नई दिल्ली : पंद्रहवें वित्त आयोग के काम करने के नियम और शर्तें (टीओआर)कई मायनों में खास और व्यापक दायरे वाली थी। आयोग को कई क्षेत्रों जैसे बिजली में प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन राशि, डीबीटी लागू करने, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन जैसे कदम राज्यों को लागू करने की सिफारिशें लागू करने को कही गईं थी। रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के लिए पूंजी जुटाने के लिए मैकेनिज्म की सिफारिश करने के नियम और शर्तें भी खास थीं। 15वें वित्त आयोगकी रिपोर्ट चार खंडों में तैयार की गई है। खंड एकऔर दो मेंपहले की तरह, मुख्य रिपोर्ट और अनुलग्नक शामिल हैं।
खंड-3 केंद्र सरकार पर आधारित है। इसमें मध्यम अवधि की चुनौतियों और आगे की रूपरेखा के साथ प्रमुख विभागों की विस्तृत भूमिका का विश्लेषण है। खंड-4पूरी तरह से राज्यों पर आधारित है। हमने प्रत्येक राज्य के वित्तीय व्यवस्था का बड़ी गहराई से विश्लेषण किया है और प्रत्येक राज्य की चुनौतियों को देखते हुए अलग-अलग सुझाव सामने रखे हैं । कुल मिलाकर, रिपोर्ट में 117 मुख्य सिफारिशें हैं। खंड-3और 4में केंद्रीय मंत्रालयों और राज्य सरकारों के लिए कई सुधारों के सुझाव दिए गए हैं।
उर्ध्वाधर हिस्सेदारी
- महामारी के दौरान विशेष रूप से संसाधनों की उपलब्धता लंबे समय तक बनाए रखने के लिए, 15वें वित्त आयोग ने राज्यों की हिस्सेदारी को 41 प्रतिशत बनाए रखने की सिफारिश की है। यह 2020-21 हमारी रिपोर्ट में दी गई सिफारिश जैसी ही है । यह राशि वितरण पूल के 42 प्रतिशत के समान स्तर पर है जैसा कि 14वें वित्त आयोगद्वारा अनुशंसित है। हालांकि, इसमें जम्मू-कश्मीर की स्थिति में बदलाव के बाद बने नए केन्द्र शासित प्रदेशों लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के आने से 1 प्रतिशत का आवश्यक समायोजन भी किया गया है।
- 15वें वित्त आयोगका आंकलन है कि अगले 5 साल में सकल कर राजस्व 135.2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा। उसमें से, डिविजबल पूल (सेस और सरचार्ज और कलेक्शन की लागत) में कटौती के बाद राजस्व 103 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान ।
- राज्यों को 41 प्रतिशत हिस्सेदारी के तहत 2021-26 अवधि में 42.2 लाख करोड़ रुपये मिलेंगे।
- इसी तरह राज्यों को 41 प्रतिशत हिस्सेदारी के तहत 42.2 लाख करोड़ रुपये और 10.33 लाख करोड़ रुपये अनुदान राशि के रूप में मिलेंगे (विस्तृत ब्यौरा बाद में दिया जाएगा)। इस तरह राज्यों की 2021-26 की अवधि के दौरान कुल हिस्सेदारी 50.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
- 15वां वित्त आयोगराज्यों को दी जाने वाली राशि (हिस्सेदारी + अनुदान) केंद्र के अनुमानित राजस्व का लगभग 34 प्रतिशत हस्तांतरित करता है। जिससे केंद्र सरकार के पास अपने राजकोषीय घाटे को नियंत्रित रखने और जरूरी खर्चों को पूरा करने के लिए सहूलियत बनी रहे।
क्षैतिज हिस्सेदारी
आवश्यकता, बराबरी, प्रदर्शन के सिद्धांत के आधार पर कुल हिस्सेदारी तय की गई है
पैमाना | हिस्सेदारी (प्रतिशत) |
जनसंख्या | 15.0 |
क्षेत्रफल | 15.0 |
वन और पारिस्थितिकी | 10.0 |
आय का अंतर | 45.0 |
कर और राजकोषीय प्रबंधन | 2.5 |
