-उद्धव ठाकरे की सरकार नहीं होगी बहाल क्योंकि उन्होंने स्वयं दिया था इस्तीफा
-महाराष्ट्र के 16 विधायकों की अयोग्यता के मामले को उचित समय सीमा में निपटाने के आदेश
नई दिल्ली : देश की सर्वोच्च अदालत ने महाराष्ट्र में सरकार गठन के मामले में शिवसेना बनाम शिवसेना विवाद को लेकर आज अपना फैसला सुना दिया। 5 जजों की संविधान पीठ ने इस मामले में दिए अपने निर्णय में चार महत्वपूर्ण बिंदुओं को लेकर स्थिति स्पष्ट कर दी और तत्कालीन राज्यपाल के फैसले को गलत करार दिया। कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष को शिंदे गुट के 16 विधायकों के अयोग्य ठहराए जाने संबंधी याचिका पर उचित समय सीमा में फैसला लेने को कहा। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव ठाकरे की सरकार को यह कहते हुए बहाल करने से मना कर दिया उन्होंने खुद इस्तीफा दे दिया था इसलिए उन्हें राहत नहीं दी जा सकती।
महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर उत्पन्न विवाद के मामले में उद्धव ठाकरे गुट को सर्वोच्च न्यायालय की पांच जजों की संविधान पीठ से राहत नहीं मिली लेकिन तकनीकी तौर पर चार महत्वपूर्ण बिंदुओं पर कोर्ट की ओर से निर्णय में स्थिति स्पष्ट कर देने से आने वाले समय में इसका प्रतिफल दिख सकता है। कोर्ट ने कहा कि वह उद्धव ठाकरे की सरकार को बहाल नहीं कर सकते क्योंकि उन्होंने खुद से इस्तीफा दे दिया था. इससे यह साफ हो गया कि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की सरकार अभी बनी रहेगी।
इस मामले में संविधान पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र विधानसभा के 16 विधायकों की अयोग्यता के मामले को विधानसभा अध्यक्ष निश्चित समय सीमा में निपटारा करें। यह मामला काफी समय से लंबित है। इसमें शिवसेना के दोनों अलग-अलग गुटों द्वारा व्हिप जारी करने और नियुक्त करने का विवाद भी शामिल है। व्हिप के मामले में कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को गलत ठहराया।
आज फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल पर भी सवाल उठाए . कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल ऐसी शक्ति का इस्तेमाल नहीं कर सकते जो संविधान या कानून ने उन्हें नहीं दी है। कोर्ट ने अपने निर्णय में यह साफ कर दिया कि राज्यपाल द्वारा तत्कालीन उद्धव ठाकरे सरकार को फ्लोर टेस्ट के लिए कहना गलत फैसला था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह उद्धव ठाकरे की सरकार को बहाल नहीं कर सकते क्योंकि उन्होंने खुद से इस्तीफा दे दिया था. उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया . उन्होंने इस्तीफा दिया था ऐसे में कोर्ट इस्तीफे को निरस्त नहीं कर सकता है। कोर्ट ने निर्णय में यह भी कहा कि पुरानी स्थिति बहाल नहीं कर सकते क्योंकि उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया।
जाहिर है सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह बात साफ हो गई कि 29 जून 2022 को उद्धव ठाकरे का स्वयं इस्तीफा देना उनके लिए भारी पड़ गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पिछले साल शिवसेना विधायकों की बगावत से जुड़े कई पहलुओं पर तीखी टिप्पणी की।
कोर्ट ने कहा कि पार्टी के आंतरिक असंतोष के आधार पर राज्यपाल को मुख्यमंत्री को बहुमत परीक्षण के लिए नहीं कहना चाहिए था। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि हम किसी निर्णय को पलट सकते हैं इस्तीफे को नहीं . उद्धव ठाकरे ने बहुमत परीक्षण की जगह त्यागपत्र दे दिया. उनकी बहाली पर अब विचार नहीं किया जा सकता।
हालांकि चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने यह भी कहा कि उद्धव के इस्तीफे के बाद शिंदे को सरकार बनाने के लिए निमंत्रण देकर राज्यपाल ने कोई गलती नहीं की। कोर्ट ने सवाल उठाया कि जब शिवसेना पार्टी ने सुनील प्रभु को विधानसभा में पार्टी का व्हिप बनाया था तब शिंदे समर्थक विधायकों ने भारत गोगावले को कैसे व्हिप नियुक्त कर दिया और स्पीकर ने उसे कैसे मान्यता दे दी . कोर्ट ने स्पीकर से कहा कि वह एक उचित समय सीमा में विधायकों के खिलाफ लंबित अयोग्यता सम्बन्धी याचिकाओं पर फैसला सुनाएं।