संसद का विशेष सत्र शुरू : पीएम मोदी ने की 75 वर्ष की यात्रा पर चर्चा की शुरुआत

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नई दिल्ली : लोकसभा में संसद का विशेष सत्र आज से शुरू हो गया . आम परम्पराओं से अलग आज संसदीय इतिहास के 75 वर्ष पर विशेष चर्चा कराई जा रही है . इस चर्चा अकी शुरुआत करते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने लगभग एक घंटे के भाषण में संसद भवन के निर्माण, इसके आरम्भिक उपयोग, ब्रिटिश काल में संसदीय व्यवस्था, सविधान सभा की बैठकें, पहली सरकार के गठन से लेकर अब तक की प्रमुख घटनाओं की चर्चा की. उन्होंने कहा कि देश की 75 वर्षों की संसदीय यात्रा का पुनः स्मरण करने के लिए और नए सदन में जाने से पहले, उन प्रेरक पलों को, इतिहास की महत्वपूर्ण घड़ी को याद करते हुए आगे बढ़ने का ये अवसर है। ये सही है कि इस इमारत के निर्माण का निर्णय विदेशी शासकों का था। लेकिन ये बात हम कभी नहीं भूल सकते हैं कि इस भवन के निर्माण में परिश्रम, पसीना और पैसा मेरे देशवासियों के लगा था। सबका साथ, सबका विकास का मंत्र, अनेक ऐतिहासिक निर्णय, दशकों से लंबित विषय और उनका समाधान भी इसी सदन में हुआ।

पीएम ने कहा कि धारा 370 ये सदन हमेशा याद रखेगा। वन नेशन वन टैक्स, GST का निर्णय भी इसी सदन ने किया। ‘वन रैंक, वन पेंशन’ भी इसी सदन ने देखा। गरीबों के लिए 10 % आरक्षण बिना किसी विवाद के इसी सदन में हुआ। 75 वर्ष की हमारी यात्रा ने अनेक लोकतांत्रिक परंपराओं और प्रक्रियाओं का उत्तम से उत्तम सृजन किया है और इस सदन के सभी सदस्यों ने उसमें सक्रियता से योगदान दिया है।हम भले ही नए भवन में जाएंगे। लेकिन ये पुराना भवन भी आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा।

 

प्रधान मंत्री मोदी संसद में क्या बोले  ? 

चंद्रयान-3 की सफलता से आज पूरा देश अभिभूत है।इसमें भारत के सामर्थ्य का एक नया रूप जो आधुनिकता, विज्ञान, technology, हमारे वैज्ञानिकों और जो 140 करोड़ देशवासियों के संकल्प की शक्ति से जुड़ा हुआ है।
वो देश और दुनिया पर नया प्रभाव पैदा करने वाला है।

G20 की सफलता किसी व्यक्ति या दल की नहीं, बल्कि भारत के 140 करोड़ भारतीयों की सफलता है।भारत इस बात के लिए गर्व करेगा कि भारत की अध्यक्षता के दौरान अफ्रीकन यूनियन G20 का स्थाई सदस्य बना।

हम सबके लिए गर्व की बात है कि आज भारत ‘विश्व मित्र’ के रूप में अपनी जगह बना पाया है। आज पूरा विश्व, भारत में अपना मित्र खोज रहा है, भारत की मित्रता का अनुभव कर रहा है।

इस सदन से विदाई लेना बहुत ही भावुक पल है।हम जब इस सदन को छोड़कर जा रहे हैं, तो हमारा मन बहुत सारी भावनाओं और अनेक यादों से भरा हुआ है।

मैं कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था, लेकिन ये भारत के लोकतंत्र की ताकत है और भारत के सामान्य मानवी की लोकतंत्र के प्रति श्रद्धा का प्रतिबिंब है कि रेलवे प्लेटफॉर्म पर गुजारा करने वाला एक गरीब परिवार का बच्चा पार्लियामेंट में पहुंच गया।

