–आईकेट (ICAT) के निदेशक ने इंडस्ट्री, एकेडमिक्स और रिसर्च इंस्टिट्यूट के कोलेबोरेशन पर बल दिया
– आईकेट (ICAT) में रिसर्च एंड डेवलपमेंट को बढ़ावा देने पर होगा काम
– इलेक्ट्रिक व्हीकल, हाइड्रोजन और सॉफ्टवेयर पर भारत को तत्काल काम शुरू करना होगा
– ई वी सेक्टर की रफ़्तार तेज करने के लिए परमानेंट मैगनेट्स और बैटरी पर रिसर्च को बताया जरूरी
सुभाष चौधरी /The Public World
गुरुग्राम : केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय की प्रमुख संस्था इंटरनेशनल सेंटर फॉर आटोमोटिव टेक्नोलॉजी, मानेसर के नवनियुक्त डायरेक्टर “ सौरभ दलेला “ से www.thepublicworld.com के चीफ एडिटर, सुभाष चौधरी ने खास बातचीत की । आईकेट (ICAT) उत्तर भारत स्थित ऑटोमोटिव क्षेत्र की एक अग्रणी विश्वस्तरीय परीक्षण, प्रमाणन, अनुसंधान एवं विकास सेवाएं देने वाला संस्थान है । लगभग एक घंटे की लम्बी बातचीत में श्री दलेला ने इंडियन ऑटोमोटिव सेक्टर से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला । उन्होंने इस क्षेत्र में होने वाले तकनीकी विकास, नए रिसर्च एंड डेवलपमेंट के साथ ही ऑटो प्रोडक्ट की गुणवत्ता, सर्टिफिकेशन व उपभोक्ताओं की बदलती आवश्यकताओं को खासतौर से रेखांकित किया । अपनी चर्चा में उन्होंने इलेक्ट्रिकल वाहन और अन्य वैकल्पिक एनर्जी के भविष्य को लेकर खुल कर बात की । भारतीय ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री की वर्ल्ड मार्केट में नेतृत्व करने की छटपटाहट के सवाल पर भी श्री दलेला ने बेबाक राय रखी । प्रस्तुत है उनसे खास बातचीत के प्रमुख अंश :
प्रश्न : सौरभ दलेला जी, आप कई दशक से ऑटोमोबाइल सेक्टर से जुड़े हुए हैं । आप पहले भी इंटरनेशनल सेंटर फॉर ऑटोमेटिक टेक्नोलॉजी (ICAT) मानेसर के निदेशक रहे हैं । दूसरी बार पुनः आप निदेशक बने हैं । इंडियन ऑटोमोबाइल सेक्टर की दृष्टि से आईकेट (ICAT) की भूमिका को कैसे परिभाषित करते हैं ?
सौरभ दलेला : केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय की ओर से वर्ष 2006-07 में नेशनल आटोमोटिव टेस्टिंग एंड आर एंड डी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट शुरू किया गया था । तब यह निर्णय लिया गया था कि चार संस्थान स्थापित किए जाएंगे और केवल सर्टिफिकेशन की सर्विस दी जायेगी । हालांकि तब केवल एआरएआई पूणे एकमात्र संस्थान था जिसके द्वारा सर्टिफिकेशन किया जाता था । उस समय भारी उद्योग मंत्रालय ने बहुत अच्छा फैसला लिया कि चार संस्थान स्थापित की जाएंगे जिसके माध्यम से केवल सर्टिफिकेशन किया जाएगा । लेकिन तब भारत सरकार का यह भी विजन था कि धीरे-धीरे इन संस्थानों को रिसर्च एंड डेवलपमेंट संस्थान के रूप में विकसित करेंगे । केंद्र सरकार की यह सोच वर्तमान “मेक इन इंडिया” विजन के लिए बेहद प्रासंगिक साबित हो रही है । यह बहुत अनुकूल समय है जब आईकेट (ICAT) की भी भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि आज बहुत सारी संभावनाएं हैं । कई प्रकार की टेक्नोलॉजी सामने आ रही है जिनमें इलेक्ट्रिक भी है, हाइड्रोजन भी है साथ ही कई प्रकार की वैकल्पिक ऊर्जा की बात भी हो रही है । मेरा मानना है कि वर्तमान समय में आईकेट (ICAT) न केवल ग्लोबल स्तर पर सर्टिफाइंग संस्था के रूप में काम करे बल्कि आटोमोटिव इंडस्ट्री के लिए एक पार्टनर के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका भी अदा करे । आगे चलकर हम आईकेट (ICAT) की इस भूमिका को और मजबूत करने वाले हैं ।
प्रश्न : मानेसर स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर आटोमोटिव टेक्नोलॉजी, मानेसर के कैंपस में वर्ल्ड क्लास सर्टिफिकेशन सुविधा है । यहां रिसर्च एंड डेवलपमेंट के लिए भी काम होते हैं । आप के निर्देशन में किन क्षेत्रों पर आर एंड डी की दृष्टि से काम हो रहा है ?
सौरभ दलेला : बहुत जगह इस प्रकार की धारणा है कि आईकेट (ICAT) केबल सर्टिफाइंग एजेंसी है । संस्थान के गठन के आरंभ में भी धारणा यह थी कि केवल सर्टिफिकेशन करेंगे लेकिन साथ में विजन स्पष्ट था कि इसे रिसर्च एंड डेवलपमेंट इंस्टिट्यूशन के रूप में विकसित किया जाएगा। गौर करने वाली बात यह है की आज हम 100 में से 62% रिसर्च के क्षेत्र से ही कमाते हैं जबकि केवल 40% के आसपास सर्टिफिकेशन के द्वारा । लेकिन अब हमारा फोकस प्रोजेक्ट की इंटेंसिटी बढ़ाने पर है । आगे चलकर हमें रिसर्च वर्क पर वेंचर करना है । मैं पुनः अपनी बात को दोहरा रहा हूं कि हम लोग इंडस्ट्री का पार्टनर बनना चाहते हैं और रिसर्च एंड डेवलपमेंट हमारी प्राथमिकता की सूची में है ।
प्रश्न : आईकेट (ICAT) के साथ वर्ल्ड क्लास एक्सपोर्ट और कंसल्टेंट्स जुड़े हुए है। आटोमोटिव सेक्टर में आपका विशाल अनुभव है । क्या आप अपने अनुभव के आधार पर हमें बता सकते हैं कि वह कौन से क्षेत्र हैं जिन पर प्राथमिकता के आधार पर रिसर्च करने की तत्काल आवश्यकता है ?
