केन्द्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने दिया भारतीय समस्याओं का भारतीय समाधान खोजने पर जोर

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नई दिल्ली : केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज भारतीय समस्याओं के भारतीय समाधान खोजने का आह्वान किया क्योंकि भारत विकसित और वैज्ञानिक रूप से उन्नत देशों के समूह में अग्रणी राष्ट्र के रूप में उभर रहा है।

हरियाणा के फरीदाबाद में 9वें भारत अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में सफलता की तीन कहानियों का हवाला दिया, जिन्होंने पिछले दशक में भारत के उद्भव को परिभाषित किया है।

उन्होंने कहा, “भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर उतरने वाला पहला देश है, भारत की वैक्सीन की सफलता की कहानी दुनिया भर में उद्धृत की जाती है और अरोमा मिशन ने कई स्टार्टअप को बढ़ावा दिया है।”

उन्होंने कहा, “आज हमारे पास प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई में एक ऐसा राजनीतिक नेतृत्व है जिसने जोरदार और स्पष्ट रूप एक संदेश दिया है कि वे दिन गए जब हम दूसरों के नेतृत्व करने का इंतजार करते थे और फिर उनका अनुसरण करते थे। 2024 का भारत एक बड़ी छलांग लगाकर अपने वैज्ञानिक और तकनीकी कौशल के शिखर पर आगे बढ़ने के लिए तैयार है”।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, हाल के दिनों में इस दिशा में कम से कम पांच बड़े फैसले लिए गए हैं।

उन्होंने कहा, “अंतरिक्ष सुधार ला रहे पीपीपी मॉडल; अनुसंधान एनआरएफ जो सर्वोत्तम से भी बेहतर होगा; राष्ट्रीय क्वांटम मिशन जो भारत को क्वांटम प्रौद्योगिकी अपनाने वाले चुनिंदा 6 या 7 देशों की श्रेणी में रखता है; राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति जिसका उपयोग संपत्तियों और कृषि फार्मों की जियोमैपिंग के लिए स्वामित्व योजना में पहले से ही बड़े पैमाने पर किया जा रहा है; और राष्ट्रीय शिक्षा नीति, एनईपी-2020, जिसने युवा पीढ़ी को आकांक्षाओं के कैदी होने से मुक्त कर दिया है जिससे पीएम मोदी द्वारा परिकल्पित विकसित भारत@2047 को पूरा करने में मदद करेगी” ।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अंतरिक्ष क्षेत्र को सार्वजनिक-निजी भागीदारी के लिए खोलकर अतीत की वर्जनाओं को तोड़ दिया है। 2014 में अंतरिक्ष क्षेत्र में केवल 1 स्टार्टअप से, अब हमारे पास 199 अंतरिक्ष स्टार्टअप हैं। उन्होंने कहा कि अप्रैल से दिसंबर 2023 तक चालू वित्त वर्ष के आखिरी नौ महीनों में स्पेस स्टार्टअप्स से 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश आया है।

उन्होंने कहा, “भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था आज मामूली $8 बिलियन की है, लेकिन हमारा अपना अनुमान है कि 2040 तक यह $40 बिलियन तक पहुंच जाएगी। लेकिन अधिक दिलचस्प बात यह है कि कुछ अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों के अनुसार, उदाहरण के लिए हालिया एडीएल (आर्थर डी लिटिल) रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि हमारे पास 2040 तक 100 बिलियन डॉलर की क्षमता हो सकती है”।

यह कहते हुए कि “अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन” वैज्ञानिक अनुसंधान में एक बड़े पीपीपी मॉडल के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि एनआरएफ हमें नए क्षेत्रों में नए शोध का नेतृत्व करने वाले मुट्ठी भर विकसित देशों की लीग में शामिल कर देगा।

उन्होंने कहा, “एनआरएफ बजट में पांच वर्षों में 50,000 करोड़ रुपये के खर्च की कल्पना की गई है, जिसमें से 70 प्रतिशत से अधिक, घरेलू और बाहरी स्रोतों सहित गैर-सरकारी स्रोतों से आएगा”।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एक ऐसी चीज है जिसका भारत कई दशकों से इंतजार कर रहा था। सबसे बड़ा बदलाव मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय करना था।

सैकड़ों विद्यार्थियों की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, “एनईपी-2020 ने छात्रों को मानविकी और वाणिज्य से लेकर विज्ञान और इंजीनियरिंग जैसी पढ़ाई की विभिन्न धाराओं से स्विच ओवर या संयोजन की अनुमति देकर ‘अपने आकांक्षाओं के कैदी’ होने से मुक्त करता है।”

अधिकांश पत्रिकाएं भारत को आज एक उज्ज्वल स्थान के रूप में वर्णित करती हैं, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, आज के बच्चे सौभाग्यशाली हैं कि वे प्रौद्योगिकी संचालित अमृतकाल के वास्तुकार हैं।

उन्होंने कहा, “यदि आप अंतरराष्ट्रीय मानदंडों पर जाएं, तो हमें स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र में दुनिया में नंबर 3 का दर्जा दिया गया है, हम सिर्फ 350 (दस साल पहले) थे, और यह सब पिछले दस वर्षों में हुआ है; ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में हम 81वें स्थान पर थे, 41 पायदान की छलांग लगाकर, आज हम विश्व में 40वें स्थान पर हैं, रेजिडेंट पेटेंट भरने में हम विश्व में 7वें स्थान पर थे, नेटवर्क रेडीनेस में हम विश्व में 79वें स्थान पर थे, आज हम हैं 60वें स्थान पर हैं, ये सभी विश्व प्रशंसित मानदंड हैं, जैव प्रौद्योगिकी में, हम 50 स्टार्टअप थे, आज हम 6,000 हैं, हम केवल 10 अरब डॉलर की जैव अर्थव्यवस्था थे, आठ वर्षों के भीतर हम 8 गुना अधिक 80 अरब डॉलर पर चले गए, आज हम 140 अरब डॉलर हैं और जैव विनिर्माण में दुनिया में पहले पांच में से एक हैं”।

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