लीला में आज का मंचन:
रूख बदन करि बचन, मृदु बोले श्रीभगवान।
तुम्हरे सुमिरन तें मिटहिं,मोह मार मद मान॥
–पहले दिन की लीला में नारद जी ने विष्णु को दिया स्त्री वियोग में तड़पने का श्राप
गुरुग्राम। रंग-बिरंगी लाइटों, बेहतर साज-सज्जा और मंझे हुए कलाकारोंके डायलॉग ने पहले ही दिन की लीला में चार चांद लगा दिए। बेशक सामने दर्शक कम थे, लेकिन कलाकारों का आत्मविश्वास किसी भीतरह से कम नहीं था। सिर्फ मंच पर डायलॉग बोलना ही नहीं, बल्कि हाव-भाव भी साथ में महत्वपूर्ण होते हैं। यह सब इन कलाकारों में नजर आया।
जैकबपुरा स्थित श्रीदुर्गा रामलीला का भव्य शुभारंभ बुधवार से हो गया। हवन-पूजन का आयोजन भी किया गया। इस मौके परबाबा प्रकाशपुरी आश्रम से बाबा रविपुरी जी महाराज ने सभी कलाकारों व पदाधिकारियों को आशीर्वाद दिया। इस मौके पर राम लीला के चैयरमेन बनवारी लाल, प्रधान कपिल सलूजा, सचिव अशोक कुमार कोषाध्यक्ष प्रदीप गुप्ता संरक्षक के सी नारंग, यशपाल सैनी रमेश कालड़ा निदेशक अशोक सौदा व गोपाल जलिंदरा और तेजिंदर सैनी और सदश्य मनोज तंवर, मुकेश राज, आशु गुप्ता सतीश माचीवाल, ललित सैनी, संजय अन्य मौजूद रहे।
रामलीला की शुरुआत नारद जी के तप से शुरू हुई। नारायण-नारायण के उच्चारण के साथ नारद जी (सुनील चिटकारा) हिमालय पर्वत से गुजर रहे थे। वहां पर उन्होंने एक गुफा देखी। गुफा तो उन्हें अच्छी ही लगी, साथ में वहां नदी और वनों को देखकर भी वे हर्षित हुए और उन्होंने वहां तप करना शुरू कर दिया। नारद मुनि की इस तपस्या से देवराज इन्द्र भयभीत हो उठे कि कहीं देवषिज़् नारद अपने तप के बल से इन्द्रपुरी को अपने अधिकार में न ले लें। इन्द्र ने नारद की तपस्या भंग करने के लिये कामदेव को भेजा। वहां पहुंच कर कामदेव ने अपनी माया से रम्भा आदि नवयुवती अप्सराएं नृत्य व गान करने लगीं। कामदेव की किसी भी कला का नारद मुनि पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा।
तब कामदेव को भय सताने लगा कि कहीं देवषिज़् मुझे श्राप न दे दें। हारकर वे देवषिज़् के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगे। नारद मुनि को थोड़ा भी क्रोध नहीं आया और उन्होंने कामदेव को क्षमा कर दिया। कामदेव वापस अपने लोक में चले गये। कामदेव के चले जाने पर नारद मुनि के मन में अहंकार हो गया कि हमने कामदेव को जीत लिया। वहां से वे शिव जी के पास चले गये और उन्हें अपने द्वारा कामदेव को जीतने का विवरण कह सुनाया। उन्होंने नारद से कहा कि तुमने जो कथा मुझे बताई है उसे श्री हरि को मत बताना।
नारद जी को शिव जी की यह बात अच्छी नहीं लगी। इसके बाद नारद जी क्षीरसागर में पहुंच गये और शिव जी के मना करने के बाद विष्णु जी को भी सारी कथा उन्हें सुना दी। नारद जी जब श्री विष्णु से विदा होकर चले तो उनका अभिमान और भी बढ़ गया। श्री हरि ने अपनी माया से नारद जी के रास्ते में एक अत्यन्त सुन्दर नगर रच दिया। उस नगर में शीलनिधि अत्यन्त वैभवशाली राजा था। उस राजा की विश्वमोहिनी नाम की ऐसी रूपवती कन्या थी जिसके रूप को देख कर साक्षात लक्ष्मी भी मोहित हो जाए। विश्वमोहिनी स्वयंवर करना चाहती थी, इसलिये अनगिनत राजा उस नगर में आये हुए