सौरभ दलेला : देखिए, आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है जिसके 3 पहलू हैं । एक तो सस्टेनेबिलिटी है जिसमें हम एनवायरनमेंट की बातें करते हैं । एनवायरनमेंट में बहुत सारी चीजें आती हैं । इसमें ध्वनि (Noise) भी आती है । इसमें इलेक्ट्रो मैग्नेटिक कंपैटिबिलिटी भी शामिल है । एमिशन, पोलूशन यह सब हम जानते ही हैं । इसमें अल्टरनेट फ्यूल भी आते हैं । इसके अलावा दो और प्रमुख पहलू हैं जिसकी तरफ हम आगे बढ़ रहे हैं जिसे हम सेफ्टी और सिक्योरिटी बोलते हैं । जब हम आगे बढ़ रहे हैं तो व्हीकल डायनामिक्स में बहुत सारी सिक्योरिटी की टेक्नोलॉजी आ रही है । जैसे एडास (ADAS) की टेक्नोलॉजी आ रही है । क्रूज कंट्रोल, लेन ड्राइविंग, लेन चेंजिंग, शेयर मोबिलिटी, कनेक्टेड मोबिलिटी और अंततः हम लोग ऑटोमेशन की दिशा में जाएंगे ।
ग्लोबली इस पर काम हो रहा है और हम लोग भी इस पर अच्छी तरह काम करना चाहते हैं । तीसरा पहलू है सिक्योरिटी का । आजकल जितने आटोमोटिव बनते हैं उसमें 20 से 25 या इससे भी ज्यादा ईसीयू होते हैं । आप सोच सकते हैं कि जैसे घरों में पर्सनल कंप्यूटर या लैपटॉप होते हैं और इनकी हैकिंग होती है । डाटा सिक्योरिटी से संबंधित प्रश्न होते है और इसके लिए कुछ स्टैंडर्ड फॉलो करने होते हैं । कई संस्थान इसे फॉलो करते हैं । कई संस्थान नहीं भी कर पाते हैं । लेकिन बैंकिंग सेक्टर या फिर इससे संबंधित संस्थान इसे बहुत सीरियसली फॉलो करते हैं जिससे कि उनकी वेबसाइट सुरक्षित रहे । सुरक्षा के मद्देनजर ईसीयू को कोई हैक न कर सके, उसके पैरामीटर को कोई दूर से ही बदल ना सके, यह बहुत जरूरी है ।
आज हर गाड़ी में टेलीमेटिक्स है । हर गाड़ी में सिम कार्ड है । हर गाड़ी में बैठकर आसमान से बातें होती हैं जिसमें स्पीड नहीं बल्कि इंटरनेट और डाटा कनेक्टिविटी शामिल है । इसलिए आटोमोटिव साइबर सिक्योरिटी जिस पर हिंदुस्तान में अभी बहुत कम चर्चा हो रही है आगे चलकर अचानक बड़ा मुद्दा बन कर उभरेगा । इस पर हमें बहुत काम करना है । यह तीनों क्षेत्र हमारे लिए जरूरी है ही, लेकिन इससे ऊपर है कि इन क्षेत्रों पर भारतीयता की छाप पड़े । यानी इसमें उपयोग की जाने वाली टेक्नोलॉजी और इक्विपमेंट्स इंडीजीनस हो ।
इसकी तरफ हम लोगों की नजर है । आरंभिक स्थिति में संभव है पूरी तरह इंडीजीनस ना हो । कुछ इंपोर्ट करने की आवश्यकता हो तो करें लेकिन अंततः हमें भारतीय उत्पादन की ओर ही आगे बढ़ना चाहिए ऐसा मेरा मानना है ।
प्रश्न : आटोमोटिव इंडस्ट्री में रहते हुए आपके लंबे कार्यकाल के दौरान 50 से अधिक ऑफ रोड और ऑन रोड प्रोडक्ट की लॉन्चिंग भी हुई है । अगर बात की जाए टेक्नोलॉजी की तो तत्काल किस तरह की आवश्यकता आप देखते हैं ?
सौरभ दलेला : मेरे ख्याल में तत्काल जिन तीन क्षेत्रों में कदम आगे बढ़ाने की जरूरत है वह है इलेक्ट्रिक व्हीकल, हाइड्रोजन और सॉफ्टवेयर । मेरी नजरों में यह महत्वपूर्ण है कि इसकी तत्काल शुरुआत की जाए । सॉफ्टवेयर इसलिए भी जरूरी है क्योंकि हर आटोमोटिव इंडस्ट्री अपने लॉजिस्टिक और एल्गोरिदम के हिसाब से तैयार करता है । उसमें कोई प्रश्न भी नहीं है । लेकिन सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट की एक टेक्नोलॉजी अगर हम लोग अपने संस्थान में ला पाए तो इससे आटोमोटिव इंडस्ट्री को बहुत मदद मिलेगी ।
जहां तक दूसरे क्षेत्र इलेक्ट्रिक व्हीकल और हाइड्रोजन का सवाल है तो इलेक्ट्रिकल व्हीकल में बहुत सारे लोग काम कर रहे हैं । सरकार की ओर से भी बहुत इनिशिएटिव लिए गए हैं । काफी प्रोत्साहन इस क्षेत्र को दिया जा रहा है । साथ ही हाइड्रोजन के क्षेत्र को भी सरकार की ओर से काफी प्रोत्साहन दिया जा रहा है । अंततः इलेक्ट्रिकल और हाइड्रोजन दोनों ही पर्यावरण के लिए आवश्यक हैं । इन रास्ते में हमें जाना ही जाना है । मैं ऐसा मानता हूं कि इनमें हमें तत्काल आगे बढ़ना चाहिए । मैं कहना चाहता हूँ कि तुलनात्मक दृष्टि से इलेक्ट्रिकल और हाइड्रोजन दोनों ही गाड़ियों को बनाना तो आसान है लेकिन मुद्दा यह है हाइड्रोजन या इलेक्ट्रिसिटी बन कैसे रही है ? वो ग्रीन तरीके से बन रही है या नहीं यह हमारे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है ।
प्रश्न : अगर बात करें कमर्शियल व्हीकल, पैसेंजर कार और ट्रैक्टर की तो इन पर भारत सरकार का बहुत फोकस रहता है और सरकार की मंशा है कि वर्ल्ड मार्केट में अपनी दादागिरी स्थापित करनी है । आपकी नजरों में इस दृष्टि से क्या संभावना है ?
सौरभ दलेला : मेरे ख़याल में हम एक देश और इंडस्ट्री के रूप में काफी आगे जा चुके हैं । अब वर्ल्ड में हमारी गिनती है । मेरे ख़याल से अब यह प्रश्न इतना इंपोर्टेंट नहीं रह गया है क्योंकि अब प्रश्न यह रह गया है कि किस तरह से हम वर्ल्ड के आटोमोटिव मार्केट को लीड कर सकते हैं । इसी दिशा में हम लोगों को आगे बढ़ना चाहिए ।
प्रश्न : इलेक्ट्रिकल व्हीकल सेक्टर को लेकर गवर्मेंट ऑफ इंडिया ने कानून बनाए हैं । कई तरह के नए प्रावधान बनाए गए हैं । सुविधाएं मुहैया कराने की दृष्टि से विभिन्न राज्य सरकारों ने भी प्रावधान बनाए हैं । इस क्षेत्र को गति देने के लिए क्या यह कोशिश समुचित है या फिर कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जो अभी अछूते रह गए हैं ?