जनसांख्यिकीय | 12.5 |
कुल | 100 |
- क्षैतिज हिस्सेदारी पर, 15वां वित्त आयोग इस बात पर सहमत है कि 2011 की जनगणना के आधार पर जनसंख्या के आंकड़े बेहतर रूप से राज्यों की वर्तमान आवश्यकता को दर्शाते हैं। साथ ही उसके जरिएनिष्पक्ष मूल्यांकन का भी अवसर मिलता है।जिन राज्यों ने जनसांख्यिकीय मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन किया है, उन्हें 15वें वित्त आयोग ने12.5 प्रतिशत का हिस्सेदारी में वेटेज दिया है।
- 15वें वित्त आयोगने राजकोषीय स्तर पर बेहतर काम करने वाले राज्योंको पुरस्कृत करने के लिए कर संबंधी मानदंड को फिर से लागू किया है।
राजस्व घाटा अनुदान
- राज्यों और संघ के राजस्व और व्यय के आकलन के समान मानदंडों के आधार पर आंकते हुए, 15वें वित्त आयोग ने सत्रह राज्यों को राजस्व घाटा अनुदान (आरडीजी)2,94,514 करोड़ रुपये देने की सिफारिश की है।
स्थानीय निकायों की सरकार
- स्थानीय निकायों को 2021-26 की अवधि के लिए 4,36,361 करोड़ रुपये का कुल अनुदान दिया जाना चाहिए।
- इन अनुदानों में 8,000 करोड़ रुपये नए शहरों को काम के आधार पर दिए जाएंगे और साझा नगरपालिका सेवाओं के लिए 450 करोड़ दिए जाएंगे। जबकि ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिए 2,36,805 करोड़ रुपये, शहरी स्थानीय निकायों के लिए 1,21,055 करोड़ रुपये और स्थानीय निकायों के माध्यम से स्वास्थ्य अनुदान के लिए 70,051 करोड़ रुपये की राशि दी जाएगी।
- शहरी स्थानीय निकायों को जनसंख्या के आधार पर दो समूहों में वर्गीकृत किया गया है।और प्रत्येक को उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं और मांग के आधार पर अनुदान दिए गए हैं। मूल अनुदान केवल उन शहरों / कस्बों के लिए प्रस्तावित हैं, जिनकी जनसंख्या दस लाख से कम है। जबकि 10 लाख से ज्यादा की आबादी वाले शहरों के लिए, 100 प्रतिशत अनुदान मिलियन-प्लस सिटीज़ चैलेंज फंड (एमसीएफ)के जरिए प्रदर्शन के आधार पर जोड़े गए हैं।
स्वास्थ्य
- 15वें वित्त आयोगने सिफारिश की है कि राज्यों द्वारा 2022 तक उनके बजट का 8 प्रतिशत से अधिकस्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाया जाना चाहिए।
- डॉक्टरों की उपलब्धता में अलग-अलग राज्यों में असमानता को देखते हुए, अखिल भारतीय चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवा का गठन करना आवश्यक है, जैसा कि अखिल भारतीय सेवा अधिनियम, 1951 की धारा 2(ए) के तहत उल्लिखित है।
- स्वास्थ्य क्षेत्र को दी जाने वाली कुल सहायता 1,06,606 करोड़ रु की है, जो कि 15वें वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित कुल अनुदान सहायता का 10.3 प्रतिशत है। स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए यह अनुदान बिना शर्त दी जाएगी।
- 15वें वित्त आयोगने स्वास्थ्य अनुदान को शहरी स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों (एचडब्ल्यूसी), बिल्डिंग-कम सब सेंटर, पीएचसी, सीएचसी, ब्लॉक स्तरीय सार्वजनिक स्वास्थ्य इकाइयों के लिए कुल 70,051 करोड़ रुपये देने की सिफारिश की है। औरप्राथमिक स्वास्थ्य गतिविधियों के लिए बुनियादी ढांचे ग्रामीण क्षेत्रों में तैयार हो सके। जिसके जरिए उप केंद्र और पीएचसी को एचडब्ल्यूसी में परिवर्तित किया जाएगा। ये अनुदान स्थानीय निकायों को जारी किया जाएगा।
