नई दिल्ली : संसद के उच्च सदन राज्यसभा में आज यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल से संबंधित एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश करने को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जबरदस्त तकरार देखने को मिली. भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद डॉक्टर किरोड़ी लाल मीणा की ओर से प्राइवेट मेंबर बिल प्रावधान के तहत यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल को तैयार करने के लिए एक कमेटी गठित करने संबंधी बिल पेश किया गया. सदन में इसे विचार के लिए स्वीकार करने का विपक्षी सांसदों ने प्रबल विरोध किया. हालांकि राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के हस्तक्षेप के बाद भाजपा सांसद द्वारा प्रस्तुत बिल बहुमत के आधार पर विचार के लिए स्वीकार कर लिया गया. भाजपा सांसद इसे देश के लिए जरूरी बताते देखे गए तो दूसरी तरफ विपक्षी सांसद इस बिल से देश में वैमनस्य पैदा होने की आशंका व्यक्त कर रहे थे.
राज्यसभा में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच चल रही तकरार को समाप्त करने के लिए सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा कि प्राइवेट मेंबर बिल प्रावधान के तहत सदन के किसी भी सांसद को किसी भी विषय पर प्राइवेट बिल लाने का अधिकार प्राप्त है. इस अधिकार से किसी भी सांसद को वंचित नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि हमें निर्धारित संसदीय प्रक्रियाओं का पालन करना होगा. अगर किसी सांसद को किसी बिल या किसी विषय पर विरोध है तो वह मौका मिलने पर अपनी बात मजबूती से रख सकते हैं. सभापति ने सभी विपक्षी सांसदों को अपने विचार व्यक्त करने का पूरा अवसर देने का आश्वासन दिया.
उल्लेखनीय है कि भाजपा के राजस्थान से राज्यसभा सांसद डॉ किरोड़ी लाल मीणा को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने जैसे ही सदन में “ बिल फॉर द कॉन्स्टिट्यूशन ऑफ़ द नेशनल इंस्पेक्शन एंड इन्वेस्टिगेशन कमिटी फॉर प्रिपरेशन ऑफ यूनियन सिविल कोर्ट एंड इट्स इंप्लीमेंटेशन “ को पेश करने के लिए पुकारा तभी एमडीएमके सांसद वायको ने अपने स्थान पर खड़े होकर विरोध करना शुरू कर दिया. राज्यसभा के सभापति ने वाइको को कई बार सख्त लहजे से तो कई बार नियमों का हवाला देते हुए अपनी सीट पर बैठने को कहा और अपनी बारी आने पर बिल पर अपने विचार व्यक्त करने की सलाह दी. एमडीएम के सांसद लगातार अपनी बात पर अड़े रहे लेकिन सभापति ने सदन में व्यवस्था देकर भाजपा सांसद किरोड़ी लाल मीणा को बिल सदन के पटल पर रखने की अनुमति दे दी.
बारंबार इस मसले पर हो रहे हंगामे के बीच सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा की विपक्ष हो या सत्तापक्ष हंगामा कर किसी भी सांसद को अपने अधिकार से नहीं रोक सकते . उन्होंने कहा कि इस बिल पर देश को दोनों पक्षों के विचार जानने दीजिए. उनका कहना था कि अंततः सदन में प्रस्तुत किसी भी विषय या बिल पर अंतिम निर्णय सदन का होता है. उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि सदन निर्धारित नियमों के अनुरूप ही चलेगा और जबरन हंगामा या फिर नारेबाजी कर सदन की बैठक को अवरुद्ध करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
उल्लेखनीय है कि यूनिफॉर्म सिविल को लेकर देश में लंबे समय से बहस होती रही है. भारतीय जनता पार्टी आरंभ से ही इस कानून को देश में लागू करने के पक्ष में रही है जबकि कांग्रेस पार्टी सहित अन्य विपक्षी दल इसके विरोध में. यह नजारा आज राज्यसभा में स्पष्ट रूप से देखने को मिला. इस बिल को सदन में प्रस्तुत करने का विरोध करने वालों में एमडीएमके सांसद वायको, समाजवादी पार्टी के सांसद रामगोपाल यादव, राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा, कांग्रेस पार्टी के सांसद इमरान प्रतापगढ़ी, जेबी माथे हाशिम और डॉ फौजिया खान सहित कई विपक्षी सांसद थे. सभी विपक्षी सांसदों ने भाजपा सांसद से इसे वापस लेने की अपील की जबकि सभापति से इसे अस्वीकार करने की मांग की.
अंततः सभापति जगदीश धनखड़ ने बिल को पेश करने के बाद ध्वनिमत के आधार पर इसे विचारार्थ स्वीकार करने के लिए सदन के सामने रखा. पहले इसे ध्वनिमत के आधार पर विचारार्थ स्वीकार होने की घोषणा कर दी गई लेकिन विपक्षी सांसदों द्वारा इस विषय पर मत विभाजन की मांग करने के बाद वोटिंग कराई गई. इस बिल को विचार के लिए स्वीकार करने के पक्ष में 63 मत पड़े जबकि विपक्ष में 23 मत पड़े . सभापति जगदीप धनखड़ ने बिल को विचारार्थ स्वीकार करने की घोषणा की.
जाहिर है इस प्राइवेट मेंबर बिल के पेश होने के साथ ही यूनिफार्म सिविल कोड को लेकर देश में माहौल गरमाने के आसार हैं कहा बात यहाँ है कि इस बार केंद्र सरकार स्वयं यह बिल लेकर नहीं आई है बल्कि भाजपा के सांसद प्राइवेट मेंबर बिल लेकर आये हैं. सत्ता पक्ष का राजनीतिक रूप से यह सोची समझी रणनीति का हिस्सा हो सकता है.
हालांकि यह बिल राजसभा में पेश तो हो गया लेकिन इस पर होने वाली बहस के दौरान भी सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जबरदस्त तकरार देखने को मिल सकती है. विपक्षी सांसद इस बात की आशंका अभी से जता रहे हैं कि इस बिल के बहाने देश में अलग-अलग धर्मों में विभेद पैदा होगा और सामाजिक संरचना को नुकसान पहुंचेगा. दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि संविधान सभा में भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी और इस संबंध में संविधान में भी संकेत दिए गए हैं. इसलिए यह किसी भी दृष्टि से असंवैधानिक नहीं है क्योंकि एक देश में अलग-अलग धर्मों के लोगों के लिए अलग-अलग प्रकार के कानून लागू करना सही नहीं है.