सौरभ दलेला : इलेक्ट्रिक में जिस पहलू के अछूते रहने की बात आप कर रहे हैं मेरे ख़याल में एक परमानेंट मैगनेट्स और दूसरी बैटरी है जिस पर हमें थोड़ी और मेहनत करनी है । थोड़ा शोध कार्य को आगे बढ़ाना है । इन दोनों क्षेत्रों की दृष्टि से हमें भारत में स्वनिर्मित सॉल्यूशंस देने होंगे । इलेक्ट्रिक मोटर्स का जो पावर सिस्टम होता है उसको लेकर हम इंडिया में सक्षम हैं जबकि परमानेंट मैगनेट्स पर हम लोगों को काम करना है ।
जहां तक बात है बैटरी की तो इसमें अभी भी काफी उतार-चढ़ाव हो रहा है और यह अभी तक सेटल डाउन नहीं हो पाई है । बैटरी की टेक्नोलॉजी में बहुत सारे रिसर्च अभी भी चल रहे हैं । ज्यादातर लोग लिथियम की बातें कर रहे हैं जबकि कुछ लोग एल्युमीनियम एयर की बातें कर रहे हैं तो कुछ लोग निकेल मेंगेनीज कोबाल्ट (एन एम् सी ) बैटरी की वकालत कर रहे हैं ।
बैटरी के लिए 3 तत्वों की बात हो रही है लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि यह पदार्थ भारत में उपलब्ध हो तभी हमारी कामयाबी होगी । मुझे लगता है कि अल्मुनियम एयर बैटरी का पोटेंशियल काफी अच्छा है । इसकी प्रैक्टिकलीटी भी बहुत अच्छी है लेकिन इसे आने में अभी वक्त लगेगा क्योंकि अभी पूरी तरह मेच्योर्ड नहीं है । यह दो चीजें अगर सॉर्ट आउट हो जाती हैं तो शायद हम तैयार हैं । इसमें अच्छे से आगे बढ़ने के लिए तीसरी चीज और है जिस पर हमें फोकस करना चाहिए वह है प्रोडक्शन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी क्योंकि अंततः इलेक्ट्रिकल वाहन में इलेक्ट्रिसिटी की जरूरत पड़ेगी । अगर हमें पूरी तरह इलेक्ट्रिकल वाहनों की ओर परिवर्तित होना है तो भारत जितनी बिजली का उत्पादन करता है उससे कम से कम 4 गुना अधिक बिजली की आवश्यकता होगी ।
हालांकि यह तब है जब हम पूरी तरह आटोमोटिव को इलेक्ट्रिकल में तब्दील कर देंगे लेकिन इसकी शुरुआत तो कर ही देनी चाहिए । यह स्थिति तब आएगी जब हम इलेक्ट्रिक मोटर के परमानेंट मैगनेट और बैटरी को मैच्योर कर लेंगे । इन पर मजबूत पकड़ बनाने से तेज गति से परिवर्तन हो सकेगा और मेरा विश्वास है कि इलेक्ट्रिसिटी जेनरेट करने वाले भी सक्षम हैं और आवश्यकतानुसार तेज गति से काम करने के लिए तैयार हैं ।
प्रश्न : इलेक्ट्रिकल व्हीकल की शत प्रतिशत निर्भरता बैटरी पर है और इसमें बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम (BMS) बीएमएस मुख्य भूमिका में है । इस दृष्टि से हम कहां खड़े हैं ?
सौरभ दलेला : बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम (BMS) और जितने भी इलेक्ट्रिकल कंट्रोल सिस्टम (ईसीयू ) हैं, मेरे ख़याल में उनमें सुधार निरंतर होता रहता है । महत्वपूर्ण यह है कि उस क्षेत्र में रुकावटें क्या है ? मैं ऐसा मानता हूं कि उनमें कोई रुकावट नहीं है । हां जरूरी यह है कि हमें धीरे-धीरे उसे सीखना है । भारत सॉफ्टवेयर में मजबूत है । इसलिए मुझे इस क्षेत्र में कोई बड़ी चुनौती नहीं दिखती है । इसमें सुधार की प्रक्रिया निरंतर चलती रहेगी ।
प्रश्न : बीएमएस (BMS) के मामले में अभी बाहर से इंपोर्ट करना पड़ता है, क्या हम आत्म निर्भर हो सकते हैं ?
सौरभ दलेला : मेरे खयाल में इस क्षेत्र में कोई बड़ी चुनौती नहीं है और हम आत्मनिर्भर बन सकते हैं ।
प्रश्न : इंडियन आटोमोटिव इंडस्ट्री जिस दिशा में जा रही है उसमें टेक्नोलॉजी की भूमिका अहम है । टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट के मामले में इंडियन इंडस्ट्री कितनी एडॉपटिव लगती है ?
सौरभ दलेला : हम लोगों ने आटोमोटिव इंडस्ट्री में टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट को इतनी तेज रफ्तार से अडॉप्ट किया है उसकी तुलना दुनिया के किसी देश से नहीं की जा सकती । याद करें 1994 में मारुति 800 के बाद 1000 सीसी की पहली गाड़ी आई थी । वह थी मारुति 1000 । उसी वक्त देबू मोटर्स ने एक प्लांट लगाया था जो सिएलो नाम की गाड़ी बनाती थी । तब पहली बार जो हिंदुस्तान में गाड़ियां आई थी उसमें ऑटोमेटिक ट्रांसमिशन था । उसमें इलेक्ट्रिक कंट्रोल सिस्टम भी थी. यह सब चीजें हम लोगों के लिए नई थी । तब से लेकर अब जहां हैं उसमें एबीएस है, एयर बैग भी है । लोगों में जबरदस्त जागरुकता बढ़ गई है ।
सेफ्टी के प्रति, नॉइज़ के प्रति, पूरी आटोमोटिव्स फ्रेटरनिटी जिसमें इंडस्ट्री, कंजूमर और अन्य प्लेयर्स भी शामिल है ने जिस रफ्तार से इसे अपनाया है, मेरे खयाल में यह अतुलनीय है।
प्रश्न : रिसर्च एंड डेवलपमेंट को लेकर प्राइवेट प्लेयर्स की मांग रहती है कि इस क्षेत्र में सरकार को इन्वेस्ट करना चाहिए । आईकेट (ICAT) जैसी संस्था जो आटोमोटिव इंडस्ट्री को कंसलटेंसी भी उपलब्ध कराती है, क्या आपकी बुक में ऐसा कुछ विचार है ?
