नई दिल्ली : पहला बजट पेश करने से पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को मोदी 2.0 सरकार का आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 संसद में पेश कर दिया। आर्थिक सर्वेक्षण में वित्त वर्ष के लिए 7 फीसदी जीडीपी ग्रोथ का अनुमान लगाया गया है, जबकि पिछले वित्त वर्ष यानी 2018-19 में यह 6.8 फीसदी रही थी। इस आर्थिक सर्वेक्षण को मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने तैयार किया है। इस सर्वेक्षण में मजबूत भारतीय इकोनॉमी का अनुमान जाहिर किया गया है और भावी चुनौतियों के बारे में बताया गया है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि जहां लाभ नहीं होता है वहां निजी क्षेत्र निवेश नहीं करता है, इसलिए सरकार को इस क्षेत्र में हस्तक्षेप करना चाहिए और लोगों के कल्याण के लिए देश के सामाजिक क्षेत्र और गरीबों की बेहतरी के लिए डाटा तैयार किया जाना चाहिए।
सरकारों के पास पहले से ही नागरिकों के प्रशासनिक, सर्वेक्षण, संस्थागत और ट्रांजेक्शन का डाटा मौजूद है, लेकिन ये डाटा यानी सूचना विभिन्न सरकारी निकायों में मौजूद है और इन्हें एक जगह एकत्रित किए जाने की आवश्यकता है। इन सूचनाओं के इस्तेमाल के जरिये सरकार नागरिकों के जीवन को आसान बना सकती है। इन सूचनाओं के आधार पर उपयुक्त नीतियां तैयार की जा सकती है जिससे सार्वजनिक कल्याण के कार्यों को अंजाम देने में सहूलियत होगी। साथ ही इससे सरकारी सेवाओं में जिम्मेदारी का निर्धारण सुनिश्चित करने के साथ बड़े पैमाने पर सुशासन में नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सकेगी
समीक्षा में कहा गया है कि हाल के वर्षों में डाटा का महत्व बढ़ा है और इसको लेकर खर्च में भी कमी आई है जबकि न्यूनतम स्तर पर लोगों को इससे मिलने वाले लाभ में कई गुना बढ़ोतरी हुई है। इसीलिए समाज में डाटा का उपयोग बढ़ा बढ़ा है। आर्थिक समीक्षा में यह बात भी कही गई है कि निजी क्षेत्र ने जहां लाभ दिखा वहां डाटा जुटाने में उल्लेखनीय काम किया है, लेकिन सरकार को उन सामाजिक क्षेत्रों में हस्तक्षेप करना चाहिए जहां डाटा एकत्रित करने के लिए निजी क्षेत्र पर्याप्त रूप से निवेश नहीं कर पाया है। निजता की सुरक्षा और गोपनीय सूचनाओं को साझा करने के लिए पहले से ही उन्नत प्रौद्योगिकी उपलब्ध है, ऐसी स्थिति में सरकार निजता कानून के दायरे में नागरिकों की बेहतर के लिए डाटा तैयार कर सकती है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि हाल के वर्षों में प्रकाशित डाटा में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। वैश्विक डाटा का बुनियादी ढांचा विश्वसनीय, तेज और सुरक्षित है। कुछ दशक पहले डाटा जुटाने के लिए काफी परिश्रम का काम हुआ करता था, लेकिन आज शून्य लागत पर इसे आसानी से ऑनलाइन एकत्रित किया जा सकता है, भले ही यह देशभर में बिखरा हुआ हो। डाटा साइंस के जरिये इस क्षेत्र में निरंतर नवाचार किया जा रहा है ताकि सूचनाओं का अधिकतम इस्तेमाल किया जा सके। साथ ही न्यूनतम खर्च पर डाटा एकत्रित करने, संग्रहण, प्रसंस्करण और उसके विस्तार में सहूलियत मिल रही है, जो कि अभूतपूर्व है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि विभिन्न मंत्रालयों में बिखरे पड़े डाटाबेस को एक जगह एकत्रित करके नागरिकों को बेहतर सेवाओं का अनुभव कराया जा सकता है, यानी सरकार इसके जरिये अपने नागरिकों को बेहतर सेवा मुहैया करा सकती है। इससे कल्याणकारी योजनाओं में त्रुटि की आशंका भी कम होगी। