भोपाल । राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आज यानी 3 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय साहित्य महोत्सव-‘उन्मेष’ और लोक और जनजातीय कला महोत्सव- ‘उत्कर्ष’ का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि साहित्य समाज से जोड़ता है और साथ ही लोगों को भी एक-दूसरे से जोड़ता है। उन्होंने कहा कि वही साहित्य और कलाएं सार्थक हैं जो ‘मैं’ और ‘मेरा’ से ऊपर उठकर रची और प्रस्तुत की गईं। उन्होंने कहा कि सभी भारतीय भाषाओं की प्रमुख कृतियों का अन्य भाषाओं में अनुवाद भारतीय साहित्य को और समृद्ध करेगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि साहित्य ने मानवता को आईना दिखाया है, बचाया भी है और आगे भी बढ़ाया है। साहित्य और कला ने संवेदना और करुणा को, यानी मनुष्य की मानवता को सुरक्षित रखा है। मानवता की रक्षा के इस परम पवित्र अभियान में भागीदार बनने के लिए लेखक एवं कलाकार प्रशंसा के पात्र हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि साहित्य ने हमारे स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों को ताकत दी। देश के कोने-कोने में अनेक लेखकों ने स्वतंत्रता एवं पुनर्जागरण के आदर्शों को अभिव्यक्ति दी। भारतीय पुनर्जागरण और स्वतंत्रता संग्राम के काल में लिखे गए उपन्यास, कहानियां, कविताएँ और नाटक आज भी लोकप्रिय हैं और इनका हमारे मन पर व्यापक प्रभाव है।
राष्ट्रपति ने कहा कि अनेक चुनौतियों का सामना कर रहे विश्व में, हमें विभिन्न संस्कृतियों और मान्यताओं के लोगों के बीच बेहतर समझ बनाने के प्रभावी तरीके खोजने होंगे। इस प्रयास में कहानीकारों और कवियों की केंद्रीय भूमिका है क्योंकि साहित्य में हमारे अनुभवों को जोड़ने और मतभेदों को दूर करने की अद्वितीय क्षमता है। उन्होंने कहा कि हमें अपनी साझी नियति को उजागर करने और अपने वैश्विक समुदाय को मजबूत करने के लिए साहित्य की क्षमता का उपयोग करना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत को विकसित राष्ट्र बनने के लिए जनजातीय भाई-बहनों की प्रगति आवश्यक है। जनजातीय युवा भी अपनी आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करना चाहते हैं। हमारा सामूहिक प्रयास होना चाहिए कि वे अपनी संस्कृति, लोकाचार, रीति-रिवाज और प्राकृतिक पर्यावरण को संरक्षित करते हुए विकास में भागीदार बनें।