सौरभ दलेला : मैंने अपने 32 साल के कैरियर में जो महत्वपूर्ण चीज सीखी है, वह यह है कि इनोवेशन तब होती है जब पैसे नहीं होते हैं । क्योंकि पैसे अगर जेब में है तो इनोवेशन नहीं हो सकती । फिर तो चीजें खरीद ली जायेंगी और बात खत्म । इसलिए यह कहना कि पैसे डाले जाएंगे तभी रिसर्च होगी, मेरे खयाल में हमें इस पर थोड़ा सोचना होगा । मैं समझता हूं कि उस घर में इनोवेशन ज्यादा होती है जहां रिसोर्सेज की कमी होती है । हम नए-नए रास्ते अपने काम करने के लिए निकाल लेते हैं जो अचंभित करने वाले होते हैं । इसलिए रिसर्च को पैसे से ना तौलें । इसलिए इनोवेशन हो या फ्रूगल इनोवेशन या फिर आईडियाज हों उसको जेनरेट करने के लिए पैसा यदि न हो तो बेहतर है । हाँ ये अलग बात है कि जब फ्रूगल इनोवेशन या फिर आईडियाज आ जाये तब उसके उपर इंजीनियरिंग डेवलपमेंट करने या रिसर्च करने के लिए जरूर पैसे चाहिए होते हैं वो मैं मानता हूँ .
रिसर्च एक माइंडसेट है, जो मैं माफी चाहता हूं यह कहने के लिए कि भारत में थोड़ा कम है । इस माइंडसेट को लाना बहुत जरूरी है । जब भी कोई नई कंपनी स्थापित करना चाहते हैं । नया सेटअप बनाते हैं । वह यह कहते हैं कि हमें मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाना है । टेक्नोलॉजी हम बाहर से ले आएंगे । पार्ट्स हम इंपोर्ट कर लेंगे । यहां असेंबल कर लेंगे और बेचेंगे । मेरे ख़याल से “मेक इन इंडिया” का जो विजन था वह यह नहीं था । यह तो असेंबल इन इंडिया हो गया । मेक इन इंडिया का मतलब था मेक फॉर इंडिया एंड मेक बाय इंडिया ।
जब मेक इन इंडिया कहते हैं तो उसकी इजाद भी यही हुई हो, उसकी डिजाइनिंग भी यही की गई हो । चाहे वह ऑटोमोबाइल हो या फिर एयर कंडीशन हो या अन्य जो भी प्रोडक्ट हैं । जो बाहर से आते हैं मेरा मानना है कि वह हिंदुस्तान की दृष्टि से बने हुए नहीं होते हैं । एयर कंडीशन जो इंपोर्टेड होती हैं वह भारत में आकर चाहे वह जितनी अच्छी हो फेल हो जाती है । क्योंकि यहां पर डस्ट बहुत है । यहां so2 बहुत है । अंततः वह फेल हो जाती है ।
हम अपने वातावरण और भौगोलिक परिस्थिति के अनुकूल अगर उत्पाद को विकसित करें तो वह इंडिया ही नहीं बल्कि पूरे वर्ल्ड के लिए उपयोगी साबित होंगे । भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां पर ठंड सबसे ज्यादा पड़ती है, भारत में ऐसी जगह भी है जहां – 40 डिग्री सेल्सियस टेंपरेचर नीचे जाता है । हमारा एल्टीट्यूड भी काफी हाई है । हमें 18000 फीट की ऊंचाई पर भी चलती हुई गाड़ियां चाहिए । गर्मी भी हमारे यहां बहुत है, हमारे यहां डेजर्ट बहुत है । इसलिए हमें ऐसी भी गाड़ियां चाहिए जो 50 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर चल पाए । हमारे यहां कोस्टल एरियाज भी बहुत हैं इसलिए हमें ऐसी गाड़ियां भी चाहिए जो कोरोजन वेलस्टोन चाहिए, जो ज्यादा जंग ना खाए ।
यहाँ मशीन या गाड़ी को ऑपरेट करने का जो तरीका है वह बड़ा डिफरेंट है । हमें यह भी चाहिए कि कस्टमर आसानी से एडॉप्ट भी कर ले । मैं कहना चाहूंगा कि (Habits of driving are very different here ) हैबिट्स ऑफ़ ड्राइविंग आर वेरी डिफरेंट हियर । हिंदुस्तान में सबके लिए एक प्रोडक्ट बनाना होगा । ऐसा नहीं कि जाड़े के लिए अलग प्रोडक्ट, गर्मी के लिए अलग प्रोडक्ट और कोस्टल एरिया के लिए अलग प्रोडक्ट बनाएंगे । इन सभी परिस्थितियों के लिए एक प्रोडक्ट बनाने होंगे । हिंदुस्तान ही वर्ल्ड में ऐसा देश है जहां इतनी प्रकार की विविधता हैं । इसीलिए मैं कहता हूं कि हिंदुस्तान एक ऐसा देश है जहां अगर रिसर्च के साथ एक प्रोडक्ट बन गया तो वह पूरी दुनिया में चल सकता है ।
प्रश्न : क्या आप यह कहना चाहते हैं कि जितनी अच्छी तरह इनोवेशन या रिसर्च आप भारत में कर सकते हैं वह कहीं और संभव नहीं है ? यहाँ के अनुसार तैयार प्रोडक्ट हर जगह चल सकता है ?
सौरभ दलेला : एक प्रोडक्ट आपका हर जगह चलना है । और इनोवेटिव माइंडसेट बहुत अच्छा है यहां । बस एक धक्का लगाने की जरूरत है कि रिसर्च का एक माइंडसेट आ जाए । जहां तक इनोवेशन का सवाल है बहुत हो रही है आजकल भी । लेकिन इनोवेशन के कदर दां बहुत कम हैं । उसको उठाने वाले बहुत कम हैं । आज भी हमारे मन में यह है कि बाहर से जो टेक्नोलॉजी आती है वह अच्छी है और घर की टेक्नोलॉजी इतनी अच्छी नहीं है । इस धारणा को बदलना पड़ेगा । एक इनोवेटिव कल्चर लाना पड़ेगा ।
प्रश्न : ई वी सेक्टर में वर्ल्ड क्लास बनने की बात है और वर्ल्ड मार्केट में स्थापित होने की बात है । आपके अनुसार कोई ऐसा सुझाव, जिस पर ई वी सेक्टर अमल करे और तत्काल उस दिशा में आगे बढ़ जाए ?
