नई दिल्ली : राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कहा कि अगर हमें हमारे संविधान के समावेशी आदर्शों को अर्जित करना है, तो न्यायपालिका में भी महिलाओं की भूमिका बढ़ाने की आवश्यकता है। वह 11 सितंबर को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के नए भवन परिसर के शिलान्यास समारोह में बोल रहे थे।
राष्ट्रपति ने 1921 में भारत की पहली महिला वकील, सुश्री कॉर्नेलिया सोराबजी को नामांकित करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय का उल्लेख करते हुए, उस निर्णय को महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक दूरदर्शी निर्णय करार दिया। उन्होंने कहा कि पिछले महीने सर्वोच्च न्यायालय में तीन महिला न्यायाधीशों सहित नौ न्यायाधीशों की नियुक्ति के साथ न्यायपालिका में महिलाओं की सहभागिता का एक नया इतिहास रचा गया। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त कुल 33 न्यायाधीशों में से चार महिला न्यायाधीशों की उपस्थिति न्यायपालिका के इतिहास में अब तक की सर्वाधिक संख्या है। उन्होंने कहा कि इन नियुक्तियों ने भविष्य में देश में एक महिला मुख्य न्यायाधीश का मार्ग प्रशस्त किया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि वास्तव में एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना तभी संभव होगी जब न्यायपालिका सहित सभी क्षेत्रों में महिलाओं की सहभागिता बढ़ेगी। श्री कोविंद ने कहा कि वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में कुल मिलाकर महिला न्यायाधीशों की संख्या 12 प्रतिशत से भी कम है। उन्होंने कहा कि अगर हमें अपने संविधान के समावेशी आदर्शों को हासिल करना है तो न्यायपालिका में भी महिलाओं की भूमिका को बढ़ाना होगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने न्याय पाने के लिए गरीबों के संघर्ष को बहुत निकट से देखा है। न्यायपालिका से सभी को उम्मीदें हैं, फिर भी आमतौर पर लोग अदालतों की मदद लेने से हिचकिचाते हैं। न्यायपालिका में लोगों के विश्वास को और बढ़ाने के लिए इस स्थिति को बदलने की आवश्यकता है। यह हम सभी का उत्तरदायित्व है कि समय पर न्याय मिले, न्याय व्यवस्था कम खर्चीली हो, निर्णय आम आदमी की समझ में आने वाली भाषा में हो, विशेषकर महिलाओं और कमजोर वर्गों को न्यायिक प्रक्रिया में न्याय मिले। उन्होंने कहा कि यह तभी संभव होगा जब न्यायिक प्रणाली से जुड़े सभी हितधारक अपनी सोच और कार्य संस्कृति में आवश्यक बदलाव लाएंगे और संवेदनशील बनेंगे।
राष्ट्रपति ने कहा कि लंबित मामलों के निपटारे में तेजी लाने से लेकर अधीनस्थ न्यायपालिका की कार्यकुशलता बढ़ाने तक, न्यायपालिका में आम जनता का विश्वास बढ़ाने के लिए कई पहलुओं पर निरंतर प्रयास करना समय की मांग है। उन्होंने कहा कि अधीनस्थ न्यायपालिका के लिए पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था, न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि और बजट के प्रावधानों के अनुसार पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने से हमारी न्यायिक प्रक्रिया सुदृढ़ होगी। उन्होंने विश्वास जताया कि कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय राज्य सरकार के सहयोग से ऐसे सभी क्षेत्रों में एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करेगा।
राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के लिए प्रयागराज के चयन का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रयागराज की प्रमुख पहचान शिक्षा के केंद्र के रूप में रही है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की महत्वपूर्ण भूमिका और शिक्षा के केंद्र के रूप में प्रयागराज की प्रतिष्ठा को देखते हुए यह इस विधि विश्वविद्यालय के लिए आदर्श स्थान है।
राष्ट्रपति ने कहा कि न्याय आधारित प्रणाली के नियम को सुदृढ़ बनाने में गुणवत्तापूर्ण कानूनी शिक्षा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विश्व स्तरीय कानूनी शिक्षा हमारे समाज और देश की प्राथमिकताओं में से एक है। उन्होंने कहा कि ज्ञान अर्थव्यवस्था के इस युग में हमारे देश में ज्ञान महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षी नीति कार्यान्वित की जा रही है। उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की स्थापना इसी दिशा में बढ़ाया गया एक कदम है।
राष्ट्रपति श्री कोविंद ने कहा कि किसी भी संस्थान के लिए प्रारंभ में ही सुविचारित तरीके से सभी पद्धतियों की स्थापना करना अपेक्षाकृत आसान होता है। जैसे ही प्रणाली स्थापित हो जाती है इसमें सुधार लाने की प्रक्रिया जटिल होती जाती है। इसलिए, उन्होंने सभी हितधारकों से उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में आरंभ से ही सर्वश्रेष्ठ व्यवस्थाओं को अपनाने की अपील की। उन्होंने कहा कि आधुनिक सुविधाओं का निर्माण, छात्रों का चयन, शिक्षकों की नियुक्ति, पाठ्यक्रमों की तैयारी, शिक्षाशास्त्र की शैलियों का चयन आदि सभी पहलुओं में विश्व के सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों को कार्यान्वित करने के द्वारा एक विश्व स्तरीय संस्थान का निर्माण किया जाना चाहिए।