मुल्क दो राहे के शीर्षक से संगोष्टी का आयोजन

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यूनुस अलवी
 

मेवात : देश की संवैधानिक संस्थानोंपर लगातार हो रहे हमले, समाज में फ़ैल रही नफरत और उसपर सरकार के उदासीन रुख को देखते हुए जमियत उलेमा-ए-हिन्द की ओर से आज ITO स्तिथ जमीअत के हेड क्वार्टर मदनी हाल में एक सम्मलेन ‘दाकंट्री ऐट क्रासरोड-
द वे अहेड’ नाम से हुए इस कार्यक्रम में कई धर्मगुरुदलित और अल्पसंख्यक समाज के प्रतिनिधि शामिल हुए. इस अवसर पर पूर्व सांसद और बाबासाहेब भीम राव आंबेडकर के पोते,प्रकाश आंबेडकर ने सत्ताधारी दल पर संविधान को कमज़ोर करने और बदलने का
आरोप लगाते हुए कहा कि,‘लोगों की व्यक्तिगत आज़ादी और स्वतंत्रता खतरे में है.

संविधान को बचाना आज की प्रमुख चुनौती है. भीमा कोरेगाओं मामले से फ़ासिस्ट ताक़तों का असली चेहरा सामने आया हैं.’
मलौना महमूद मदनी के प्रतिनिधित्व में शुरू हुए इस सम्मलेन का मुख्य उद्देश्य देश में फैली अस्थिरता और उस पर सरकार के रवैये की विवेचना और ऐसी असंवैधानिक गतिविधियों के खिलाफ प्रतिरोध को तैयार करना था.

मुस्लिम और दलित समाज को एक मंच पर लाने और एक मज़बूत विपक्ष तैयार करने के उद्देश्य से हुए इस कार्यक्रम में प्रो. कांचा इलैया ने कहा कि,‘किसी भी सामाजिक आन्दोलन में मुस्लिम समाज का प्रतिरोध देखने को नहीं मिलता. मुस्लिम समाज को अब ज़मीन पर लड़ाई लड़नी होगी.’

मशहूर सामाजिक कार्यकार्त प्रो. राम पुनियानी ने संघ और उसके ब्राहमणवादी विचार को समाज में फ़ैल रहे नफरत के लिए ज़िम्मेदार बताया. प्रो. पुनियानी ने आगे कहा कि संघ को सरकार का संरक्षण प्राप्त है, जिसकी वजह से वो समाज में अपना विस्तार कर रही है. वो राज्य के संसाधनों का उपयोग कर समाज को नुकसान पहुंचा रही है.

आगमी लोकसभा चुनाव के लिए अभी से तैयार होने की बात करते हुए राम पुनियानी ने कहा कि, इस नफरत की लड़ाई को जीतने के लिए सभी राजनीतिक दलों को एक साथ आना होगा.  जमीअत के अध्यक्ष मलौना  कारी मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी ने कहा कि हमें सरकार
कोउसकी ज्म्मेदारियों का एहसास कराना होगा.लिंगयात समाज के प्रमुख शिवरूद्र लिंगायत ने कहा कि जिन दावों के बूते पर भाजपा सत्ता में आई वो उन्हें भूल चुकी है. स्वामी लिंगायत का कहना था कि हमे प्यार और संवाद के ज़रिये इस नफरत को ख़त्म करना चाहिए.

सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश खैरनार ने भीमा कोरेगांव का ज़िक्र करते हुए कहा कि,‘यहदेश के लिए एक शर्मनाक घटना है. इस घटना में साफ़ तौर पर यह समझ आया कि देश की मध्य जातियों के बीच जातिवाद का ज़हर तेज़ी से फ़ैल रहा है.’ संवैधानिक और सरकारी संस्थाओं में अल्पसंख्यकों और दलितों के बदतर प्रतिनिधित्व पर बात करते हुए दलित नेता अशोक भारती ने कहा कि,‘इन संस्थाओं
में  हमारा प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा है. आज देश का राष्ट्रपति भले ही एक दलित है, पर संस्था पर उनका नियंत्रण नहीं है.’

ज़कात फाउंडेशन के अध्यक्ष ज़फर महमूद ने भी अल्पसंख्यकों और दलितों कीबदहाल स्थिति के लिए सरकारी तंत्र में इनके अल्पप्रतिनिधत्व को कारण बताया. उन्होंने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पर आगे बात बढाते हुए कहा कि,‘अगर सरकारें इस रिपोर्ट
पर काम करेंतो दबे कुचले तबकों का काफी भला हो जाए. 

वहीँ आर्यसमाजी स्वामी अग्निवेश ने सरकार के काम की मंशा पर सवालिया निशान उठाते हुए कहा कि,‘जिन मुद्दों पर सरकार को चुना गया वो उसमे विफल रही. अपनी असफ्ताओं को छिपाने के लिए सरकार गैरज़रूरी मुद्दों को उठा रही है.  इस सम्मलेन के दौरान एक कोर कमेटी भी बनाई गई, जिसका उद्देश्य इस चर्चा को और आगे ले जाना और आगे की राह तय करना था. इस कमेटी में स्वामी अग्निवेश, प्रकाश अम्बेडकर, सुरेश खैरनार, प्रो. कांचा इलैया, नितिन चौधरी, राकेश बहादुर, हर्ष मंदर और कुर्बान अली थे. कमेटी ने कुल 12 मुद्दों पर बात कि, जिसमे अल्पसंख्यक और दलित प्रतिनिधियों को एक मंच पर लाना, हर हाल में संविधान की रक्षा करना और इसके लिए भारी संख्या में आदिवासी और दलित लोगों की सहभागिता, निजी स्कूलों का विरोध और सभी के लिए सामान शिक्षा जैसे गंभीर मुद्दे शामिल थे.

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