चंडीगढ़, 30 अगस्त: खरीफ-2020 के दौरान कपास की फसल को सफेद मक्खी के हमले से बचाने के उद्देश्य से हरियाणा कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने किसानों को एहतियाती उपाय करने की सलाह दी है, जिसमें नीम के घोल और कीटों के हमले की निगरानी रखने जैसे उपाय शामिल हैं।
कृषि और किसान कल्याण मंत्री श्री जे पी दलाल ने आज यहां यह जानकारी देते हुए बताया कि विभाग के अधिकारी सिरसा, हिसार, फतेहाबाद, जींद और भिवानी जिलों, जो राज्य में कपास के 80 प्रतिशत क्षेत्र में आते हैं, में सफेद मक्खी के हमले की घटनाओं की निगरानी कर रहे थे। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के वैज्ञानिकों ने भी स्थिति का जायजा लेने तथा उपाय सुझाने के लिए विभिन्न जिलों में खेतों का दौरा किया।
उन्होंने कहा कि सिरसा, फतेहाबाद और जींद जिलों में सफेद मक्खी की घटनाएं इकनॉमिक थ्रेसहोल्ड लेवल (ईटीएल) से कम पाई गई, जबकि जिला हिसार के कुछ गाँवों में थोड़े क्षेत्र में ईटीएल से ऊपर पाया गया। जिला भिवानी में सफेद मक्खी का संक्रमण स्तर लगभग 50 प्रतिशत है।
संक्रमण को आगे बढऩे से रोकने के लिए विभाग ने चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार, केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, सिरसा और बेयर क्रॉप साइंस द्वारा सुझाए गए उपायों सहित एक एडवाइजरी जारी की है, जिसमें प्रति एकड़ 40 से 50 कम लागत वाले पीले चिपचिपे ट्रैप की स्थापना करना शामिल है।
एडवाइजरी में यह भी कहा गया है कि बुवाई के 70 दिन बाद तक, किसान एक इमल्शन के दो स्प्रे कर सकते हैं, जिसमें एक प्रतिशत नीम का तेल और 0.05 से 0.10 प्रतिशत कपड़े धोने का डिटर्जेंट, या निम्बीसीडीन (0.03 प्रतिशत या 300 पीपीएम) शामिल है। यह इमल्शन एक लीटर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया के बाद एक अन्य इमल्शन के दो स्प्रे करने होंगे, जिसमें कैस्टर ऑयल और 0.05 से 0.10 प्रतिशत कपड़े धोने वाला डिटर्जेंट शामिल है। उन्होंने कहा कि किसानों को पूरे सीजन के दौरान, जब भी आवश्यक हो, नीम आधारित कीटनाशकों का प्रयोग करते रहना चाहिए।
उन्होंने कहा कि किसान मध्य अगस्त के बाद कीट विकास नियामक कीटनाशकों जैसे डाईफेन्थाईयूरान (पोलो) नामक दवा की 200 ग्राम मात्रा, फ्लोनिकामिड 50डब्ल्यूजी दवा की 80 ग्राम मात्रा, डाईनॉटिफेयूरान 20 प्रतिशत एसजी की 60 ग्राम मात्रा और क्लोथियानिडिन 50डब्ल्यूजी की 20 ग्राम मात्रा को प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव कर सकते हैं। ये कीटनाशक सफेद मक्खी के खिलाफ प्रभावी हैं और पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं। सीजऩ के बाद यानी 15 सितंबर के बाद सफेद मक्खी के प्रबंधन के लिए इथिऑन की 800 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से सीमित मात्रा में उपयोग करने की भी सलाह दी गई है।
अगस्त-सितंबर में सफेद मक्खी की आबादी ईटीएल को पार कर जाने पर, डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ईसी या ऑक्सिडेमेटन मिथाइल 25 प्रतिशत ईसी और नीम आधारित कीटनाशक (निम्बीसीडीन या अचूक) की एक लीटर की मात्रा को 250 लीटर पानी के साथ मिलाकर स्प्रे कर सकते हैं। इसके अलावा, सफेद मक्खी की निम्फल जनसंख्या पर काबू पाने के लिए स्पाइरोमेसिफेन (ओबेरोन) 22.9 प्रतिशत एससी की 200 मि.ली. या पायरीप्रोक्सीफेन (डायटा) 10 प्रतिशत ईसी नामक दवा की 400 मि.ली. मात्रा को प्रति एकड़ की दर से 200 से 250 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव कर सकते हैं। एक ही कीटनाशक का लगातार छिडक़ाव नहीं किया जाना चाहिए।
एडवाइजरी में यह भी बताया गया है कि यदि अंडे और निम्फ की अधिक आबादी के कारण पत्तियों के नीचे थैली कवक दिखाई देता है, तो किसान स्पाइरोमेसिफेन की 250 मि.ली. या पायरीप्रोक्सीफेन दवा की 400 से 500 मि.ली. या ब्यूप्रोफेजिन 25 एससी की 400 मि.ली. मात्रा को प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव कर सकते हैं। यदि सफेद मक्खी और थ्रिप्स का मिश्रित संमक्रमण देखने को मिलता है, तो किसानों को डाईफेन्थाईयूरान नामक दवा की 200 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ की दर से उपयोग करना चाहिए और कीटनाशकों का मिश्रण नहीं करना है। यदि सफेद मक्खी और लीफहॉपर का मिश्रित संक्रमण दिखाई दे तो किसानों को फ्लोनिकामिड 50 डब्ल्यूजी दवा की 80 ग्राम मात्रा या डाईनॉटिफेयूरान 20 प्रतिशत एसजी की 60 ग्राम मात्रा को प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव कर सकते हैं।
खरीफ -2020 के दौरान राज्य के 14 जिलों में लगभग 7.36 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती की जा रही है। क्रैश क्रॉप के तहत जिला सिरसा, हिसार, फतेहाबाद, जींद और भिवानी इस सीजन में क्रमश: 2.10 लाख हेक्टेयर, 1.47 लाख हेक्टेयर, 0.72 लाख हेक्टेयर, 0.70 लाख हेक्टेयर और 0.88 लाख हेक्टेयर के साथ कपास की खेती में अग्रणी हैं। 95 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र बीटी कपास के अंतर्गत है।
सफेद मक्खी पत्ती कर्ल वायरस रोग के प्रसार में एक वेक्टर के रूप में कार्य करती है और यह एक प्रवासी कीट है, जिससे इस पर नियंत्रण करना बहुत मुश्किल हो जाता है। इस कीट के अत्यधिक हमले से हरे कपास के पत्ते काले हो जाते हैं, इस प्रकार प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है और उपज और उत्पाद की गुणवत्ता में काफी कमी आती है।