- 15वें वित्त आयोग ने शेष अनुदान राशि में से स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 31,755 करोड़ रुपये (स्थानीय निकायों के माध्यम से कुल 1,06,606 करोड़ रुपये, स्थानीय निकाय के माध्यम से राज्य सरकार के विशिष्ट अनुदान के रूप में70,051 करोड़ रुपये) देने की सिफारिश की है। इसमें से क्रिटिकल केयर अस्पतालों के लिए 15,265 करोड़ रुपये और सामान्य राज्यों के लिए 13,367 करोड़ और पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों के लिए 1,898 करोड़ रुपये दिए जाएंगे।
- 15वें वित्त आयोग ने सिफारिश की है कि स्वास्थ्य कर्मचारियों के प्रशिक्षण के लिए 13,296 करोड़ दिए जाएं। इसमें से 1,986 करोड़ पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों सामान्य राज्यों के लिए 11,310 करोड़ दिए जाएंगे।
प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन और अनुदान
- 15वें वित्त आयोग ने 2022-23 से 2025-26 तक कुल 4,800 करोड़ रुपये (प्रत्येक वर्ष 1,200 करोड़ रुपये) के अनुदान की सिफारिश की है। इसका उद्देश्य राज्यों को शैक्षिक गुणवत्ता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना है।
- इसके अलावा आयोग ने 6413 करोड़ रुपये, उच्च शिक्षा में क्षेत्रीय भाषाओं (मातृभाषा) में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों (चिकित्सा और इंजीनियरिंग) को प्रोत्साहित करने के लिएऑनलाइन शैक्षिक गतिविधियों को
बढ़ावा देने की सिफारिश की है। - 15वें वित्त आयोगने कृषि सुधारों को लागू करने के लिए सभी राज्यों के लिए प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन के रूप में 45,000 करोड़ रुपये देने की सिफारिश की है।
- नीति आयोगके मॉडल कानून की तर्ज पर भूमि संबंधी कानूनों में संशोधन
- भूजल स्टॉक को बनाए रखने और उसको बढ़ावा देने वाले राज्यों को प्रोत्साहन आधारित अनुदान।
- कृषि निर्यात में वृद्धि
- तिलहन,दालों और लकड़ी और लकड़ी आधारित उत्पादों का उत्पादन
- उपरोक्त के अलावा, निम्नलिखित अनुदान का जानकारी तालिका में दी गई है।
क्रम संख्या | अनुदान क्षेत्र | 2021-26 |
1 | राजस्व घाटा अनुदान | 294514 |
2 | स्थानीय निकाय अनुदान | 436361 |
3 | आपदा प्रबंधन अनुदान | 122601 |
4 | सेक्टर आधारित अनुदान | 129986 |
स्वास्थ्य क्षेत्र | 31755 | |
स्कूली शिक्षा | 4800 | |
उच्च शिक्षा | 6143 | |
कृषि आधारित सुधारों का अमल | 45000 | |
V. | पीएसजीएसवाई योजना के सड़क रख-रखाव | 27539 |
न्यायिक | 10425 | |
लेखा | 1175 | |
आकांक्षी जिले और ब्लॉक | 3150 | |
5 | राज्य आधारित | 49599 |
कुल | 1033062 |
रक्षा और आंतरिक सुरक्षा
- वैश्विक संदर्भ में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए मौजूदा रणनीतिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, 15वें वित्त आयोगने अपने नजरिए सेसकल राजस्व प्राप्तियों में संघ और राज्यों की हिस्सेदारी को फिर से राजस्व प्राप्तियों में तय किया है। यह केंद्र को विशेष फंडिंग तंत्र बनाने स्थापित करने में सक्षम बनाएगा ।
