नई दिल्ली : आई टी एक्ट की धारा 66 ए का डंडा अब ऐसे लोगों पर नहीं चला सकेगा जो सोशल मीडिया पर अपनी बात साफगोई से रखना चाहते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट 2000 की धारा 66A को लेकर 12 अक्टूबर को विशेष निर्देश जारी करते हुए सख्त रुख का संकेत दिया. सुप्रीम कोर्ट का साफ कहना था कि आईटी एक्ट की इस धारा के तहत किसी भी व्यक्ति पर कार्रवाई नहीं की जाएगी. अदालत ने यह निर्देश श्रेया सिंघल बनाम भारत सरकार के फैसले को लागू करने के तहत दिए हैं.
उल्लेखनीय है कि उक्त मामले की सुनवाई के बाद आईटी एक्ट की धारा 66 (A) को असंवैधानिक करार दिया गया था. लगभग 7 साल पहले सर्वोच्च अदालत ने यह फैसला दिया था. लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाड भी जांच एजेंसियां इसका इस्तेमाल कर लोगों पर मुकदमे दर्ज करती रही. एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने इस सम्बन्ध में निर्देश दिया और अब आईटी एक्ट की रद्द की गई 66ए धारा का इस्तेमाल नहीं हो पाएगा. सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों और गृह सचिवों को यह पक्का करने के निर्देश जारी किए हैं कि सभी लंबित मामलों से ये धारा हटा ली जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को निर्देश दिया कि किसी पर भी सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 66 ए के तहत मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए, जिसे 2015 में कोर्ट ने श्रेया सिंघल मामले में असंवैधानिक करार दिया गया था. आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक, उत्तेजक या भावनाओं को भड़काने वाली पोस्ट करने पर किसी भी शख्स को गिरफ्तार करने का प्रावधान था. तब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 19(1) (A) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार का हनन करार देकर इसे रद्द कर दिया था.
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि प्रकाशित आईटी अधिनियम के बेयर एक्ट से लोगों को सही और सटीक तरीके से सूचित किया जाना चाहिए. मतलब लोगों को ये पता होना चाहिए कि धारा 66 ए को अमान्य कर दिया गया है और इसका इस्तेमाल उनके खिलाफ नहीं किया जा सकता है.
बुधवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने एनजीओ ‘पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज’ (पीयूसीएल) की दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई की. इसमें श्रेया सिंघल बनाम यूओआई (2015) 5 एससीसी 1 केस में धारा 66 ए आईटी अधिनियम के मुद्दे पर प्रकाश डाला गया. बेंच ने कहा, “ये बेहद संजीदगी का मामला है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी कुछ राज्यों में इस धारा के तहत केस दर्ज किए जा रहे हैं. इन हालातों में केंद्र सरकार राज्यों के मुख्य सचिव से संपर्क साधे और इस तरह के मामलों का पता कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अमल में लाना पक्का करें.”