सुभाष चौधरी
नई दिल्ली । भारत में प्रत्येक चुनाव चाहे लोकसभा हो, विधानसभा हों या फिर पंचायत या फिर स्थानीय शहरी निकायों के चुनाव हर बार नए राजनीतिक दल चुनावी क्षितिज पर आने का सिलसिला बदस्तूर जारी है।परम्परा बन गयी है कि आपका किसी से वैचारिक मतभेद हुआ आप अपना दल बना लें और भारतीय संविधान आपको इसकी इजाजत बड़ी आसानी से देता है। जैसे आप देश में प्रकाशित होने वाले अखबारों और न्यूज चैनेलों और न्यूज पोर्टल्स के अजीबोगरीब नाम देखते हैं बस उसी ढर्रे पर आज राजनीतिक दलों की बाढ़ आ रही है। सस्ती लोकप्रियता वाले नाम जबकि लोगों को दिग्भ्रमित करने वाले नाम यहाँ तक कि अपने माता पिता की शख्सियत वाली फसल काटने वाले नाम भी आप रख सकते हैं ठीक उसी तरह जैसे आज शिक्षा जगत में स्कूल कालेज और यहां तक कि यूनिवर्सिटी के नाम भी देखने को मिलते हैं।इस लोकसभा चुनाव में आपको तीन हजार राजीनीतिक दलों में से अपने सांसद चुनने होंगे। क्योंकि चुनाव आयोग में राजनीतिक दलों के नवीनतम डेटा के अनुसार देश में कुल 2293 राजनीतिक दल हैं।
सबसे बड़ी पार्टी’…जी हाँ यह आपके लिए सवाल नहीं है। कौन सबसे बड़ी पार्टी है इस पर आपको दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह खुद ही एक पार्टी का नाम है और इस तरह की छोटी-बड़ी तकरीबन 2300 राजनीतिक पार्टियां चुनाव आयोग में पंजीकृत हैं।
चुनाव आयोग में पंजीकृत इन पार्टियों में से सात ‘‘मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय’’ और 59 ‘‘मान्यता प्राप्त राज्य’’ पार्टियां हैं। यानी राष्ट्रीय दलों की तुलना में क्षेत्रीय पार्टियों की संख्या 8 गुना अधिक है। कारण स्पष्ट है कि भारत में राजनीतिक दलों का पंजीकरण बेहद आसान है और इसकी संख्या निर्धारित नहीं है कि देश में अधिकतम कितने राजनीतिक दल पंजीकृत हो सकते हैं या चुनावी मैदान में उतर सकती है। इसलिए कोई भी कभी भी अपना दल पंजीकृत करवा सकता है। इससे आगे बढ़ कर यहां निर्दलीय चुनाव यानी अगर आपका कोई दल नहीं है तब भी किसी भी प्रकार का चुनाव लड़ सकते हैं। यहाँ तक कि देश के राष्ट्रपति पद का चुनाव भी लड़ सकते हैं।
गौरतलब है कि आम तौर पर चुनाव आने से पहले दलों के पंजीकरण का सिलसिला शुरू हो जाता है। बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले इस देश के किसी भी कोने में जब भी कोई विधानसभा या फिर लोक सभा का चुनाव आता है कई नए राजनीतिक दल सामने आ जाते हैं। किसी का विचार किसी दूसरे दल से नहीं मिला बस अपनी पार्टी बना लेते हैं। इस बार भी लोकसभा चुनाव से पहले ढेर सारे राजनीतिक दलों ने पंजीकरण के लिए चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया। इसमें हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, जम्मू कश्मीर और हरियाणा जैसे राज्यों से भी कई नेताओं ने अपने अपने राजनीतिक दल पंजीकृत कराने का आवेदन किया है। इसलिए इस बार भी इस सूची में कई नए दल शामिल हो सकते हैं।
ध्यान देने वाली बात यह है कि अकेले फरवरी और मार्च के बीच में अलग अलग राज्यों से 149 राजनीतिक दलों ने आयोग में अपना पंजीकरण करवाया। राजनीतिक दलों के पंजीकरण का यह सिलसिला लोकसभा चुनावों की घोषणा के एक दिन पहले, नौ मार्च तक चला। कुछ को मान्यता भी मिल गयी है। अब स्थिति यह है कि चुनाव आयोग को इनके लिये चुनाव चिन्ह की सूची भी नए सिरे से रिवीजन करने की जरूरत पड़ रही है।
पिछले साल नवंबर-दिसंबर के दौरान मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, मिजोरम और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों से पहले 58 राजनीतिक पार्टियों ने अपना पंजीकरण कराया था।
हालत यह है कि राजनीतिक दलों को अब कोई अच्छा नाम भी नहीं मिल पा रहा है। कुछ तो अपने पुराने दलों की प्रति लिपि दिखने के लिए मिलता जुलता नाम रख रहे हैं तो कुछ ने जनता की नजरों में धूल झोंकने के लिए बिल्कुल नया नाम रख लिया है जिससे मतदाता उनको सबसे अलग समझे और अपना समर्थन दे दे।
इस मद में केवल राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता ही आगे नहीं हैं बल्कि अब तो कई सेवानिवृत्त नौकरशाह जिनमें आईएएस व आईपीएस भी हैं , जज, वकील, प्रोफेसर, डॉक्टर, इंजीनयर, पत्रकार, व्यावसायी, उद्यमी, मजदूर और यहां तक कि सेना के सेवानिवृत्त अधिकारी व पूर्व सैनिक एवं अन्य व्यवसायों से संबंध रखने वाले महानुभाव भी शामिल हैं।
अगर एक नजर हाल-फिलहाल आयोग में पंजीकरण करने वाली राजनीतिक पार्टियों के नाम पर नजर डालें तो पता चलता है कि इसमें भी आपको भारत की विविधत दिखेगी। हाल में ही आयोग में दर्ज होने वाली पार्टियों में ‘भरोसा पार्टी’, ‘राष्ट्रीय साफ नीति पार्टी’ और ‘सबसे बड़ी पार्टी’’ सरीखे राजनीतिक दल शामिल हैं। बिहार के सीतामढ़ी से ‘बहुजन आजाद पार्टी’, उत्तर प्रदेश के कानपुर से ‘सामूहिक एकता पार्टी’ और तमिलनाडु के कायंबतूतर से ‘न्यू जेनरेशन पीपुल्स पार्टी’ ने अपना पंजीकरण कराया है। इनके अलावा हरियाणा से जननायक जनता पार्टी भी इस लाइन में है।
बहरहाल, ये पंजीकृत, लेकिन गैर-मान्यताप्राप्त राजनीतिक पार्टियां हैं। उनका अपना कोई नियत विशिष्ट चुनाव चिह्न नहीं होता है जिसपर ये चुनाव लड़ सकें। उन्हें चुनाव आयोग से जारी ‘मुक्त चुनाव चिह्नों’ में से चुनना होगा। आयोग के नवीनतम सर्कुलर के अनुसार ऐसे 84 चुनाव चिह्न हैं। एक बात और, इन पार्टियों के उम्मीदवारों को हर चुनाव क्षेत्र में अलग-अलग चुनाव चिह्नों पर भी लड़ना पड़ सकता है।