- केंद्र सरकार भारत के सार्वजनिक खाते में, कभी खत्म नहीं होने वाली निधि के तहतरक्षा और आंतरिक सुरक्षा के लिए आधुनिकीकरण कोष(एमएफडीआईएस) का गठन कर सकती है। 2021-26 की अवधि में प्रस्तावित एमएफडीआईएस का कुल 2,38,354 करोड़ रुपये का अनुमानित कोष हो सकता है।
आपदा जोखिम प्रबंधन:
- आपदा प्रबंधन अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर शमन निधि की स्थापना की जानी चाहिए। शमन निधि का उपयोग उन स्थानीय स्तर और समुदाय-आधारित हस्तक्षेपों के लिए किया जाना चाहिए जो किसी भी तरह के आपदा के जोखिम को कम करते हैं और पर्यावरण के अनुकूल बस्तियों और आजीविका परंपराओं को बढ़ावा देते हैं।
- एसडीआरएमएफ के लिए, 15वें वित्त आयोगने राज्यों को 2021-26 की अवधि में आपदा प्रबंधन के लिए 1,60,153 करोड़ रुपये के कुल राशि देने की सिफारिश की है। इस कोष में केंद्र सरकार 1,22,601 करोड़ और राज्यों का 37,552 करोड़ रुपये निवेश करेंगे।
- 15वें वित्त आयोगने कुल राशि के लिए छह क्षेत्रों में आवंटन की सिफारिश की है। प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिए 11,950 करोड़, यानी दो एनडीआरएस (विस्तार और आधुनिकीकरण और अग्निशमन सेवाओं के आधुनिकीकरण और विस्थापित लोगों के पुर्नवास) के लिए, जबकिएनडीएमएफके तहत चार (12 सर्वाधिक सूखा प्रभावित राज्यों के लिए त्वरित सहायता, 10 पहाड़ी राज्यों मेंभूकंपीय और भूस्खलन जोखिम प्रबंधनऔर7 सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में बाढ़ के जोखिम को कम करना और कटाव को रोकने के उपाय)।
राजकोषीय प्रबंधन
- संघ और राज्यों दोनों के वित्तीय घाटे और कर्ज लेने के रास्ते तय करना ।
- बिजली क्षेत्र सुधारों में प्रदर्शन के आधार पर राज्यों को अतिरिक्त उधार देना।
- सीएसएस को दी गई राशि के तहत वार्षिक खर्च की एक सीमा राशि तय की जानी चाहिए, जिसमें एक सीमा से प्रशासन द्वारा कम खर्च करने पर, उसकी प्रासंगिकता को साबित करना होगा। चल रही योजनाओं की समय अवधि वित्त आयोगों की समय अवधिसे जोड़ा जाना चाहिए। इसके अलावा सीएसएस का तीसरे पक्ष से मूल्यांकन एक निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरा किया जाना चाहिए। निगरानी सूचना का प्रवाह नियमित रुप से होना चाहिए। जिससें इसमें बेहतर परिणाम और विश्वसनीय जानकारी मिल सके।
- 15वें वित्त आयोगने चुनौतियों और समकालीन अनिश्चितताओं का विश्लेषण करते हुए कहा है कि हम मानते हैं कि एफआरबीएम अधिनियम में एक बड़े पुनर्गठन की आवश्यकता है। इसी आधार पर उसने सिफारिश की है कि तय समय के अंदर ऋण स्थिरता के लक्ष्य को हासिल कर उसे परिभाषित करना जरूरी है। जिसकी एक उच्च स्तरीय अंतर-सरकारीय समूह द्वारा समीक्षा की जानी चाहिए। यह उच्च शक्ति वाला समूह नए एफआरबीएमढांचे को तैयार कर सकता है और इसके कार्यान्वयन की देखरेख कर सकता है। यह महत्वपूर्ण है कि केंद्र और राज्य सरकारें समूह की सिफारिशों के आधार पर अपने एफआरबीएमअधिनियमों में संशोधन करें, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनके कानून राजकोषीय स्थिरता के अनुरूप हो। इस उच्चस्तरीय अंतर-सरकारीय समूह को 15वें वित्त आयोग की विविध सिफारिशों के कार्यान्वयन की देखरेख करने का काम भी सौंपा जा सकता है।
- राज्य सरकारें स्वतंत्र सार्वजनिक ऋण प्रबंधन सेल के गठन की संभावना तलाश सकती हैं जो उनके ऋण कार्यक्रम को कुशलतापूर्वक लागू कर सकेगा।