रहा था । इसी आंदोलन ने 1966 में हरियाणा निर्माण का रास्ता साफ किया । उन्होंने कहा कि हरियाणा के गठन को 50 साल पूरे हो चुके हैं । राज्य में किसी सरकार ने पहली बार राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत होकर निर्णय लिया कि राष्ट्रभाषा हिंदी को बचाने के लिए सत्याग्रह करने वाले व्यक्तियों को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिया जाए । उन्होंने कहा हालांकि हिंदी आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले कुछ लोग अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनके परिजनों के लिए यह गर्व और गौरव की बात है ।
राव नरबीर सिंह ने बताया कि हरियाणा स्वर्ण जयंती उत्सव के समापन अवसर पर हिसार में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल ने हिंदी आंदोलन के सत्याग्रहियों, स्वतन्त्रता सेनानियों तथा इमर्जेंसी के दौरान जेलों में रहे हरियाणा के लोगों के लिए दस हज़ार रुपये पेंशन की घोषणा भी की है, जो कि सराहनीय है । राव नरबीर सिंह ने कहा कि सन 1957 में हिंदी को बचाने के लिए चलाए गए आंदोलन में तकरीबन 15000 लोग विभिन्न जिलों में गए थे । इन सत्याग्रहियों के आंदोलन की वजह से ही उस समय की संयुक्त पंजाब की सरकार ने हिंदी भाषी क्षेत्रों का सर्वे करवाया और उस आधार पर 1966 में हरियाणा बना।
हिंदी आंदोलन के सत्याग्रही रहे सोहना के 87 वर्षीय लाजपत राय खरबंदा ने उनका सम्मान करने के लिए लोक निर्माण मंत्री के सिर पर हाथ रख कर उन्हें आशीर्वाद दिया और अपने उस समय के अनुभव सांझे किए ।श्री खरबंदा ने बताया कि उस समय उर्दू के साथ साथ पंजाबी को राज्य भाषा बनाया जा रहा था इसलिए उन्होंने अपने साथियों के साथ सत्याग्रह किया कि हिंदी चालू रहनी चाहिए । श्री खरबंदा के अनुसार वे यहां से रोहतक गए और उसके बाद चंडीगढ़ आर्य समाज मंदिर में सत्याग्रह किया जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार करके चंडीगढ़ जेल में रखा गया । उस समय उनकी आयु लगभग 26 वर्ष की थी । चंडीगढ़ जेल में रात को रखने के बाद उन्हें अंबाला सेंट्रल जेल में भेजा गया जहां पर वे लगभग डेढ़ महीने तक अपने साथियों के साथ रहे ।
जिला के दूसरे हिंदी सत्याग्रही ईश्वरचंद ने बताया कि उनका परिवार मूल रूप से कोट छुटा, जिला डेरा गाजीखान, पाकिस्तान से भारत आया था । उसके बाद उनका परिवार गुरुग्राम में कैंप में रहा । फिर उन्हें अर्जुन नगर में सरकार द्वारा मकान अलॉट किया गया । अब वे शिवाजी नगर में रहते हैं । ईश्वरचंद के अनुसार संयुक्त पंजाब के उस समय के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह कैरों ने आदेश दिए थे कि पंजाबी को सरकारी कार्यालयो में लागू किया जाए । इसके विरोध में उन्होंने आंदोलन किया कि सरकारी कार्यालयों में हिंदी ही रहनी चाहिए। वे भी जुलाई 1957 में सत्याग्रह करने के लिए चंडीगढ़ गए थे जहां पर उन्हें 4 दिन हवालात में रखा गया । उसके बाद उन्हें अंबाला सेंट्रल जेल में 16 दिन तक रखा गया । फिर उन्हें पंजाब में फिरोजपुर सेंट्रल जेल में 5 महीने और कुछ दिन तक रखा गया ।
ईश्वरचंद ने बताया कि जेल में भी सत्याग्रहियों ने हिंदी के पक्ष में नारे लगाएं, जिसका दमन सरकार ने लाठीचार्ज से करवाया और इस लाठीचार्ज में उनके एक साथी सुमेर सिंह की मृत्यु हो गई थी। अपने संस्मरण सुनाते हुए ईश्वरचंद ने बताया कि उस समय श्री लाल बहादुर शास्त्री भारत के रेल मंत्री थे और वे इन सत्याग्रहियों को देखने फिरोजपुर सेंट्रल जेल आए थे । वर्तमान राज्य सरकार के हिंदी सत्याग्रहियों को स्वतंत्रता सेनानियों के समकक्ष दर्जा देने के फैसले की सराहना करते हुए ईश्वरचंद ने कहा कि गुरुग्राम से इस आंदोलन में 7 व्यक्ति थे जिनमें से दो माफी मांगकर निकल गए थे । उन्होंने बताया कि फिरोजपुर जेल में 6 महीने रहने के बाद सरकार ने हमारी मांगे मानी और हमें दिसंबर 1957 में रिहा कर दिया गया । उसके बाद सर्वे हुआ जिसके आधार पर 1966 में हरियाणा बना।