सौरभ दलेला : मेरे खयाल से आटोमोटिव फ्रेटरनिटी को चाहिए कि एक क्लियर पॉलिसी या रोड मैप बनाए । हमें मालूम है कि हिंदुस्तान में रिसोर्सेज कितने हैं । हमें यह भी मालूम है कि हिंदुस्तान में सप्लायर बेस कितना मजबूत है । हम अवगत हैं कि हिंदुस्तान में मैन्युफैक्चर कितने हैं । यह भी जानकारी है कि मैन्युफैक्चर की सोच बिजनेस पॉइंट ऑफ व्यू से है, जो सही है । उसमें कोई ऐसी गलत बात नहीं है लेकिन एक रोड मैप बना दिया जाए। थोड़ा सा धक्का सरकार लगाए और बाकी धक्का इंडस्ट्री लगाए और हम लोग पार्टनर करने के लिए हैं ही । इससे सब को बहुत फायदा होगा । चाहे वह अल्टरनेट फ्यूल की बात हो, हाइड्रोजन की बात हो, परिवर्तित करना आसान होगा ।
उदाहरण के तौर पर जब दिल्ली में सीएनजी आधारित ट्रांसपोर्ट शुरू करने की बात आई थी तो सबको थोड़ा बुरा लगा था । सबके लिए मुश्किल हो गई थी लेकिन जब निर्णय ले लिया गया । उस दिशा में काम शुरू हुए । फिर सबने इसे बहुत तेज गति से अपना लिया । आज सब कुछ सीएनजी पर है । पूरा वर्ल्ड इस बात से चकित है कि इतने बड़े पैमाने पर और इतनी जल्दी भारत में यह कैसे हो गया ।
अब हम अचानक इलेक्ट्रिक पर जाएंगे और शायद इसमें कोई दो राय भी नहीं है । कोई रुकावट भी नहीं दिखती है । कुछ दिन पहले डीटीसी प्रबंधन से मेरी मीटिंग हुई थी । उनके बहुत लॉन्ग टर्म प्लान है और ये लोग इस टेक्नोलॉजी को बहुत अच्छी तरह प्रोत्साहित करने वाले हैं । इसलिए सभी चीजें ठीक हैं । बस केवल इसे थोड़ा रोड मैप की दृष्टि से चैनेलाइज कर दिया जाए । निर्धारित समय अवधि से तहत वाहनों की संख्या तय कर इसे लागू किया जाए तो परिवर्तन आसान और प्रभावी होगा । लेकिन इसके लिए रिसोर्सेज की भी आवश्यकता है जिसमें रॉ मैटेरियल और सप्लायर शामिल हैं । मिल जुल कर एक रोडमैप बन सकता है । उस पर अमल किया जा सकता है।
प्रश्न : आपका अनुभव क्या कहता है ? क्योंकि एक तरफ इलेक्ट्रिकल व्हीकल है जिस पर कंप्लीट डिपेंडेंसी की बात चल रही है । दूसरी तरफ हाइब्रिड भी है । क्या हमें हाइब्रिड की संभावना को भी बनाए रखनी चाहिए ?
सौरभ दलेला : देखिए जब हम एक टेक्नोलॉजी से दूसरी टेक्नोलॉजी की ओर जाते हैं तो यह एक परिवर्तन की जर्नी होती है । ऐसा नहीं होता कि एक से दूसरे दिन ही हम इसे परिवर्तित कर सकते हैं । उस जर्नी में बहुत सारी चीजें बीच में आती हैं । मिसाल के तौर पर आज हम फॉसिल फ्यूल की गाड़ियां यूज करते हैं और आज से 10 साल बाद हम हाइड्रोजन या फिर इलेक्ट्रिकल वाहन उपयोग करेंगे तो यह 10 साल की जर्नी है । ऐसा संभव नहीं है व्यक्ति आज डीजल या पेट्रोल यूज कर रहा है और दूसरे दिन से इलेक्ट्रिकल वाहन का उपयोग करे । यह थोड़ा नामुमकिन सा है ।
इसलिए उस जर्नी में हाइब्रिड भी है । अगर हाइड्रोजन फ्यूल सेल में जाएंगे तो उस जर्नी में हाइड्रोजन कम्बसन इंजन भी आएगा । फिर हम धीरे-धीरे उसे ट्रांसफार्म कर पाएंगे । इस बीच हाइड्रोजन मैन्युफैक्चरर से जो हाइड्रोजन को स्टोर करते हैं, वह भी कुछ सीखेंगे । जो हाइड्रोजन के पदार्थ बनाते हैं वह भी सीखेंगे और बाकी इस इकोसिस्टम में जो ऑपरेटर और कस्टमर हैं वह भी कुछ सीखेंगे । अंततः उत्तरोतर यह टेक्नोलॉजी विकसित होगी । इसलिए मैं मानता हूं कि हाइब्रिड उसके बीच की एक जर्नी है । वह किसी भी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर में आएगा ही आएगा ।
प्रश्न : एक उपभोक्ता की दृष्टि से मेरा आपसे सवाल है कि आपके यहां सर्टिफिकेशन की दृष्टि से हाइब्रिड वाहन भी आ रहे हैं । इलेक्ट्रिकल व्हीकल भी आ रहे हैं और दूसरे भी आ रहे हैं । अगर मैं ई वी और हाइड्रोजन फ्यूल आधारित वाहन की बात करूं तो आपके अनुभव में इनमें से सर्वाधिक सुरक्षित कौन है ?
सौरभ दलेला : देखिए हाइड्रोजन अभी मेच्योर नहीं हुई है। हाइड्रोजन के साथ यह सवाल नहीं है कि यह वाहन चल पाएंगे या नहीं चल पाएंगे क्योंकि टेक्नोलॉजी है । मुद्दा यह है कि हाइड्रोजन हम बना कैसे रहे हैं और अगर हाइड्रोजन हम उस तरीके से बना रहे हैं जिसे ग्रीन एनर्जी कहते हैं तो सब कुछ संभव है । लेकिन हाइड्रोजन में सेफ्टी की दृष्टि से चुनौतियां हैं क्योंकि अगर हम डीजल और पेट्रोल की बात करें तो यह अगर थोड़ी लीक हो जाए तो इससे चिंता नहीं होती है । इसी तरह अगर सीएनजी थोड़ी लीक हो जाए तो भी बहुत बड़ा तनाव का विषय नहीं बनता है । अगर हाइड्रोजन लीक हो जाए तो यह चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा करती है क्योंकि यह लीक करते ही विस्फोट करती है।
अगर पिस्टन रिंग पर हम कंप्रेशन स्ट्रोक करेंगे तो पिस्टन रिंग के पास भी हाइड्रोजन थोड़ी बहुत लीक होगी । इस तरह की चुनौतियां अभी काफी हैं । हाइड्रोजन के स्टोरेज और लॉजिस्टिक्स से संबंधित अभी काफी सवाल अनुत्तरित हैं । इसलिए सेफ्टी की दृष्टि से हाइड्रोजन में अभी काफी वक्त लगेगा ।
जहां तक सवाल है इलेक्ट्रिकल वाहन का तो यह पूरी तरह मेच्योर्ड है । इसमें मैंने पहले भी बताया कि बैटरी पर अभी काम करना होगा । अभी हाल फिलहाल में जो कुछ घटनाएं हुई हैं मुझे ऐसा लगता है कि इसमें अभी बैटरी पर और काम करना चाहिए । इसका जो रूट कॉज है कि इसे हिंदुस्तान के एनवायरनमेंट को ध्यान में रखते हुए नहीं बनाया गया है । इसे उस देश को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है जहां ठंड बहुत पड़ती है । लेकिन भारत ऐसा देश है जहां ठंड भी बहुत पड़ती है, तापमान भी काफी ऊपर जाता है, जबकि कोस्टल एरिया भी है । शायद इसमें उस नजरिए को ध्यान में नहीं रखा गया। अगर इस दृष्टिकोण से हमारी तैयारी होगी तो इसमें बहुत जल्द सफलता मिलेगी ।
प्रश्न : अब मैं पुनः आईकेट (ICAT) पर वापस आ रहा हूं । इंटरनेशनल सेंटर फॉर आटोमोटिव टेक्नोलॉजी मानेसर का कुछ यूनिवर्सिटी और कई एकेडमिक इंस्टीट्यूशंस के साथ कोलेबोरेशन हुए हैं । इसके पीछे क्या कंसेप्ट है ?
