-कुल 109 पृष्ठों की काव्य रचना है “प्रबोधनी प्रवाह”
– 43 कवियों व कवियित्रियों की 64 कविताओं को साझा संकलन के रूप में किया गया प्रकाशित
-नवारम्भ प्रकाशन पटना की ओर से प्रकाशित पुस्तक की डिजिटल और हार्ड कॉपी दोनों उपलब्ध
-विमोचन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि देश के प्रख्यात इतिहासकार प्रोफेसर रत्नेश्वर मिश्र थे
गुरुग्राम : देश के हिंदी रचनाकारों एवं पाठकों में पिछले कई वर्षों से स्थापित सोशल मीडिया के रचनात्मक प्लेटफार्म प्रबोधिनी प्रवाह की ओर से शनिवार 17 दिसंबर को संस्था से जुड़े रचनाकारों के साझा काव्य संकलन प्रबोधिनी प्रवाह ( Prabodhini -Life in Poetry ) के प्रथम संस्करण का विमोचन किया गया. ऑनलाइन माध्यम से आयोजित विमोचन कार्यक्रम में देश के प्रख्यात इतिहासकार प्रोफेसर रत्नेश्वर मिश्र मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे जबकि विशिष्ट अतिथि के तौर पर वरिष्ठ पत्रकार सुभाष चौधरी और रचनाकार विपिन झा, संस्था के संस्थापक व संपादक सुधीर मिश्र ‘सहज’, प्रकाशक व लेखक अजीत आजाद सहित दर्जनों, कवि, कवियित्री और लेखक मौजूद थे. कुल 109 पृष्ठों की काव्य रचना “प्रबोधनी प्रवाह” में 43 कवियों व कवियित्रियों की 64 कविताओं को प्रकाशित किया गया है. नवारम्भ प्रकाशन पटना/ मधुबनी की ओर से प्रकाशित पुस्तक की डिजिटल और हार्ड कॉपी दोनों पाठकों के लिए उपलब्ध करवाई गई है. इस विशेष आयोजन के प्रत्यक्षदर्शी के रूप में 90 वर्षीय बुजुर्ग समाजसेविका कल्याणी ठाकुर भी अपने पुत्र पवन ठाकुर के साथ ऑनलाइन माध्यम से गुरुग्राम स्थित निवास से लगातार जुड़ी रहीं और सभी लेखकों एवं सुधि पाठकों को अपने आशीर्वचन से सिंचित किया.
विभिन्न साहित्यकारों और कवियों के संसार का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था के विमोचन कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्वलन और प्रबोधिनी से जुड़ी कवियित्री अन्नपूर्णा झा की ओर से प्रस्तुत मां भगवती के भजन से किया गया. मंच संचालन की जिम्मेदारी गुरुग्राम स्थित केंद्र सरकार की एक प्रमुख संस्था में कार्यरत वरिष्ठ अधिकारी व रचनाकार पवन ठाकुर ने बखूबी निभाई. श्री ठाकुर प्रबोधनी संस्था के प्रबंधक की भी महत्वपूर्ण भूमिका में है. अपने व्यस्ततम प्रोफेशनल जीवन के बावजूद स्वयं की रचनात्मकता को बरकरार रखना और दूसरे रचनाकारों के लिए प्रेरक अवसर तैयार करना श्री ठाकुर की प्रकृति है जो आज के विमोचन कार्यक्रम में भी स्पष्ट देखने को मिला. उनकी भी रचना इस पुस्तक में शामिल है.
व्याकरणीय अनुशासन पर विशेष ध्यान : प्रो रत्नेश्वर मिश्र
बेहद सरल हिंदी भाषा में प्रकाशित साझा काव्य संकलन “प्रबोधिनी प्रवाह” के विमोचन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि व साहित्य की गहरी समझ रखने वाले देश के प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर रत्नेश्वर मिश्र ने संस्था के इस साझा प्रयास की जमकर प्रशंसा की. उन्होंने इस काव्य रचना में रचनाकारों की कल्पनाशीलता और गूढ़ से गूढ़तम संदेश को बेहद सरल भाषा में प्रस्तुत करने के लिए सराहना की साथ ही उन्हें भविष्य में साहित्य के लिए आवश्यक व्याकरणीय अनुशासन पर विशेष ध्यान देने का सुझाव दिया. उन्होंने कहा कि साहित्य में सत्य और कल्पना की मिलौनी से महत्व ही नहीं बढ़ता बल्कि इसकी प्रासांगिकता भी स्थापित होती है. प्रोफेसर मिश्र ने उक्तियों के प्रकार और भाव आधारित इसके उपयोग को लेकर भी विस्तार से बात की.
