इस्पात उद्योग प्लास्टिक कचरे का स्थायी समाधान प्रदान कर सकता है:  राम चंद्र प्रसाद सिंह

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नई दिल्ली :  केंद्रीय इस्पात मंत्री, राम चंद्र प्रसाद सिंह ने भारतीय इस्पात अनुसंधान और प्रौद्योगिकी मिशन (एसआरटीएमआई) द्वारा प्रस्तुत “लौह और इस्पात उद्योग में प्लास्टिक अपशिष्ट उपयोग”शीर्षक के निष्कर्षों पर विचार करने के लिए इस्पात मंत्रालय के सभी अधिकारियों की एक बैठक बुलाई। इस बारे में विस्तृत प्रस्तुति दी गई। इस्पात मंत्री ने कहा कि लोहा और इस्पात उद्योग कोक बनाने, ब्लास्ट फर्नेस आयरन बनाने, इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस इस्पात बनाने जैसी विभिन्न प्रक्रियाओं में प्लास्टिक कचरे का उपयोग बड़े पैमाने पर जा सकता है।

इसके अलावा इस माध्यम से कचरे से कंचन बनाने की माननीय प्रधानमंत्री की परिकल्पना को वास्तव में साकार किया जा सकता है। चूंकि अधिकांश प्लास्टिक अपशिष्ट उद्योग द्वारा उपयोग किए जाने वाले कोयले की तुलना में उच्च ऊर्जा के अलावा कार्बन और हाइड्रोजन का एक स्रोत हैं और राख, क्षारीय मामलों आदि से मुक्त हैं, प्लास्टिक कचरे के उपयोग से उद्योग को कई तरह से मदद मिलेगी। इसमें आयातित कोयले पर निर्भरता कम करना, प्लास्टिक कचरे के कुशल और सुरक्षित निपटान की राष्ट्रीय समस्या को सुलझाने के अलावा, जीएचजी उत्सर्जन को कम करना, दक्षता में सुधार करना आदि शामिल हैं। इस अवसर पर इस्पात एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री श्री फग्गन सिंह कुलस्ते भी उपस्थित थे।

 

एक बार उपयोग वाले प्लास्टिक सहित सभी प्रकार के प्लास्टिक का उपयोग लौह और इस्पात उद्योग में किया जा सकता है। दुनिया भर के कई देश जैसे जापान, यूरोप आदि इस्पात निर्माण में इस तरह के प्लास्टिक का उपयोग लम्बे समय से कर रहे हैं।

इस्पात उद्योग द्वारा प्लास्टिक के उपयोग से डाइऑक्सिन और फ्यूरांस जैसी कार्सिनोजेनिक गैसों के उत्पादन की प्रमुख पर्यावरणीय और सामाजिक समस्याओं को सुलझा लिया जाएगा, जो आमतौर पर भस्मीकरण, ऊर्जा उत्पादन जैसी प्रणालियों में सामने आते हैं, क्योंकि इस्पात बनाने में उच्च तापमान बनाए रखा जाता है और इसकी कुछ प्रक्रियाएं पायरोलिसिस प्रक्रियाएं हैं। यह उम्मीद की जाती है कि 1 किलोग्राम प्लास्टिक का उपयोग लगभग 1.3किलोग्राम कोयले की जगह ले लेगा और लौह और इस्पात उद्योग में वर्तमान क्षमता के आधार पर हर साल लगभग 2 से 3 मिलियन टन प्लास्टिक कचरे का उपभोग करने की क्षमता है और 2030-31 तक 8 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक कचरे का उपभोग करने की क्षमता है। इस प्रकार, लोहा और इस्पात उद्योग प्लास्टिक कचरे का प्रमुख उपयोगकर्ता हो सकता है।

इस्पात मंत्री ने इस मामले पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के साथ बातचीत करने का निर्देश दिया ताकि इस्पात क्षेत्र को भी प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम 2016 के अंतर्गत अंतिम उपयोगकर्ता के रूप में शामिल किया जा सके और आगे विचार-विमर्श तथा इसे बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया जा सके।

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वर्तमान में भारत में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत लगभग 13.6 किलोग्राम है, जबकि विश्व औसत लगभग 30 किलोग्राम है। भारत हर साल लगभग 18 मिलियन टन प्लास्टिक की खपत कर रहा है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन,जर्मनी जैसे उन्नत देशों की तुलना में बहुत कम है जहां प्रति व्यक्ति खपत बहुत अधिक है और अलग अलग देशों में 80-140 किलोग्राम के बीच है। इस प्रकार, यह आशा की जाती है कि भारत में भी, भविष्य में प्रति व्यक्ति खपत में वृद्धि होगी और लौह और इस्पात उद्योग आने वाले समय में पर्यावरण के सबसे अनुकूल तरीके से प्लास्टिक कचरे का सबसे अच्छा अंतिम उपयोगकर्ता होगा।

प्लास्टिक कचरे का उपयोग आज हमारी दुनिया के सामने सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है।  यह सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय और नैतिक मुद्दों में से एक बन गया है। खाद्य सामग्री को लपेटने का कागज़, प्लास्टिक बैग और पेय पदार्थ की बोतलों जैसे एक बार उपयोग होने वाली प्लास्टिक कचरे के ढेरों, नदियों को तेजी से भर रहे हैं, और उन्हें आसानी से पर्याप्त रूप से समाप्त नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार, लोहा और इस्पात उद्योग तारणहार हो सकता है और संसाधन दक्षता को बढ़ावा देगा।

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