सौरभ दलेला : देखिए आगे बढ़ने की दृष्टि से जब हम इनोवेटिव कल्चर की बात करते हैं तो इस वक्त 3 संस्थान हैं जो थोड़ा आइसोलेशन में काम कर रहे हैं । पहली इंडस्ट्री है जो अपने इलाके में काम कर रही है । दूसरा एकेडमिक इंस्टिट्यूशन हैं जो अपने क्षेत्र में काम कर रहे हैं । यह एकेडमिक्स इंजीनियर बनाते हैं और इंडस्ट्री उसे यूज करती है । इंडस्ट्री जब उस इंजीनियर को नियुक्त करती है तो 5 वर्ष लगता है उन्हें काम सिखाने में ।
मेरा कहना है कि इंजीनियर को काम करने के दौरान किन किन चीजों की आवश्यकता है, संभव है एकेडमिक इंस्टीट्यूशंस में वह चीजें नहीं सिखाई गई । इस बीच में हम जैसे रिसर्च ऑर्गेनाइजेशंस भी हैं जो रिसर्च की बातें करना चाहते हैं और इसके लिए बहुत सारे प्रोजेक्ट भी हमारे विचारार्थ हैं । हम लोग रिसर्च के प्रति डेडीकेटेड हैं । दुर्भाग्य है इस देश का कि यह तीनों आपस में ज्यादा मिलजुल नहीं रहे हैं । एक बार यह तीनों प्रकार के संस्थान मिल गए और मिलकर काम करने लगे तो फिर इस कंट्री में रिसर्च कल्चर आने से कोई रोक नहीं पायेगा । देश के प्रधानमंत्री के भी बहुत सारे विजन हैं जो सीओपी 26 (COP 26 ) के डेकलरेशन में शामिल किए गए हैं वह सभी पूरे हो सकते हैं, अगर ये तीनों प्रकार के संस्थान एक ट्रैक पर काम करने लगे । इसलिए हमारी यह कोशिश है कि इंडस्ट्री और एकेडमिक्स को भी साथ लाएं जिससे कोलेबोरेटिव वर्क का जो प्रतिफल निकलेगा वह अतुलनीय होगा । वह सुप्रीम होगा और वर्ल्ड के लिए भी एक बड़ी उपलब्धि होगी ।
प्रश्न : क्या आप एकेडमिक इंस्टीट्यूशंस की जो कोर्सेस ऑफ स्टडी है उसमें बड़े बदलाव का सुझाव देना चाहते हैं या फिर वहां इंडस्ट्री रिक्वायर्ड प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के लिए आवश्यक माहौल तैयार करने का संकेत देना चाहते हैं ?
सौरभ दलेला : मेरा संकेत इस दिशा में है कि एक कोलेबोरेटिव अप्रोच बने । एकेडमिक्स में पहले कुछ ऐसे संस्थान होते थे जो छह माह की इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग पर जोर देते थे लेकिन उस वक्त इंडस्ट्री के पास इस प्रकार की सुविधा नहीं होती थी जो आवश्यक ट्रेनिंग दे सके । लेकिन अब उसमें काफी बदलाव है । काफी सुविधाएं हैं । मैं ऐसा नहीं कह रहा कि कोई एकेडमिक्स संस्थान खराब काम कर रहा है बल्कि में ऐसा कहना चाहता हूं कि अब तीनों ही प्रकार के संस्थानों को पंख फैलाकर उड़ने का समय आ गया है । आपस में अपने अनुभवों का एक्सचेंज करने की बेहद जरूरत है ।
कई देश ऐसे हैं जो किसी चीज का अगर निर्माण कर रहे हैं तो उसके रिसर्च के लिए वहां के प्रोफेसर भारत आकर पांच वर्ष तक का लंबा समय लगाते हैं और वापस जाते हैं । लेकिन भारत में ऐसा कल्चर नहीं है । लेकिन मुझे विश्वास है कि अब वह कल्चर आएगा और वह इसलिए आएगा क्योंकि उसके आए बगैर काम नहीं चलेगा । तो इस प्रकार का कल्चर लाने की हमारी पूरी कोशिश रहेगी कि सभी पास आयें ।
प्रश्न : इंजीनियरिंग स्टूडेंट के लिए आपका क्या सुझाव है जिससे वे आप जैसे प्रीमीयर इंस्टीट्यूशंस में जगह पा सके या फिर अच्छी इंडस्ट्री में जगह ले सके या फिर इंडस्ट्री उनका सदुपयोग कर सके ?
सौरभ दलेला : मेरी यह बहुत कोशिश रहती है कि जो युवा स्टूडेंट हैं ग्रेजुएशन कर रहे हैं उनसे मैं अधिक से अधिक बात कर सकूं । उनसे स्वयं को कनेक्ट कर सकूं । मैं स्टूडेंट्स के लिए जो सबसे इंपोर्टेंट मैसेज देना चाहूंगा वह है मैसेज ऑफ इंटरडिपेंडेंट । क्योंकि जब हम बच्चे होते हैं तो हम दूसरों पर डिपेंडेंट होते हैं । उसके बाद जब हम इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश पाते हैं या फिर नौकरी भी लग जाती है तब आपने भी महसूस किया होगा मैंने भी महसूस किया है कि हम स्वयं में एक इंडिपेंडेंट व्यक्ति बन जाते हैं । हमें लगने लगता है कि हम कुछ भी कर सकते हैं । लेकिन मेरा मानना है कि वह मैसेज अधूरा होता है । लेकिन यह सीखते सीखते समझ में बात आती है डिपेंडेंस और इंडिपेंडेंट कुछ नहीं होता है । असली मसला है इंटरडिपेंडेंस का ।
आप मेरे बगैर नहीं चल सकते मैं आपके बगैर नहीं चल सकता । यह मैसेज सीखने में बहुत सारे स्टूडेंट्स को बहुत वक्त लग जाता है । कुछ बहुत जल्द सीख जाते हैं । कुछ दो-तीन साल में सीखते हैं । कुछ 10 से 15 साल का समय लगा देते हैं । कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कभी भी सीख ही नहीं पाते हैं ।
मैं साफ शब्दों में कहना चाहूंगा मैसेज ऑफ इंटरडिपेंडेंट इज द की, इफ यू लर्न दिस, इफ यू गेट डीएनए राइट इन योर माइंड, देन नथिंग इज गोइंग टू बी पॉसिबल विद यू अलोन (Message of interdependence is the key, if you learn this, if you get DNA right in your mind, then nothing is going to be possible with you alone .) ।
अगर मैं यहां बैठकर यह सोच रहा हूं ना कि मैं अकेला इंटरनेशनल सेंटर फॉर आटोमोटिव टेक्नोलॉजी मानेसर को आगे ले जाऊंगा तो यह हमारी बड़ी भूल होगी । मेरे ख़याल से आईकेट (ICAT) जैसे संस्थान को ऊपर ले जाएगी आईकेट की टीम । इंडस्ट्री को भी आगे केवल उसका लीडर लेकर नहीं जाता बल्कि उसकी टीम लेकर जाती है । इसी तरह एकेडमिक्स में भी केवल उसके टीचर ही लेकर नहीं जाते बल्कि पूरी फ्रेटर्निटी उसे आगे बढ़ाती है । ऐसा इसलिए क्योंकि हम लोग इंटर डिपेंडेंट हैं । जब तक इस धारणा को हम आत्मसात नहीं करेंगे तब तक यह कल्चर डेवलप नहीं कर सकते । इसलिए एवरी स्टूडेंट हैज टू बी इंटरडिपेंडेंट (So every student has to be interdependent )।
प्रश्न : आईकेट (ICAT) में जो प्रोडक्ट सर्टिफिकेशंस के लिए आते हैं उसके लिए आपके संस्थान के वर्ल्ड क्लास पैरामीटर, टर्म्स एंड कंडीशन निर्धारित हैं । अगर वह इस पर खड़े नहीं उतरते हैं तो उनके प्रोडक्ट रिजेक्ट हो जाते हैं । ऐसे में आटोमोटिव इंडस्ट्री के लिए आपका क्या सुझाव है ?
