सुभाष चंद्र चौधरी
नई दिल्ली। राजमाता विजयाराजे सिंधिया का सम्पूर्ण जीवन मानवता के प्रति समर्पित था। उन्होंने सत्ता को हमेशा ही लोक कल्याण का एक माध्यम मात्र ही समझा। उनकी जन्म शताब्दी के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज सौ रुपए का विशेष सिक्का जारी किया।
इस अवसर पर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि राजमाता सिंधिया कहती थीं जो हाथ पालने को झुला सकते हैं वो विश्व पर राज भी कर सकते हैं। आज भारत की यही नारी शक्ति हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है और देश को आगे बढ़ा रही हैं।
उन्होंने कहा कि ये भी कितना अद्भुत संयोग है कि रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए उन्होंने जो संघर्ष किया था, उनकी जन्मशताब्दी के साल में ही उनका ये सपना भी पूरा हुआ है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि राजमाता के आशीर्वाद से देश आज विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है। गाँव, गरीब, दलित-पीड़ित-शोषित-वंचित, महिलाएं आज देश की पहली प्राथमिकता में हैं। लेकिन जब वो भगवान की उपासना करती थीं, तो उनके पूजा मंदिर में एक चित्र भारत माता का भी होता था। भारत माता की भी उपासना उनके लिए वैसी ही आस्था का विषय था।
श्री मोदी का कहना था कि राजमाता एक आध्यात्मिक व्यक्तित्व थीं। साधना, उपासना, भक्ति उनके अन्तर्मन में रची बसी थी।ऐसे कई मौके आए जब पद उनके पास तक चलकर आए। लेकिन उन्होंने उसे विनम्रता के साथ ठुकरा दिया। एक बार खुद अटल जी और आडवाणी जी ने उनसे आग्रह किया था कि वो जनसंघ की अध्यक्ष बन जाएँ। लेकिन उन्होंने एक कार्यकर्ता के रूप में ही जनसंघ की सेवा करना स्वीकार किया।
प्रधानमंत्री ने बल देते हुए कहा कि राष्ट्र के भविष्य के लिए राजमाता ने अपना वर्तमान समर्पित कर दिया था।
देश की भावी पीढ़ी के लिए उन्होंने अपना हर सुख त्याग दिया था। राजमाता ने पद और प्रतिष्ठा के लिए न जीवन जीया, न राजनीति की।हम में से कई लोगों को उनसे बहुत करीब से जुड़ने का, उनकी सेवा, उनके वात्सल्य को अनुभव करने का सौभाग्य मिला है।
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आजादी के इतने दशकों तक, भारतीय राजनीति के हर अहम पड़ाव की वो साक्षी रहीं। आजादी से पहले विदेशी वस्त्रों की होली जलाने से लेकर आपातकाल और राम मंदिर आंदोलन तक, राजमाता के अनुभवों का व्यापक विस्तार रहा है।
उन्होंने कहा कि पिछली शताब्दी में भारत को दिशा देने वाले कुछ एक व्यक्तित्वों में राजमाता विजयाराजे सिंधिया भी शामिल थीं। राजमाताजी केवल वात्सल्यमूर्ति ही नहीं थी। वो एक निर्णायक नेता थीं और कुशल प्रशासक भी थीं।