भारत ने 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल करने की प्रतिबद्धता दोहराई

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भारत ने पर्यावरण और जलवायु मामले तथा 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल करने की सीओपी 26 की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने की प्रतिबद्धता दोहराई

भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत-जर्मनी अंतर सरकारी आयोग के हिस्से के रूप में बर्लिन में अपनी जर्मन समकक्ष सुश्री स्टेफी लेमके, संघीय पर्यावरण, प्रकृति संरक्षण, परमाणु सुरक्षा और उपभोक्ता संरक्षण मंत्री के साथ प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता की

डॉ. जितेंद्र सिंह ने दुनिया में अग्रणी सुनामी सेवा प्रदाता (टीएसपी) देशों में शुमार भारत की विशेषज्ञता का उपयोग करने के लिए जर्मनी को न्योता दिया

बर्लिन /नई दिल्ली :  भारत ने आज पर्यावरण और जलवायु मामले को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई और बताया कि  2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल करने की सीओपी 26 की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन और कई ऐसी पहलें शुरू की हैं।

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने जर्मनी के अपने दौरे के दूसरे दिन भारत-जर्मनी अंतर सरकारी आयोग के हिस्से के रूप में बर्लिन में अपनी जर्मन समकक्ष सुश्री स्टेफी लेमके, संघीय पर्यावरण, प्रकृति संरक्षण, परमाणु सुरक्षा और उपभोक्ता संरक्षण मंत्री के साथ प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता की।

बैठक का एजेंडा पर्यावरण संरक्षण के लिए जलवायु परिवर्तन, जैविक विविधता, महासागरों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिए अनुकूलन था।

जलवायु और मौसम को लेकर निकट भविष्य की चुनौतियों के मद्देनजर, डॉ. जितेंद्र सिंह ने मॉडल विकास, अक्षय ऊर्जा में पूर्वानुमानों के अनुप्रयोग और निश्चित रूप से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस/मशीन लर्निंग के उपयोग सहित इस क्षेत्र में हमारे सहयोग को बढ़ाने के लिए अभिरुचि व्यक्त की। उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी द्विपक्षीय साझेदारी के रणनीतिक स्तंभों में से एक रहा है और मौसम व जलवायु अनुसंधान के उभरते क्षेत्रों में विशेष रूप से, क्षेत्रीय जलवायु की तीव्रता के रुझानों और उष्णकटिबंधीय तथा उच्च अक्षांश सहित संवेनशील क्षेत्रों की परिवर्तनशीलता को लेकर द्विपक्षीय वैज्ञानिक सहयोग की संभावनाओं का पता लगाने का सुझाव दिया।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने अपने जर्मन समकक्ष को बताया कि इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इंफॉर्मेशन सर्विसेज (आईएनसीओआईएस), हैदराबाद में इंडियन सुनामी अर्ली वार्निंग सेंटर (आईटीईडब्ल्यूसी) हिंद महासागर के किनारे स्थित देशों को सुनामी से संबंधित खतरों के लिए पूर्व चेतावनी की सूचना प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि भारत को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन – अंतर सरकारी समुद्र विज्ञान आयोग (यूनेस्को-आईओसी) के तहत सुनामी सेवा प्रदाताओं (टीएसपी) में से एक के रूप में मान्यता दी गई है और इस अवसर का उपयोग करने के लिए जर्मनी को आमंत्रित किया है।

 

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डॉ. जितेंद्र सिंह ने संतोष व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि भारत यूनेस्को-आईओसी के माध्यम से मकरान क्षेत्र में संभावित सुनामी खतरा आकलन (पीटीएचए) की दिशा में काम कर रहा है और यूएनईएससीएपी द्वारा वित्त पोषित है, जहां जर्मन विशेषज्ञ और संस्थान इस पहल का हिस्सा हैं।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के संस्थानों और जर्मन वैज्ञानिक/अनुसंधान एजेंसियों के बीच आपसी सहयोग को मजबूत करने के लिए डॉ. जितेंद्र सिंह ने संभावित सुनामी खतरे के आकलनों, भूपंकों के चलते समुद्र के नीचे भूस्खलन से उत्पन्न ’असामान्य सुनामी’ सहित सूनामी का जल्द पता लगाने, उप-समुद्री भूस्खलन के लिए पृथ्वी की उप-सतह की जियोडायनामिक मॉडलिंग और ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (जीएनएसएस) डेटा का उपयोग करके भूपर्पटीय विरूपण निगरानी, हिंद महासागर में (मकरान सबडक्शन जोन पर अधिक जोर) सबडक्शन जोन की टेक्टोनिक सेटिंग्स और मशीन लर्निंग विधियों को एकीकृत करने, आपदा पूर्व तैयारियों को मजबूत करने के लिए क्षमता निर्माण गतिविधियां और सुनामी रेडी जैसे जोखिम कम करने के कार्यक्रम, दीर्घकालिक आर्कटिक (ध्रुवीय) अवलोकनों और अध्ययनों के क्षेत्र में सहयोग और गैस हाइड्रेट्स और अंडरवाटर ड्रिल के क्षेत्र में सहयोग जैसे क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग विकसित करने का प्रस्ताव रखा।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर प्रकाश डाला कि महासागर अन्वेषण में द्विपक्षीय सहयोग के लिए नीली अर्थव्यवस्था नये भारत की परिकल्पना का एक महत्वपूर्ण आयाम है। उन्होंने तटीय समुद्री स्थानिक योजना और पर्यटन, समुद्री मत्स्यपालन, जलीय कृषि और मछली प्रसंस्करण, तटीय और गहरे समुद्र में खनन और अपतटीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में संयुक्त सहयोग का प्रस्ताव है।

सुश्री स्टेफी लेम्के, जर्मन पर्यावरण मंत्री ने प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया दी और इन क्षेत्रों में जर्मनी की प्रगति की जानकारी दी और नए सहयोग को लेकर काम करने की सहमति जताई।

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