सौरभ दलेला : देखिए इंडस्ट्री के लिए हमारे पास ऐसा कोई सुझाव नहीं है । वह इसलिए कि आजकल जो प्रोडक्ट आ रहे हैं सभी वर्ल्ड क्लास हैं । सभी मायने में बेहतरीन हैं । बस केवल उसमें थोड़ा भारतीय टच डालना जरूरी है । एक सर्टिफायर के रूप में मैं ऐसा मानता हूं कि एक कानून होता है जिसका हम अनुसरण करते हैं । दूसरा स्प्रीट ऑफ स्टैंडर्ड होता है ।
मैं अगर एक शिप का उदाहरण दूं तो उसके लिए एक स्टैंडर्ड तय किया गया था । उसके अनुसार उसका निर्माण हुआ और उसमें 25% लोगों के लिए लाइफ वोट्स की व्यवस्था थी । क्योंकि यही स्टैंडर्ड निर्धारित किया गया था और सर्टिफायर ने उन्हें सर्टिफाइड कर दिया क्योंकि स्टैंडर्ड के अनुरूप व्यवस्था की गई थी । शिप का नाम टाइटेनिक था । अंततः बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई । उसमें 25% लोग ही बचाये जा सके । इसलिए सर्टिफायर्स का काम केवल सर्टिफाइड करना ही नहीं बल्कि स्प्रिट ऑफ सर्टिफिकेशन या स्प्रिट ऑफ लॉ की मानसिकता के लिए भी प्रेरित करना होना चाहिए । क्योंकि जब तक आप अपने कस्टमर या इंडस्ट्री के कार्यों में वैल्यू ऐड नहीं करेंगे तो बात नहीं बनेगी । अगर हम केवल यही कहते रहेंगे कि यह सही है यह गलत है तो मेरे ख्याल में आगे का रास्ता रुक जाएगा ।
प्रश्न : देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले वर्षों में कई क्षेत्रों में self-certification के प्रावधान की व्यवस्था की वकालत भी की और इसे लागू भी किया । क्या आप की फिलॉसफी इस मामले में self-certification के लिए इंडस्ट्री को तैयार करने की है जिसमें गुणवत्ता पूर्ण मानसिकता बन सके ?
सौरभ दलेला : इस प्रश्न के दो पहलू हैं । पहला पहलू यह है कि जब मैं आपसे बार-बार यह कह रहा हूं कि हमें रिसर्च के क्षेत्र में प्रवेश करना है । इसका बेसिक ऑब्जेक्टिव यह है कि हम केवल टेस्टिंग के नाम पर न रहें क्योंकि अगर हम सदैव टेस्टिंग करते रहेंगे तो बहुत जल्दी खत्म भी हो जाएंगे । महत्वपूर्ण यह है कि हम पार्टनर बनें और कस्टमर को वैल्यू ऐड करें ।
दूसरा पहलू यह है कि self-certification हम चाहें या ना चाहें भारत में एक दिन आ ही जाएगा । क्योंकि हम जिस समाज की कल्पना करते हैं जो सबसे बेहतरीन समाज होगा, उसमें पुलिस नहीं होगी । क्योंकि सब स्वयं जिम्मेदार होंगे । उन्हें अपनी जिम्मेदारी के उत्तरदायित्व का बोध होगा । इसलिए हमें ऐसे प्रोडक्ट बनाने चाहिए जिसमें टेस्टिंग की आवश्यकता ही न पड़े या फिर बहुत कम पड़े । हमारा फोकस ऐसे ही प्रोडक्ट के निर्माण पर हो जिसमें टेस्टिंग की न्यूनतम आवश्यकता हो ।
ग्राहक आपके पास कभी भी इस आधार पर नहीं आता है कि आप क्या करते हैं , ग्राहक आपके पास इस आधार पर आता है कि आप वह काम क्यों करते हैं । जब तक आपका ध्येय ठीक नहीं है तब तक आपके पास कोई नहीं आएगा । इसलिए अगर आपका ध्येय मानवता के आसपास है उसमें सुरक्षा का दृष्टिकोण है तो फिर आगे का रास्ता आसान रहेगा, अन्यथा मजा नहीं आएगा ।
प्रश्न : साक्षात्कार के अंत में आपसे मेरा सवाल है कि इंटरनेशनल सेंटर फॉर आटोमोटिव टेक्नोलॉजी, मानेसर का फ्यूचर प्लान क्या है ? इस संस्थान ने आप जैसा डायनामिक डायरेक्टर पाया है, इस कारण से यह सवाल आपसे है ?
