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: जब भी पहलू कमाकर आता कुछ-ना कुछ अपनी मां के लिये लाता और अपने हाथों से खिलाता
: मृतक पहलू खान अपने परिवार में सबका लाडला था
: उनके पिता, चाचा और ताऊ कि औलादों के बीच अकेला लडका था
यूनुस अलवी
मेवात : 85 वर्षीय नाबिना अंगूरी को आज भी अपने बेटे पहलू का इंतजार है कि वह आऐगा और उसको अपने हाथों से खिलाऐगा। भले ही पहलू की मौत और हादसे को 9 दिन गुजर गये हों लेकिन मरहूम पहलू के परिवार के लोगों के आंसू अभी तक सूखने का नाम नहीं ले रहे हैं। हादसे में बाल-बाल बचे पहले के बेटे आरिफ और इरशाद बहरोड कि घटना को भुला नहीं पा रहे हैं, बार-बार उनको यही गम खाऐ जा रहा है कि आखिर उनका कसूर किया था। क्या अब मुसलमान गाय का दूध भी नहीं पी सकते हैं।
आपको बता दें कि मृतक पहलू खान अपने परिवार में सबका लाडला था। उनकी मां ही नहीं बल्कि चाची, ताई, ताऊ सभी दिल से चहाते थे। मृतक पहलू के परदादा ढाक खां अपने परिवार में अकेले थे वही उनके दादा जग्गन भी अपने दादा की अकेली संतान थी। उनके पिता मोहम्दा भले ही तीन भाई थे लेकिन तीनों भाईयों के बीच पहलू अकेला लडका था। जिसकी वजह से उसे सभी प्यार करते थे। चौधी पीढी में आकर कहीं पहलू के चार लडके और चार लडकियां पैदा हुई हैं नहीं तो इससे पहले परिवार में एक ही लडका पैदा होता आ रहा था। गांव के बुजुर्ग इम्तियाज खां और हुसैना का कहना है कि कई पीढियों से पहलू के खान दान में एक ही बेटा पैदा होते आ रहे है।
मृतक पहलू कि पत्नि जैबूना ने बताया कि उसकी सास कि आयू करीब 85 साल है। वह काफी समय पहले आंख खराब होने से नाबिना हो गई थी। ससुर की मौत भी करीब दस साल पहले हो गई थी। उन्होने बताया कि जब कभी पहलू बाजार जाता या फिर कमाकर आता तो वह बच्चों के साथ-साथ अपनी बूढी मां के लिये अलग से खाने के लिये जरूर लाता था। पहलू अपनी मां को खुद अपने हाथों से खिलाता था।
पहलू कि मां अंगूरी ने बताया कि उसने 1947 का दौर देखा तब वह करीब 15/16 साल की रही होंगी लेकिन जो गम अब उनको मिला है ऐसा तो उसे कभी नहीं मिला। उसको बस यही फिक्र है कि छोटे-छोटे बच्चे हैं, जमीन दायदाद कोई है नहीं। कमाने वाला वो ही अकेला था भले ही दो पोतों कि शादी हो गई है लेकिन अभी उनको ये भी पता नहीं है कि कैसे कमाया जाता है। उसको अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि उसका बेटा दुनिया छोडकर चला गया है। उसे अल्लाह पर भरोसा है कि एक दिन पहलू जरूर आऐगा और आपने हाथों से उसे खिलाऐगा।
इरशाद और आरिफ का कहना है कि जिस तरीके से भीड के लोग उनकी बेरहमी से पिटाई कर रहे थे। उन्होने तो जीने का आस ही छोड दी थी। जो थोडी बहुत उम्मीद थी वह तक फुर होती नजर आई जब भीड ने हम सभी पांचों लोगों को इक्टठा कर लिया और जिंदा जलाने के लिये पैट्रोल और डीजल लाने के लिये कई लोगों को भेज दिया। बहरोड पुलिस उनके लिऐ फरीश्ता बनकर आ गई जिसकी वजह से वे जलने से बच गये।