नई दिल्ली। भारत सरकार ने एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक प्रोफेसर जेएस राजपूत को यूनेस्को के कार्यकारी बोर्ड में भारत के प्रतिनिधि के तौर पर नामित करने का निर्णय लिया है। प्रो. जेएस राजपूत एक सुप्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री जिन्हें विविध क्षेत्रों में काम करने, जिसमें यूनेस्को भी शामिल है, का व्यापक अनुभव है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर 30 अक्टूबर से 4 नवंबर 2017 के दौरान यूनेस्को की आम सभा में भाग लेने के दौरान यूनेस्को के कार्यकारी बोर्ड में भारत की सदस्यता के लिये अन्य देशों के मंत्रियों से भेंट कर उनका सहयोग मांगा था।
कार्यकारी बोर्ड में 58 सीटें होतीं है और कार्यकाल 4 वर्ष का होता है। कार्यकारी बोर्ड यूनेस्को का एक संवैधानिक अंग है जिसे आम सभा के द्वारा चुना जाता है। बोर्ड संस्था के कार्यकलाप और इससे जुड़े बजट अनुमानों की समीक्षा करता है। मूल रूप से कार्यकारी बोर्ड यूनेस्को की सभी नीतियों एवं कार्यक्रमों के लिये उत्तरदायी सबसे प्रधान संस्था है।
2017-21 के दौरान कार्यकारी बोर्ड के सदस्यों के चयन के लिये मतदान 8 नवंबर 2017 को हुआ था जिसमें 30 अक्टूबर से 14 नवंबर 2017 के बीच आयोजित आम सभा के 39वें सत्र के चतुर्थ समूह में भारत ने 162 मत प्राप्त किये थे।
बोर्ड का सदस्य होने के नाते हमें यूनेस्को की नीतियों और कार्यक्रमों के निर्धारण की समीक्षा में अहम भूमिका प्रदान करेगा जो कि इसके पांच मुख्य कार्यक्रमों – शिक्षा, प्राकृतिक विज्ञान, सामाजिक एवं मानव विज्ञान, संस्कृति और संचार एवं सूचना से संबद्ध हैं। बोर्ड की अगली बैठक पेरिस स्थित बोर्ड मुख्यालय में 4-17 अप्रैल 2018 को है।
प्रो. राजपूत स्कूली शिक्षा और शिक्षक प्रशिक्षण में अपने योगदान के लिये जाने जाते हैं. उन्होंने कई पदों पर काम किया जिसमें 1974 में एनसीईआरटी में प्रोफेसर, 1977-88 के दौरान क्षेत्रीय शिक्षण संस्थान भोपाल के प्रधानाध्यपक, 1989-94 के दौरान भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय में सहायक शिक्षा सलाहकार, 1994-99 के दौरान राष्ट्रीय अध्यापक प्रशिक्षण परिषद के अध्यक्ष और 199-2004 के बीच वे एनसीईआरटी के निदेशक रह चुके हैं।
प्रो. राजपूत एनसीईआरटी के निदेशक के तौर पर पाठ्यक्रम में पांच मूल्यों को शामिल किया जो इस प्रकार हैं – सत्य, शांति, अहिंसा, सदाचरण (धर्म) एवं प्रेम।
हाल ही में उन्होंने अपनी पुस्तक – भारत में मुस्लिमों की शिक्षा – पूरी की है जिसका उद्देश्य शिक्षा के माध्यम से धर्मों में समरसता का विकास करना है। इस पुस्तक का अनावरण 15 जून 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था।
भारत सरकार ने 2014 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया है।