थे। नारद जी उस नगर के राजा के यहां पहुंचे तो राजा ने उनका पूजन कर के उन्हें आसन पर बैठाया। फिर उनसे अपनी कन्या की हस्तरेखा देख कर उसके गुण-दोष बताने के लिया कहा। उस कन्या के रूप को देख कर नारद मुनि वैराग्य भूल गये और उसे देखते ही रह गये। उस कन्या की हस्तरेखा बता रही थी कि उसके साथ जो ब्याह करेगा वह अमर हो जायेगा, उसे संसार में कोई भी जीत नहीं सकेगा और संसार के समस्त चर-अचर जीव उसकी सेवा करेंगे। इन लक्षणों को नारद मुनि ने अपने तक ही सीमित रखा और राजा को उन्होंने अपनी ओर से बना कर कुछ अन्य अच्छे लक्षणों को कह दिया। अब नारद जी ने सोचा कि कुछ ऐसा उपाय करना चाहिये कि यह कन्या उन्हें ही वरे। नारद जी ने श्री हरि को स्मरण किया और भगवान विष्णु उनके समक्ष प्रकट हो गये। नारद जी ने उन्हें सारा विवरण बताकर कहा, हे नाथ आप मुझे अपना सुन्दर रूप दे दीजिये। भगवान हरि ने कहा, हे नारद! हम वही करेंगे जिसमें तुम्हारा हित होगा। तुम्हारा हित करने के लिये हम तुम्हें हरि का रूप दे देते हैं। पर उन्हें यह नहीं बताया कि हरि शब्द का एक अर्थ बन्दर भी होता है। माया के वशीभूत हुए नारद जी को इस बात का ज्ञान नहीं हुआ।
वहां पर छिपे हुए शिव जी के दो गणों ने भी इस घटना को देख लिया। नारद तत्काल विश्व मोहिनी के स्वयंवर में पहुंच गये और साथ ही शिव जी के वे दोनों गण भी ब्राह्मण का वेश बना कर वहां पहुंच गये। वे दोनों गण नारद जी को सुना कर कहने लगे कि भगवान ने इन्हें इतना सुन्दर रूप दिया है कि राजकुमारी सिफज़् इन पर ही रीझेगी।
उनकी बातों से नारद जी अत्यन्त प्रसन्न हुए। स्वयं भगवान विष्णु भी उस स्वयंवर में एक राजा का रूप धारण कर आ गये। विश्वमोहिनी ने कुरूप नारद की तरफ देखा भी नहीं और राजारूपी विष्णु के गले में वरमाला डाल दी। मोह के कारण नारद जी की बुद्धि नष्ट हो गई थी। जब वे गुस्से से आग-बबूला थे तो उसी समय शिवजी के गणों ने वहां व्यंग्य करते हुए नारद जी से कहा कि जरा दर्पण में अपना मुंह तो देखिये।
नारद जी ने जल में अपना मुंह देता तो खुद की कुरुपता देखकर और क्रोधित हो गए। उन्होंने शिवजी के उन गणों को राक्षस हो जाने का श्राप दे दिया। श्राप देने के बाद जब नारद जी ने फिर से जल में देखा तो पता चला कि उनका असली रूप वापस आ चुका है। बेशक उन्हें अपना असली रूप मिल गया हो, लेकिन भगवान विष्णु पर उन्हें क्रोध आ रहा था। रास्ते में ही उनकी मुलाकात विष्णु जी से हुई, जिनके साथ लक्ष्मी जी और विश्वमोहिनी भी थीं।
नारद जी ने उनसे कहा कि तुमने मेरे साथ धोखा किया है। इसलिए मैं तुम्हें तीन श्राप देता हूं। पहला कि तुम मनुष्य के रूप में जन्म लोगो। दूसरा तुमने हमें स्त्री वियोग दिया, इसलिए तुम्हें भी स्त्री वियोग सहकर दुखी होना पड़ेगा और तीसरा श्राप यह कि जिस तरह हमें बंदर का रूप दिया है, इसलिए बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगें, यानी उनका सहारा लेना पड़ेगा।
इस भव्य रामलीला के मंचन को मीडिया प्रभारी राजकुमार सैनी ने जो दर्शक ग्राउंड में नहीं आ पाए, उनको फेसबुक के माध्यम से लाइव दिखाया, जिसका लोगो ने घर बैठे खूब लुफ्त उठाया और लाइक व कमेन्ट के माध्यम से खूब पसंद किया….