चंपारण में एक गुजराती ने रचा इतिहास तो दूसरे ने किया निराश
नीरज कुमार
सत्याग्रह एक पवित्र शब्द है, इससे नहीं हो खेलवाड इसकी साधना वही कर सकता है,जिसने असत्य का त्याग किया हो, और झूठ का सहारा नहीं लेता हो,जो शेष बचता है,वही सत्य है।जो अविनाशी है, और उस प्रकाश से लोगो में ज्ञानदीप प्रकाशित करता हो. कहा जाता है कि मनुष्य में भीतरी और बाहरी स्वच्छता होने पर सत्य प्रगट होता है। जो परम सत्य है। जब इसको प्राप्त कर लेता है, तो वह पूरे विश्व और ब्रह्मांड को प्रकाशित करता है। ऐसे में”सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह” लोगो के समझ से परे है।
महात्मा गांधी के हृदय में सत्य का सामान था । और वे जन मानस के दुखो को समझते थे। और लोगों ने उन्हें महात्मा की उपाधि के रूप में चंपारण के लोगों ने सम्मान दिया। इसलिए विश्व के मानचित्र पर अपनी एक दीप मुंबई ज्वाला रूपी प्रकाश छोड़ दी। और विश्व को नया इतिहास मिला । और भारत देश को आजादी मिली। वही हमारे देश के प्रधान सेवक अपने देश के प्रति सजग और समर्पित है। और उन्होंने अपना समर्पण दिखाते हुए महात्मा गांधी की कर्मस्थली चंपारण से शौचालय निर्माण की दिशा में सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह के रूप में पहल की है। पर उन्होंने शिक्षा और चिकित्सा में विकास की चंपारण के लोगो की मांग को नकार कर महात्मा गांधी की कर्मस्थली चंपारण की अनदेखी कर दी। महात्मा गांधी विश्वविद्यालय में मेडिकल फैकल्टी का अबतक नहीं जोड़ा जाना चिंता का विषय है। इससे महात्मा गांधी विश्वविद्यालय अर्थ विहीन प्रतीत होती है।
महात्मा गांधी भारत देश के चम्पारण जिले मे 10 अप्रैल 1917 को आए और अंग्रेजी हुकूमत के प्रशासनिक एवं नितीगत क्रूर रवैया को लेकर जनता के बीच जाकर जनता के दुख दर्द को सुना और समझा। उन्होंने शिक्षा और चिकित्सा की बुनियाद रखते हुए जन जागरण के माध्यम से लोगों में स्वतंत्रता की अलख जगाई। देशप्रेम और स्वाभिमान के साथ स्वच्छता पर उन्होंने बल दिया था। उस समय चंपारण के लोगों पर अंग्रेज निलहो द्वारा आए दिन , जोर जुल्म बढ़ता जा रहा था। इस पर महात्मा गांधी ने जनता को सहयोग करने और जनता के दुख को समझते हुए उसके दुखों का निवारण करने के साथ अंग्रेजों को खदेड़ भगाया।
इसमें उनकी पहली प्राथमिकता शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था को सुदृढ़ करना था। जब लोग शिक्षित और स्वस्थ हुए तब अंग्रेजों के विरुद्ध एकजुटता दिखाई। अब हमारे प्रधानमंत्री जो गुजरात के रहने वाले हैं वे भी 10 अप्रैल 2018 को यहाँ आये. प्रधानमंत्री आम जनता से बातचीत भी नहीं कर सके। प्रशासनिक व्यवहार या नीतिगत तरीके या जनता की मजबूरी इन सब पर समाज के साथ वे विमर्श नहीं कर पाया। सत्य को समझने का प्रयास नहीं किया तो फिर सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह कैसे , ऐसे में तो यह केवल शब्द जाल ही लगता है। इससे वास्तविक मतलब हल होता नहीं दिखता .