–प्रभु श्री राम के चरण आज भी साक्षात है चित्रकूट में
चित्रकूट। 18 दिसंबर। अग्रवाल वैश्य समाज का एक दल आज चित्रकूट की यात्रा पर रहा। आज समाज के लोगों ने संगठन के प्रदेश अध्यक्ष अशोक बुवानीवाला और यात्रा संयोजक सुभाष तायल के नेतृत्व में पहले रामघाट पर मंदाकिनी नदी का पवित्र स्नान किया और उसके बाद गुप्त गोदावरी के दर्शन किए। टीम में मौजूद प्रदेश के विभिन्न ज़िलों से 50 प्रतिनिधियों ने बाद में कामतानाथ मंदिर के दर्शन किए और लक्ष्मण पहाड़ी पर जाकर वह स्थान भी देखा जहां प्रभु श्री राम का अपने अनुज भरत से वनास काल मे मिलाप हुआ था।
अग्रवाल वैश्य समाज ने अपनी प्रदेश कार्यकारिणी की एक बैठक अयोध्या में 19 दिसंबर की निश्चित की है। बैठक के लिए विभिन्न जिलों के सभी सदस्य कल रात को दिल्ली में इकट्ठा होकर चित्रकूट, प्रयागराज और अयोध्या की यात्रा पर निकले। कल रात को दिल्ली से चलने के बाद वैश्य समाज का यह प्रतिनिधिमंडल आज सुबह चित्रकूट पहुंच गया। आज दिन भर समाज जनो ने राम वनवास कालीन कई स्थान देखे।
यहां पर रामघाट के अलावा गुप्त गोदावरी, कामदगिरि पर्वत, माता अनुसूईया का मंदिर और हनुमान धारा प्रसिद्ध स्थल हैं।
राम घाट वह घाट है जहां प्रभु श्री राम नित्य स्नान किया करते थे । इसी घाट पर वनवासी राम मंदिर भी है। वर्तमान में जितने भी मंदिर हैं उन सब में भगवान राम की प्रतिमा एक राजा के रूप में है लेकिन रामघाट प्रसिद्ध वनवासी राम मंदिर में भगवान श्री राम की 5 फुट की प्रतिमा लक्ष्मण और जानकी के साथ वनवासी रूप में है। देश का शायद यह पहला ऐसा मंदिर है जहां वनवासी रूप में भगवान की प्रतिमा है। इस घाट पर एक रत्नेश्वर भवन भी है जिसके बारे में मान्यता है कि भगवान श्रीराम को भरत मिलाप के बाद जब यह पता चला कि उनके पिता राजा दशरथ का निधन हो गया है तो उन्होंने यहां पर पिता के निमित्त पिंडदान किया था। रामघाट पर राम-भरत मिलाप मंदिर है और इसी घाट पर गोस्वामी तुलसी दास जी की प्रतिमा भी है। रामघाट पर बनी हनुमान जी की प्रतिमा बरबस ही सबको अपनी और आकर्षित करती है। मंदाकिनी नदी के तट पर बने रामघाट में अनेक धार्मिक क्रियाकलाप चलते रहते हैं। घाट में गेरूआ वस्त्र धारण किए साधु-सन्तों को भजन और कीर्तन करते देख बहुत अच्छा महसूस होता है। शाम को होने वाली यहां की आरती मन को काफी सुकून पहुंचाती है।
रामघाट से 2 किलोमीटर की दूरी पर मंदाकिनी नदी के किनारे जानकी कुण्ड स्थित है। जनक पुत्री होने के कारण सीता को जानकी कहा जाता था। माना जाता है कि जानकी यहां स्नान करती थीं। जानकी कुण्ड के समीप ही राम जानकी रघुवीर मंदिर और संकट मोचन मंदिर है।
चित्रकूट में ही रामघाट से 18 किलोमीटर की दूरी पर गुप्त गोदावरी स्थित हैं। यहां दो गुफाएं हैं। एक गुफा चौड़ी और ऊंची है। प्रवेश द्वार संकरा होने के कारण इसमें आसानी से नहीं घुसा जा सकता। गुफा के अंत में एक छोटा तालाब है जिसे गोदावरी नदी कहा जाता है। दूसरी गुफा लंबी और संकरी है जिसमें हमेशा पानी बहता रहता है। कहा जाता है कि इस गुफा के अंत में राम और लक्ष्मण ने दरबार लगाया था। गुप्त गोदावरी में ही खटखटा चोर का भी एक मंदिर है। मान्यता है कि जब प्रभु श्री राम अपने वनवास काल में चित्रकूट पर रह रहे थे तो असुर मयंक ने माता सीता के गहने और वस्त्र चुरा लिए। इससे क्रोधित होकर लक्ष्मण ने असुर मयंक को उल्टा लटका दिया। तब असुर मयंक ने प्रभु श्री राम से कहा कि वह स्थिति में क्या खाएगा तो प्रभु श्री राम ने कहा कि जो भी यहां आएगा और अपनी मन्नत मांगेगा उसकी समस्याओं को खाकर तुम्हारा पेट भर जाएगा।
पहाड़ी के शिखर पर स्थित हनुमान धारा में हनुमान की एक विशाल मूर्ति है। मूर्ति के सामने तालाब में झरने से पानी गिरता है। कहा जाता है कि यह धारा श्रीराम ने लंका दहन से आए हनुमान के आराम के लिए बनवाई थी। पहाड़ी के शिखर पर ही ‘सीता रसोई’ है। यहां से चित्रकूट का सुन्दर दृश्य देखा जा सकता है। मन जाता है कि हनुमान धारा 500 से अधिक सीधी है
कामदगिरि पर्वत, अपनी 5 किलोमीटर लंबी परिक्रमा के लिए जाना जाता है। इस पर करीब आधा दर्जन मंदिर है। भरत मिलाप मंदिर और लक्ष्मण पहाड़ी यहां के प्रमुख स्थल हैं। कामतानाथ का मंदिर यहां का पहला और कामदगिरि पर्वत का अपना मंदिर है। यहां कामदगिरि के चार द्वार हैं। परिक्रमा पैदल या ऑटो से की जाती है। इसी परिक्रमा स्थल में भरत मिलाप मंदिर है। यहां पर भगवान श्री राम के पांव के निशान साफ देखे जाते हैं। यहां पर एक प्रतिमा ऐसी भी है जिसमें प्रभु श्री राम अपने अनुज भारत को चरण पादुका दे रहे हैं। यहीं पर लक्ष्मण पहाड़ी है। मान्यता है कि इसी पहाड़ी पर खड़े होकर प्रभु श्री राम और जानकी की रक्षा करते थे।
हरियाणा से आए अग्रवाल वैश्य समाज के प्रतिनिधि मंडल ने आज चित्रकूट के इस राम वनवास कालीन क्षेत्र की यादों को अपने मन में बसाने का काम किया।
चित्रकूट बहुत ज्यादा विकसित नहीं हुआ है। आज भी यह अपने आसपास के इलाकों की तुलना में वनवास जैसा ही है लेकिन रामायण में इसका महत्व बहुत ज्यादा है। अब बड़ी संख्या में लोग यहां आने लगे हैं। लक्ष्मण पहाड़ी पर जाने के लिए जहां सीढ़ियां हैं वहीं रोपवे भी है जो यहां आने वाले लोगों को भक्ति दर्शन के साथ-साथ पर्यटन का भी आनंद देता है। यात्रा मे भिवानी, नारनोल, रोहतक, बेरी, महम, जींद, गुरुग्राम, सोनीपत के अलावा रानियाँ के प्रमुख पदाधिकारी व सदस्य रहे।