जब मैंने पहली बार एक सांसद के रूप में इस भवन में प्रवेश किया, तो सहज रूप से मैंने इस सदन के द्वार पर अपना शीश झुकाकर, इस लोकतंत्र के मंदिर को श्रद्धाभाव से नमन किया था।
वो पल मेरे लिए भावनाओं से भरा हुआ था।

प्रारंभ में यहां महिलाओं की संख्या कम थी।लेकिन धीरे-धीरे माताओं, बहनों ने भी इस सदन की गरिमा को बढ़ाया है।

करीब-करीब 7,500 से अधिक जनप्रतिनिधि अबतक दोनों सदनों में अपना योगदान दे चुके हैं। इस कालखंड में करीब 600 महिला सांसदों ने दोनों सदनों की गरिमा को बढ़ाया है।

आज जब हम इस सदन को छोड़ रहे हैं, तब मैं उन पत्रकार मित्रों को भी याद करना चाहता हूं, जिन्होंने पूरा जीवन संसद के काम को रिपोर्ट करने में लगा दिया। एक प्रकार से वे जीवंत साक्षी रहे हैं। उन्होंने पल-पल की जानकारी देश तक पहुंचाईं।

ऐसे पत्रकार जिन्होंने संसद को कवर किया, शायद उनके नाम जाने नहीं जाते होंगे लेकिन उनको कोई भूल नहीं सकता है। सिर्फ खबरों के लिए ही नहीं, भारत की इस विकास यात्रा को संसद भवन से समझने के लिए उन्होंने अपनी शक्ति खपा दी।

एक प्रकार से जैसी ताकत यहां की दीवारों की रही है, वैसा ही दर्पण उनकी कलम में रहा है और उस कलम ने देश के अंदर संसद के प्रति, संसद के सदस्यों के प्रति एक अहोभाव जगाया है।

हमारे शास्त्रों में माना गया है कि किसी एक स्थान पर अनेक बार जब एक ही लय में उच्चारण होता है तो वह तपोभूमि बन जाता है।

नाद की ताकत होती है, जो स्थान को सिद्ध स्थान में परिवर्तित कर देती है। मैं मानता हूं कि इस सदन में 7,500 प्रतिनिधियों की जो वाणी यहां गूंजी है, उसने इसे तीर्थक्षेत्र बना दिया है।
लोकतंत्र के प्रति श्रद्धा रखने वाला व्यक्ति आज से 50 साल बाद जब यहां देखने के लिए भी आएगा तो उसे उस गूंज की अनुभति होगी कि कभी भारत की आत्मा की आवाज यहां गूंजती थी।

बांग्लादेश की मुक्ति का आंदोलन और उसका समर्थन भी इसी सदन ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व में किया था, इसी सदन ने इमरजेंसी में लोकतंत्र पर होता हुआ हमला भी देखा था, और इसी सदन ने भारत के लोगों की ताकत का एहसास कराते हुए लोकतंत्र की वापसी भी देखी थी।

इस देश में दो प्रधानमंत्री ऐसे रहे (मोरारजी देसाई जी और वीपी सिंह जी) जिन्होंने कांग्रेस में अपना जीवन खपाया और एंटी कांग्रेस सरकार का नेतृत्व कर रहे थे। ये भी इसकी विशेषता थी। संसद का ये सत्र छोटा, लेकिन ऐतिहासिक निर्णयों का है। इस सत्र की एक विशेषता ये है कि 75 साल की यात्रा अब नए मुकाम से आरंभ हो रही है।नए स्थान पर उस यात्रा को आगे बढ़ाते समय, नए संकल्प, नई ऊर्जा और नए विश्वास से काम करना है।

हमें मिलकर 2047 तक देश को विकसित बनाना है।इसके लिए जितने भी निर्णय होने वाले हैं, वो सभी नए संसद भवन में होंगे।स इमारत के निर्माण का निर्णय विदेशी शासकों का था।लेकिन ये बात हम कभी नहीं भूल सकते हैं कि इस भवन के निर्माण में परिश्रम, पसीना और पैसा मेरे देशवासियों का लगा था।

हम भले ही नए भवन में जाएंगे।लेकिन ये पुराना भवन भी आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा

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