उनका मानना है कि साहित्य से एक संवेदनशील समाज के सृजन की परिकल्पना की जाती है. ऐसे में रचनाकार चाहे गद्य लेखक हो या फिर पद के लेखक उनके कंधों पर बड़ी सामाजिक जिम्मेदारी है. प्रबोधिनी प्रवाह रूपी संस्था इसे बखूबी निभाने के लिए कदम बढ़ा चुकी है . उन्होंने संस्था से जुड़े सभी रचनाकारों को अपनी शुभकामनाएं दी.
मजबूत नींव पर बेहतरीन इमारत खड़ी होगी : बिपिन झा
समारोह को संबोधित करते हुए वरिष्ठ रचनाकार बिपिन झा ने संस्था की ओर से पुस्तक प्रकाशित करने के निर्णय की प्रशंसा की. उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले वर्षों में और उत्तम से उत्तम संस्करण देखने को मिलेगा. उनका कहना था कि यह संस्करण मजबूत नींव की तरह है जिसपर बेहतरीन इमारत खड़ी होगी.
साहित्य मनुष्य को संवेदनशील व उर्वरक बनाए रखने में सहायक : सुभाष चौधरी
कार्यक्रम में गुरुग्राम से ऑनलाइन माध्यम से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार सुभाष चौधरी ने प्रबोधिनी प्रवाह के प्रथम संस्करण के प्रकाशन के लिए संस्था के संस्थापक एवं संपादक सुधीर चंद्र मिश्र ‘सहज” एवं उनके संपादकीय सदस्यों को बधाई दी. इस अवसर पर उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि साहित्य चाहे कविता के रूप में समाज को मिले या फिर गद्य के रूप में, यह सामाजिक चेतना को बनाए रखने के लिए वैसे ही जरूरी है जैसे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए दवाई. उनका कहना था कि दवाई का कोई भी रूप चाहे टेबलेट जिसे हम गद्य कह सकते हैं और लिक्विड तरल रूप जिसे हम कविता कह सकते हैं हमारे लिए अति आवश्यक है. यह मनुष्य के मानस और हृदय पटल को सिंचित कर सदैव संवेदनशील और उर्वरक बनाए रखने में सहायक है.
उन्होंने बल देते हुए कहा कि विशेषकर कवियों के लिए उक्ति कही गई है, “ जहां न जाए रवि वहां जाए कवि ” . जिस काल और परिस्थिति में यह उक्ति कही गई है तब और अब में इसकी प्रासांगिकता पर कोई फर्क नहीं पड़ा है. हम सब इस बात से सहमत होंगे कि आज इस उक्ति को और संजीदगी के साथ चरितार्थ करने की जरूरत है. उन्होंने यह कहते हुए संतोष जताया कि प्रबोधिनी प्रवाह की स्थापना संभवतः इन्हीं भावनाओं के साथ की गई है. उन्होंने इस प्रवाह के अविरल चलायमान रहने की कामना की साथ ही इस रचनात्मक सामाजिक मीडिया प्लेटफॉर्म का नामकरण प्रबोधिनी प्रवाह रखने के लिए संपादक श्री मिश्र की मुक्त कंठ से प्रशंसा की.
सुभाष चौधरी ने प्रबोधिनी प्रवाह के प्रथम संस्करण का आरंभ द्वंद शीर्षक नामक कविता से और अंत सावन शीर्षक कविता से करने के लिए संस्था के संपादक मंडल के सभी सदस्यों की सराहना की. उन्होंने कहा कि द्वंद्व से शुरू रचना अगर उम्मीद और आशा के साथ समाप्त हो तो इससे नए सिरे से जीने का प्रोत्साहन मिलता है. यह संदेश इस काव्य रचना से स्पष्ट मिलता है. उन्होंने सोशल मीडिया पर साहित्य की रचनाओं के प्रकाशन को लेकर व्यक्त की जा रही आशंकाओं को निर्मूल करार दिया.