सौरभ दलेला : यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है और यह भी बहुत महत्वपूर्ण है कि एक संस्थान को आगे ले जाने का एक विजन होना चाहिए । मैंने चर्चा में पहले आप से कहा कि सस्टेनेबिलिटी , सेफ्टी और सिक्योरिटी ऐसे 3 पहलू हैं जिस पर काम करना जरूरी है । सस्टेनेबिलिटी को लेकर देश के प्रधानमंत्री सीओपी 26 (COP 26) के डेकलरेशन में काफी महत्वपूर्ण उद्घोषणा कर चुके हैं। वह डेकलरेशन ऐसा है कि केवल भारत ही उन चीजों का स्पष्टता से अनुसरण करता आ रहा है । जबकि दुनिया के बाकी देश कभी-कभी अपने किए गए वायदे से पीछे हट जाते हैं । लेकिन भारत अपने वायदे पर खरा उतरता है ।
प्रधानमंत्री जी ने वर्ष 2030 तक के लिए कुछ लक्ष्य निर्धारित किए हैं जिसमें आटोमोटिव इंडस्ट्री की महत्वपूर्ण भूमिका है । उन लक्ष्यों को हमें बहुत संजीदगी से लेने की जरूरत है । सबसे खुशी की बात यह है कि यह मुमकिन है । यह मुमकिन इसलिए है कि हमारे पास समय है । अगले 8 साल में सब कुछ हो सकता है तो हमें सस्टेनेबिलिटी की दृष्टि से इस तरफ जाना चाहिए । बाकी एडास (ADAS) से शेयर्ड मोबिलिटी और कनेक्टेड मोबिलिटी भी आएगी लेकिन इसकी हमें बहुत जल्दी नहीं है । यह धीरे-धीरे आएगा और आ जाएगा । सस्टेनेबिलिटी, अभी हमारे पास एक टारगेट है जिसमें 2030 तक हमें बहुत सारी चीजें हासिल करनी है । सिक्योरिटी को लेकर भी हमें काम करना है जिससे कि मानवता सुरक्षित रहे ।
प्रश्न : क्या आने वाले समय में हमें इंटरनेशनल सेंटर फॉर ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजी (आई केट ) ICAT का एक्सपेनशन (Expansion ) भी देखने को मिलेगा ?
सौरभ दलेला : एक्सपेंशन का विजन तो है । अभी शुरुआत है । मुझे यहां आए हुए एक माह ही हुए हैं लेकिन मेरे मन में बहुत सारी चीजें हैं । 3 पहलुओं के मद्देनजर हमारा फोकस रहेगा ।
प्रश्न : एक्सपेनशन (Expansion) का मेरा सवाल इसलिए लाजमी है की आज देश के अलग-अलग राज्यों में आटोमोटिव इंडस्ट्री जा रही हैं । ऐसे में उन्हें उसी क्षेत्र में आईकेट (ICAT) की सुविधा मिल सके, क्या इस प्रकार का भी कोई कंसेप्ट आपकी योजना में है ?
सौरभ दलेला : मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि आईकेट (ICAT) आरम्भ से ही ग्लोबल स्तर पर अपनी सेवाएँ दे रहा है । हमारे लिए कोई दूरी मायने नहीं रखती है . पूर्व हो या पश्चिम, उत्तर हो या दक्षिण ये बॉर्डर तो आईकेट ने काफी पीछे छोड़ दिया है । आइकेट ने ग्लोबल होमोलोगेशन /सर्टिफिकेशन में अब तक लगभग 6 मिलियन यू एस डालर्स का व्यवसाय किया है । इसलिए आइकेट ने पहले से ही सभी सीमाओं को तोड़ दिया है ।
ऐसे बहुत सारे टेस्ट हैं जो हम मैन्युफैक्चरर की यूनिट में ही कर सकते हैं । अगर मैन्युफैक्चरर के पास जीरो फैसिलिटी भी है तो भी काफी चीजें हम वहां कर सकते हैं । हां शत-प्रतिशत टेस्ट नहीं लेकिन काफी चीजें हम कर सकते हैं । कुछ टेस्ट्स ऐसे होते हैं जो हमें आवश्यक रूप से करने ही होते हैं और वह टेस्ट ऐसे हैं जिसमें इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता होती है ।
मिसाल के तौर पर ब्रेकडाउन टेस्ट करने हैं तो हमें एक स्टैंडर्ड सड़क की आवश्यकता होती है । उसके लिए उनके प्रोडक्ट की आवश्यकता हमें टेस्ट ट्रैक पर पड़ती है । लेकिन जैसा कि मैंने पहले बताया कि भारत सरकार के भारी उद्योग मंत्रालय का विजन था जो नट्रिप ( NATRIP ) का प्रोजेक्ट था, उसके अंतर्गत उन्होंने इस चीज को रखा हुआ था और इसलिए ही एक मैन टेस्ट ट्रैक इंदौर में बनाया गया. इंदौर में इसलिए बनाया गया क्योंकि वहां से देश के अन्य राज्यों के बड़े शहरों को भी समान दूरी पर सुविधा मिल सके । इंदौर का सिलेक्शन ही इसी धारणा पर किया गया था क्योंकि वह सेंटर ऑफ कंट्री में है । ऐसे में कोई भी स्टेट यह नहीं कह सकता कि हमसे अधिक दूरी पर है । मैं फिर दोहराना चाहता हूँ कि आईकेट (ICAT) के पास नेशनल और इंटरनेशनल दोनों ही स्तर के कस्टमर्स हैं । हमारे पास किसी भी क्षेत्र में स्थापित ऑटोमोटिव इंडस्ट्री को सेवाएँ देने की व्यवस्था और सुविधाएँ हैं.
यहां मानेसर में भी टेस्ट ट्रैक है जिस पर हम बेसिक टेस्ट कर सकते हैं । इसके अलावा हमारा भी आईडी अहमदनगर में एक टेस्ट ट्रेक है जिसका हम उपयोग कर सकते हैं और जीएआरसी पर भी एक टेस्ट ट्रैक है । उसका भी उपयोग कर सकते हैं । मुद्दा यह नहीं है कि कौन टेस्ट करेगा बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि 4-5 एजेंसी किस प्रकार की सर्विस वैल्यू टू कस्टमर दे सकती है । सर्टिफाई तो आईकेट (ICAT) भी करता है , एआरआई भी करता है, जीआरसी भी करता है, नैट्रिक्स भी करता है और भी संस्थान जैसे सीआरटी भी करता है । लेकिन कस्टमर को आप क्या वैल्यू देते हैं वह ज्यादा जरूरी है । हम लोगों का स्पष्ट मैसेज है कि कितना वैल्यू हम कस्टमर को दे सकते हैं ।
आईकेट (ICAT) की 10 साल की जर्नी अगर आप देखें जब मैं इस संस्थान में नहीं भी था और इसके साथ काम करता था तब भी यह संस्थान अपनी सेवा के प्रति फोकस्ड रहा है । त्वरित गति से काम किया जाता है यहां । एक सिंगल प्वाइंट कांटेक्ट भी मिल जाता है जिनसे इंडस्ट्री बातचीत कर सकती है । उन्हें सहायता भी दी जाती है ।
मुश्किलें तो आती हैं लेकिन कोई भी चीज एक बार में नहीं हो सकती। कोई भी सर्टिफिकेशन बहुत आसान नहीं होता । कुछ समस्याएं आती हैं लेकिन आईकेट (ICAT), उसमें किस तरह से भूमिका अदा करता है वह बेहद महत्वपूर्ण है । अगर वह सही है तो फिर साउथ, नॉर्थ, वेस्ट या ईस्ट से कोई फर्क नहीं पड़ता । कस्टमर आपके पास आएंगे । यही कारण है कि यहाँ देश के सभी राज्यों के अलावा अंतर्राष्ट्रीय स्तर से भी कस्टमर्स आते हैं । जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि कस्टमर इस आधार पर नहीं आते हैं कि आप क्या करते हैं ? कस्टमर इस आधार पर आते हैं कि आप क्यों करते हैं और कैसे करते हैं ?