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि विभिन्न क्षेत्रों में एकत्रित किए गए डाटा का अब तक इस्तेमाल नहीं हो पाया है। सरकार को चाहिए कि सामाजिक रूप से जरूरी डाटा का उपयोग सुनिश्चित किया जाए। सरकार को इस क्षेत्र में कदम उठाने की आवश्यकता है। लोगों की बेहतरी के लिए डाटा को एकत्रित करने के दौरान निजता की जटिलता को ध्यान रखा जाना चाहिए और इनके उपयोग में पारदर्शिता बरतनी होगी। समीक्षा में कहा गया है कि डाटा को लोगों के द्वारा, लोगों के लिए एकत्रित किया जाना चाहिए।
निजता की सुरक्षा और गोपनीय सूचनाओं को साझा करने के लिए पहले से ही उन्नत प्रौद्योगिकी उपलब्ध है, ऐसी स्थिति में सरकार निजता कानून के दायरे में नागरिकों की बेहतर के लिए डाटा तैयार कर सकती है। डाटा लोगों द्वारा लोगों के लिए जुटाया जाना चाहिए।
जन कल्याण लिए डाटा के बारे में सोचते हुए इस बात का ख्याल रखना होगा कि अभिजात्य लोगों की निजता की प्राथमिकता गरीबों पर न थोपी जाए। आर्थिक समीक्षा में इसकी परिकल्पना की गई है कि डाटा एकत्रित करते वक्त लोगों की सहमति ली जाए या कानूनी दायरे में राज्यों द्वारा डाटा एकत्रित किया जाए। डाटा एकत्रित करने का काम चार चरणों-एकत्र, संग्रहण, प्रसंस्करण, और विस्तार- में किया जाना है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत आधार के जरिये डाटा और प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर क्रांति कर रह है। सरकार को डाटा को लोगों की बेहतरी के नजरिये से देखना चाहिए और इस क्षेत्र में निवेश किए जाने की जरूरत है। जनकल्याण के लिए एकत्रित किए जाने वाले डाटा को कानून के दायरे में एकत्रित किया जा सकता है। डाटा के महत्व को राष्ट्रीय राजमार्गों के महत्व के सामान ही समझा जाना चाहिए। संविधान की भावना के तहत डाटा लोगों का, लोगों के द्वारा, लोगों के लिए होना चाहिए।
आर्थिक सर्वेक्षण 2019 के मुताबिक, तमाम मुश्किलों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था 2018-19 में 6.8 फीसदी की ग्रोथ बरकरार रखने में कामयाब रही। इसमें 2019-20 में 7 फीसदी ग्रोथ रहने की उम्मीद जाहिर की है। इसके साथ ही बीते 5 साल के दौरान औसत महंगाई दर घटकर लगभग आधी रह गई।
आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, वित्त वर्ष 2018-10 में राजकोषीय घाटा 5.8 फीसदी रहा, जबकि संशोधित बजट अनुमान 3.4 फीसदी रहा था।आर्थिक सर्वेक्षण 2019 में भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने पर जोर दिया गया है।
इसके मुताबिक, 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनने के लिए सालाना 8 फीसदी की ग्रोथ रेट बरकरार रखना जरूरी है। सर्वेक्षण के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष में अच्छी इकोनॉमिक ग्रोथ रहने का अनुमान है। अभी तक हाल के दौर में रही सुस्ती की वजह चुनाव रहे थे।आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, वित्त वर्ष 2019-20 में यदि इकोनॉमिक ग्रोथ सुस्त रहती है तो राजस्व संग्रह को झटका लग सकता है। आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, 2018 के मध्य से रूरल वेज ग्रोथ बढ़ने लगी है।