साहित्य की गुणवत्ता को लेकर सतर्क रहने की जरूरत : सुधीर मिश्र
संस्था के संस्थापक एवं संपादक सुधीर चंद्र मिश्र ‘ सहज ‘ ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्रबोधिनी प्रवाह जैसी संस्था के गठन और उत्तरोत्तर विकास की विस्तार से जानकारी दी. किसी रचनात्मक संस्था को पल्लवित और पुष्पित करने के क्रम में किस प्रकार की सम व विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है इस संबंध में अपने अनुभव भी उन्होंने साझा किये. उन्होंने कहा कि हमें साहित्य की गुणवत्ता को लेकर सतर्क रहने की जरूरत है. उनका कहना था कि एक लेखक चाहे गद्य लिखे या पद्य, क्या बोलना है, क्या लिखना है और क्या करना है इन प्रमुख पहलुओं को ध्यान में रखकर अपनी कलम को आगे बढ़ाएं. ऐसे रचनाकार समाज और देश के निर्माण में अपना अर्थपूर्ण योगदान दे सकेंगे.
श्री मिश्र ने बताया कि उनकी संस्था में ऐसे नव रचनाकारों की संख्या काफी अधिक है जिन्हें उन्होंने उनकी भाषाओं की समृद्धता को देखते हुए साहित्य के क्षेत्र में कदम आगे बढ़ाने को प्रेरित किया. इसका ही प्रतिफल है कि आज संस्था के संपादक मंडल में शामिल सदस्य अच्छी रचना का योगदान करने के साथ-साथ सफल संपादन भी कर रहे हैं. उनका कहना था कि प्रबोधिनी प्रवाह काव्य रचना के प्रथम संस्करण के प्रकाशन की पूरी व्यवस्था संस्था से जुड़े हुए लोगों ने ही की है. इसमें संपादन से लेकर प्रकाशन तक की भूमिका इसी संस्था से जुड़े हुए प्रतिनिधियों ने निभाई है जिससे बाह्य दुनिया पर निर्भर होने की जरूरत नहीं पड़ी.
सुधीर चंद्र मिश्र ने कहा कि हमने नव रचनाकारों को अधिकाधिक अवसर प्रदान करने की कोशिश की है. प्रबोधिनी इसी लक्ष्य को संधान करता एक समूह है . इसमें अधिकतर कवि अपनी ही जिंदगी की छुपी अभिव्यक्ति को छोटे या फिर बड़े रूप में शब्दों में पिरो कर एक धारा का निर्माण कर रहे हैं. इसे पढ़ने वाले इस प्रवाह में प्रवाहित हो मानव वेदना, हर्ष व आकांक्षा को अच्छी तरह समझ पाएंगे और एक संवेदनशील समाज का निर्माण हो सकेगा. उन्होंने खुलासा किया कि साहित्य जगत की संभवतः यह पहली पुस्तक है जिसमें रचनाकार ही इस काव्य संग्रह के संपादक भी हैं. उन्होंने उम्मीद जताई कि उनकी संस्था भविष्य में भी इस प्रकार के कई और साझा संकलन लेकर आएगी. इस पुस्तक के प्रकाशन में लीक अलग हटकर सहयोग करने के लिए प्रकाशक अजीत आजाद का धन्यवाद किया .
साहित्यकार नए संकेत के साथ सामने आते हैं तो उसके खास मायने : अजीत आजाद
इस अवसर पर मौजूद प्रकाशक व लेखक/कवि अजीत आजाद ने वर्तमान युग में साझा प्रयास से साझा अंक प्रकाशित करने के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि इसमें अधिकतर नए रचनाकार हैं लेकिन उनकी रचना सारगर्भित होने के साथ-साथ सुग्राह्य भी है. उन्होंने कहा कि आज देश में संयुक्त परिवार, साझा जीवन और साझी संस्कृति और सह अस्तित्व के साथ जीने की प्रवृत्ति विलुप्त सी हो रही है. ऐसे में साहित्यकार नए संकेत के साथ सामने आते हैं तो उसके खास मायने हैं. आज देश में अधिकतर भाषाओं में साझिया कविता संग्रह /साझा संग्रह आया है यह अकारण नहीं है. उन्होंने कहा कि साहित्य अपने तरह से समाज को सदैव दिशा निर्देशित करता रहा है.
