नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने पुरी में जगन्नाथ मंदिर के प्रबंधन से संबंधित मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार से कहा कि वह वस्तुस्थिति का अध्ययन करने के लिये मंदिर जायें।
न्यायमूर्ति ए के सीकरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने ओडिशा सरकार के वकील की दलीलें सुनने के बाद न्याय मित्र को जगन्नाथ मंदिर जाने के लिये कहा। राज्य सरकार के वकील का कहना था कि न्याय मित्र को स्थिति का आकलन करने के लिये स्वयं मंदिर जाना चाहिए।
पीठ ने जब कुमार से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वह 22 और 23 फरवरी को मंदिर जायेंगे और फिर न्यायालय को वस्तुस्थिति से अवगत करायेंगे।
शीर्ष अदालत जगन्नाथ मंदिर में श्रद्धालुओं की कठिनाइयों और मंदिर के सेवकों द्वारा कथित रूप से परेशान किये जाने की घटनाओं को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है।
इस मामले में सुनवाई के दौरान रंजीत कुमार ने कहा कि मंदिर में श्रद्धालुओं के लिये कतार व्यवस्था का नहीं होना तथा भीड़ के प्रबंधन का अभाव एक बड़ा मुद्दा है।
इस पर राज्य सरकार के वकील ने कहा कि इस धर्मस्थल की संरचना भिन्न होने की वजह से श्रद्धालुओं के लिये कतार व्यवस्था करना आसान नहीं है।
उन्होंने कहा कि न्याय मित्र वहां जाकर स्वयं स्थिति का आकलन कर सकते हैं। इस बारे में न्याय मित्र की सहमति के बाद पीठ ने राज्य सरकार से कहा कि उनकी यात्रा के लिये सभी बंदोबस्त किये जायें।
पीठ ने यह भी कहा कि पुरी के जिला न्यायाधीश, जिन्होंने इस धर्मस्थल के प्रबंधन के बारे में पहले अपनी रिपोर्ट शीर्ष अदालत को सौंपी थी, और मंदिर के प्रशासक न्याय मित्र की मदद करेंगे।
इसके साथ ही पीठ ने इस याचिका पर सुनवाई 27 फरवरी के लिये स्थगित कर दी।
इससे पहले, कुमार ने पुरी के जिला न्यायाधीश द्वारा पिछले साल शीर्ष अदालत को सौंपी अपनी अंतरिम रिपोर्ट का जिक्र किया जिसमें मंदिर के सेवकों द्वारा श्रद्धालुओं को कथित रूप से परेशान किये जाने का मुद्दा उठाया गया था।
उन्होंने कहा कि इन तमाम सिफारिशों के बावजूद राज्य सरकार या प्रशासक कुछ नहीं कर रहे हैं या फिर वे यह सब करना नहीं चाहते हैं जिसकी वजह से श्रद्धालु और दर्शनार्थी परेशान हो रहे हैं।
इस बीच, एक अधिवक्ता ने सेवकों का मुद्दा उठाने का प्रयास किया तो न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा, ‘‘हम अपने अनुभव के आधार पर आपसे कह रहे हैं कि वहां शोषण होता है।’’
शीर्ष अदालत ने रंजीत कुमार को इस मामले में नौ जनवरी को न्याय-मित्र नियुक्त किया था।
इससे पहले, न्यायालय ने इस मामले में न्याय मित्र की भूमिका से मुक्त करने का वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम का अनुरोध पिछले साल 30 नवंबर को स्वीकार कर लिया था।