प्राचीन भारत में महिलाओं को भी मिलता था बराबरी का दर्जा : डॉ. चौहान

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ग्रामोदय ने आयोजित की अध्ययनशीलता जनचेतना रैली

पानीपत। इतिहासकारों के एक वर्ग ने यह चित्र खींचने की कोशिश की है कि भारत में महिलाओं की स्थिति हमेशा से दयनीय थी और उन्हें हमेशा अबला समझा गया। यह बात बिल्कुल निराधार है। ऐसे आरोप लगाने वालों को वैदिक काल का इतिहास पढ़ना चाहिए। यह बात हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय उरलाना कलां में अध्ययनशीलता जनचेतना रैली के बाद आयोजित विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए कही। वह इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। उन्होंने कहा कि वैदिक काल भारत के इतिहास का स्वर्णिम युग था। ज्ञान-विज्ञान, वैभव और चिंतन के उस चरम काल में भारत में महिलाओं की सामाजिक स्थिति बहुत अच्छी थी। उन्हें पुरुषों के बराबर अधिकार प्राप्त थे।

डॉ. चौहान ने कहा कि प्राचीन भारत में महिलाओं के भी युद्ध क्षेत्र में वीरांगना बनकर उतरने के कई उदाहरण मौजूद हैं। रामायण काल में राजा दशरथ के साथ युद्ध क्षेत्र में उनकी पत्नी महारानी कैकेयी भी उनका साथ दिया करती थीं। वैदिक काल में यज्ञोपवीत संस्कार का अधिकार बेटियों को भी प्राप्त था। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज दुनिया की सबसे प्राचीन और समृद्ध सभ्यताओं में से एक है। हमारी ज्ञान परंपरा दुनिया की सबसे प्राचीन, समृद्ध और प्रगतिशील परंपरा रही है।

भाजपा प्रवक्ता डॉ वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि मध्य काल के दौरान भारत में महिलाओं की सामाजिक स्थिति को बदलने की कोशिश जरूर हुई। महिलाओं पर कई सारी पाबंदियां लाद दी गई। समाज में संकट गहराया और कुरीतियां भी बढ़ीं। चुनौतियों के उस दौर में जब महिलाओं का घर से बाहर निकलना भी मुश्किल था, भारत की एक बेटी ने मीराबाई बनने का साहस दिखाया। यह दृढ़ संकल्प और उन्नत सपने देखने का ही परिणाम था कि मीराबाई ने सकारात्मक ऊर्जा से बाधाओं को पार किया। उन्होंने कहा कि महिलाओं को वर्तमान स्थिति तक लाने में आजादी के बाद भी कई दशक लग गए। हरियाणा में भी महिलाओं की स्थिति बहुत खराब थी। आज बेटियों को भी पिता की संपत्ति में बराबर का हिस्सा प्राप्त है। हरियाणा की महिलाएं आज किसी से कम नहीं।

डॉ चौहान ने कहा कि केवल अपने पूर्वजों का गुणगान और उन्नत सपने देखना ही काफी नहीं,  भविष्य संवारने के लिए परिश्रम भी करना होगा। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अगर अदम्य उत्साह ना दिखाया होता और अबला ही बनी रहती तो उन्हें वह मुकाम हासिल नहीं होता जो आज प्राप्त है। उन्होंने कहा कि जीवन में आगे बढ़ना है तो अच्छी किताबों से दोस्ती करनी होगी। जीवन में आगे बढ़ना है तो मुंह खोलना सीखिए। जो अपनी बात जितनी अच्छी तरह कह पाएगा, उसके आगे बढ़ने की संभावनाएं उतनी अधिक होंगी। इस लड़ाई में हरियाणा की सरकार महिलाओं के साथ है।

राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय सोनीपत की कुलपति श्रीमती अर्चना मिश्रा इस विचार गोष्ठी की मुख्य वक्ता थी। उन्होंने सभी उपस्थित छात्राओं का आह्वान किया कि सब बाधाओं को पीछे छोड़ अपनी शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित करो।  शिक्षा ही एकमात्र साधन है जो हर समस्या को हल करने में सहायक होगा । महिलाओं की शिक्षा के प्रति सरकार के रुख का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि अब तो शिक्षा के प्रति पहले की तुलना में बहुत सकारात्मक माहौल है । अब अपने स्तर पर कोई कोताही मत बरतो ।

कार्यक्रम संयोजक करण सिंह के कुशल संयोजन में ग्रामोदय अध्ययनशीलता जनचेतना रैली तथा राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफल आयोजन हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रेयांश द्विवेदी ने की। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सभी आगुन्तकों, व्यवस्था में जुड़े सभी शिक्षक-शिक्षिकाओं, हरियाणा ग्रन्थ अकादमी और ऑनलाइन जुड़े सभी विद्वानों को कार्यक्रम अध्यक्ष श्रेयांश द्विवेदी ने साधुवाद दिया और ग्रामीण अंचल में इतने सुन्दर आयोजन हेतु सबकी प्रशंसा की ।

रास कला मंच सफीदों के रवि भारद्वाज ने इस कार्यक्रम में अति विशिष्ट अतिथि के तौर पर भाग लिया। कार्यक्रम में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय सीठाना, पानीपत के प्रधानाचार्य सुमेर सिंह, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, दरियापुर पानीपत के प्रधानाचार्य अश्वनी सैनी, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, कालखा, पानीपत के प्रधानाचार्य डॉ. बजरंग लाल, रा. मा. स. वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय इसराना, पानीपत के प्रधानाचार्य अंग्रेज जगलाल, उरलाना एकता मंच के अशोक कुमार, ईश्वर भारद्वाज एवं नवीन, विजय सिंह, शिव कुमार, मदनलाल, बलवान सिंह, जयप्रकाश, मुकेश, आजाद सिंह व विष्णु दत्त और स्कूल के स्टाफ सहित 11वीं एवं 12वीं की सभी छात्राएं उपस्थित रहीं। गुलाब सिंह ने कार्यक्रम के दौरान मंच का संचालन किया।

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