अजीत आजाद ने कहा कि आज जब जाति, धर्म, गरीबी, अमीरी और अन्य प्रकार की धाराओं में बांटकर अलग तरह से देश को आगे ले जाने की कोशिश हो रही है तब सुधीर मिश्र और अन्य साहित्यकारों ने साझा संस्कृति का जो बीजारोपण किया है यह महत्वपूर्ण घटना है. इसके दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे. उन्होंने बल देते हुए कहा कि प्रबोधिनी प्रवाह साझा संकलन उम्मीद की एक किरण के रूप में सामने है. इस कोशिश के लिए उन्होंने प्रबोधिनी संस्था के संस्थापक, संपादक, संपादक मंडल के सभी सदस्यों, एवं रचनाकारों को बधाई दी.
साहित्यकार आदित्यनाथ झा ने भी समारोह को संबोधित किया और लेखकों को अपनी शुभकामनाएं दी. उन्होंने सभी नवोदित रचनाकारों को अपनी रचनात्मकता रूपी अग्नि को समाज हित में निरंतर जलाए रखने को प्रेरित किया .
यह एक सुखद स्वप्न था : निरुपमा ठाकुर
पुस्तक विमोचन के डीजिटल समारोह में इस पुस्तक की उत्पत्ति से लेकर प्रकाशन तक के अनुभव साझा करते हुए संपादक मंडल की सदस्य निरुपमा ठाकुर ने कहा कि यह एक सुखद स्वप्न था. उन्हें अचानक इस काव्य रचना के प्रकाशन का विचार आया और सभी सदस्यों की बैठक आहूत कर सहमति ले ली गई. उन्होंने कहा कि इसे हकीकत में लाना कठिन था लेकिन प्रेरणा स्रोत संपादक और संस्थापक सुधीर मिश्र एवं सभी रचनाकारों के योगदान से यह सफल हो पाया. इस यात्रा में कई बिछड़े तो कई नए सदस्य जुड़े जो अपने आप में यादगार अनुभव है. उन्होंने आश्वस्त किया कि भविष्य में उत्तरोत्तर सुधार की कोशिश की जाएगी.
सामूहिक प्रयास से कोशिश कामयाब हुई : प्रीता झा
प्रबोधिनी संपादक मंडल की एक और सदस्य प्रीता झा ने संस्था का परिचय अपनी एक कविता के माध्यम से दिया. उक्त कविता में उन्होंने लेखकों, रचनाकारों और संस्था के प्रबंधन में जुड़े सदस्यों की भूमिका को रेखांकित करने की कोशिश की. उन्होंने इस प्रकार की संस्था की प्रासंगिकता की मजबूती से वकालत की. उनका कहना था कि इससे पूर्व साहित्य से संबंध नहीं रहते हुए भी सामूहिक प्रयास से उनकी कोशिश कामयाब हुई और आज उसका मूर्त रूप दुनिया के सामने हैं.
प्रबोधिनी समूह से जुड़ी कवियित्री बबली और आरती ने भी अपने अनुभव साझा किये . साथ ही प्रथम संस्करण के प्रकाशन और विमोचन पर प्रसन्नता व्यक्त की. उन्होंने माना कि इस संस्करण के मूर्त रूप को सामने देखकर आने वाले समय में उनकी रचनाओं को और अधिक बल मिलेगा जबकि जनहित में लेखन के लिए प्रेरणा भी मिलेगी .
सरिता मिश्र ने किया अतिथियों का धन्यवाद
समारोह के अंत में समूह की प्रमुख सदस्य सरिता मिश्र ने कार्यक्रम से जुड़ने वाले सभी अतिथियों, लेखकों और श्रोताओं का धन्यवाद किया. उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले वर्ष में इस संस्था के इतिहास में कई और पुस्तक रूपी पंखुड़ियां जुड़ेंगी जिसका लाभ साहित्य में गहरी रूचि रखने वाले साहित्य साधकों को मिलेगा. इस मौके पर साहित्य की दुनिया में रुचि रखने वाले दर्जनों पाठक व श्रोता भी डिजिटल माध्यम से उपस्थित रहे .