नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को फैसला सुनाया कि बेनामी कानून को केवल संभावित रूप से लागू किया जा सकता है और पूर्वव्यापी रूप से नहीं. सर्वोच्च अदालत ने इस अधिनियम की धारा 3 (2) को “असंवैधानिक” करार दिया. यानी इस नियम के बनने से पूर्व के किसी भी मामले में यह लागू नहीं होगा. इस निर्णय से बेनामी संपत्ति मामले में कार्रवाई की आशंका से पीड़ित बड़े पैमाने पर ऐसे लोगों को राहत मिलेगी जिनपर सरकारी तलवार लटकी हुई है.
देश के कई व्यवसायी बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम पर इस फैसले का इंतजार कर रहे हैं. उल्लेखनीय है कि यह बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम 1 नवंबर, 2016 को देश में लागू किया था. लेकिन अब शीर्ष अदालत ने कहा कि 2016 के अधिनियम का केवल संभावित प्रभाव है और इस प्रकार, संशोधन से पहले की गई सभी कार्रवाइयों को रद्द करने का निर्णय सुनाया। यानी नियम बनने के बाद के मामले में यह लागू होगा न कि इससे पहले के मामले में.
बता दें कि बेनामी अधिनियम की धारा 3, जिसे अदालत ने “असंवैधानिक” करार दिया, का कहना है कि कोई भी व्यक्ति जो किसी भी प्रकार का बेनामी लेनदेन करता है, उसे तीन साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अगुवाई वाली पीठ ने आज कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ केंद्र द्वारा दायर एक याचिका के बाद फैसला सुनाया. इसमें कहा गया था कि 2016 का संशोधन अधिनियम प्रकृति में संभावित था।
इस नए कानून ने बेनामी के रूप में वर्गीकृत लेनदेन की परिभाषा का विस्तार करते हुए कठोर दंड का प्रावधान किया गया है. इस कानून के लागू होने का बाद कई बड़े फर्म और बड़े व्यावसायी जांच के दायरे में आ गए हैं. इससे व्य्वासयियों में हड़कम्प मचा हुआ था क्योंकि सरकार ने ऐसे लोगों पर भी कार्रवाई करनी शुरू क्र दी थी जिन्होंने बेनामी लेनेदेन इस नियम के लागू होने से पहले किये थे. खबर है कि बहरत सरकार के टैक्स डिपार्टमेंट ने इस कानून के तहत पहले की अवधि के लिए नकद लेनदेन और बेनामी संपत्ति सौदों के लिए हजारों नोटिस जारी किए थे जिन पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद रोक लगेगी और उन्हें बड़ी राहत मिली है.