मुख्यमंत्री व मंत्रियों का निजी अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती होना जनता के मन में सवाल पैदा करने वाला : कुलदीप जांघू

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सरकारी अस्पतालों को आधुनिक सुविधाओं से लैस बताने का सरकारी दावा सवालों के घेरे में

सत्ता पक्ष ही नहीं विपक्ष के नेता भी निजी अस्पतालों में ही करवाते हैं इलाज

दूसरे प्रदेशों में एम्स जैसे अस्पताल होते हुए भी गुरुग्राम के निजी अस्पतालों की लेते हैं सेवा

गुडग़ांव, 26 अगस्त : चिकित्सा व्यवस्था को लेकर देश व प्रदेश में केंद्र व राज्य सरकारों के दावे स्वयं ही सवालों के घेरे में आने लगे हैं. कोरोना संक्रमण की आगोश में आये कई केन्द्रीय व राज्यस्तरीय राजनेताओं के निजी अस्पतालों में भर्ती होने की खबर ने अब लोगों के मन में पैदा हुए संदेह और गहराने लगे हैं. केन्द्रीय गृह मंत्री से लेकर हरियाणा के मुख्य मंत्री और परिवहन मंत्री तक सभी एक ख़ास निजी अस्पताल में ही भर्ती होकर स्वास्थ्य लाभ लेने पहुंचे. इसको लेकर हरियाणा के श्रमिक नेता कुलदीप जान्घू ने गंभीर सवाल खड़े किये हैं. उन्होंने पूछा है कि बड़े पदों पर बैठे व्यक्ति प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में अपना इलाज क्यों नहीं करवाते हैं ? क्या सरकारी अस्पताल में उनके इलाज की सुविधा नहीं है या वहां के डाकटर उनके रोग का इलाज करने में सक्षम नहीं है ? क्या केन्द्रीय मंत्रियों व प्रदेश के मुख्यमंत्री व मंत्रियों को खुद ही सरकारी अप्स्तालों पर भरोसा नहीं है ? इससे तो यही लगता है कि बड़े लोगों को सरकारी अस्पतालों की अव्यवस्था व सुविधाओं की कमी का पूरा एहसास है.

वरिष्ठ श्रमिक नेता कुलदीप जांघू का कहना है कि कोरोना महामारी को नियंत्रित करने के लिए प्रदेश सरकार ने मुकम्मल व्यवस्था करने का दावा किया है। सरकार ने जिले के सभी सरकारी अस्पतालों में कोरोना महामारी का उपचार भी शुरु किया है। पिछले पांच माह से सरकार दावे करती रही है कि कोरोना पीडि़तों के उपचार की सभी आधुनिक व्यवस्था सरकारी अस्पतालों में है. श्रमिक नेता ने सवाल उठाया है कि यदि सभी सरकारी अस्पतालों में कोरोना उपचार की अच्छी व्यवस्था है तो फिर केंद्र व राज्य सरकार के मंत्री व अन्य नेता निजी अस्पतालों में कोरोना उपचार के लिए क्यों भर्ती हो रहे हैं ? यह कैसी व्यवस्था का परिचायक है . इससे मुख्यमंत्री व मंत्री जनता में क्या सन्देश देना चाहते हैं ? क्या उनके इस कदम से लोगों के मन में सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रति संदेह पैदा नहीं होंगे ? उनका कहना है कि इससे सरकारी अस्पतालों की स्थिति की पोल स्वयं ही खुलने लगी है .

उनका कहना है कि इन पीडि़त मंत्रियों, विधायकों व लोकसभा सांसदों को उनके दावों के अनुसार सरकारी सिस्टम पर भरोसा कर जनता में यह सन्देश देना चाहिए था कि सरकारी अस्पताल लोगों की स्वास्थ्य की चिंता अकरने के लिए तत्पर ही नहीं दुरुस्त भी हैं. लेकिन इन नेताओं को खुद ही उन पर भरोसा नहीं नही है. जनता अब महसूस करने लगी है कि जब जनप्रतिनिधि ही अपना उपचार सरकारी अस्पतालों में कराने को तैयार नहीं हैं तो आम जनता व श्रमिक को किस आधार पर सरकारी अस्पतालों के भरोसे छोड़ा गया है जहां न विशेषग्य डाक्टर हैं और न ही आधुनिक मेडिकल उपकरण.

श्रमिक नेता का कहना है कि गत सोमवार की मध्य रात्रि को प्रदेश के मुख्यमंत्री भी गुडग़ांव स्थित मेदांता अस्पताल मे कोरोना के उपचार के लिए भर्ती हुए हैं। उनके साथ केबिनेट मंत्री मूलचंद शर्मा, विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता व अन्य विधायक भी उपचार हेतू इसी अस्पताल में आए हैं। इससे पूर्व केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री भी यहाँ भर्ती हुए जबकि दिल्ली में कई बड़े राष्ट्रीय स्तर के अस्पताल हैं.

उन्होंने ध्यान दिलाया कि चंडीगढ़ स्थित पीजीआई में भी इन माननीयों का उपचार हो सकता था। चंडीगढ़ के पास ही पंचकूला में सरकारी अस्पताल हैं । रोहतक में भी पीजीआई है, लेकिन इस सबके बावजूद भी माननीयों का रुझान गुडग़ांव की तरफ ही अधिक है। उनका यह भी कहना है कि अस्पतालों में दाखिल सभी माननीय स्वस्थ होकर जनता के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करें लेकिन जनता और स्वयं के स्वास्थ्य के लिए दोहरे मानदंड क्यों अपनाए जा रहे हैं. इन माननीयों को सरकारी अस्पताल में अपना उपचार कराना चाहिए, ताकि जनता में भी सरकारी व्यवस्था के प्रति विश्वास पैदा हो सके. राजनेताओं का यह चलन जनता के मन में कई प्रकार के सवालों को जन्म दे रहे हैं. इससे उन्हें बचना चाहिए और अनुकरणीय उदहारण प्रस्तुत करना चाहिए.

उल्लेखनीय है कि यह स्थिति केवल सत्ता में बैठे नेताओं की ही नहीं है बल्कि विपक्ष के नेताओं की भी है. पिछले एक वर्ष के दौरान मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश , दिल्ली जैसे राज्यों के भी बड़े नेता गुरुग्राम स्थित मेदांता में ही इलाज करवा चुके हैं.

उन्होंने तर्क दिया कि अगर किसी अस्पताल में कोई कमी है भी तो बड़े नेताओं के भर्ती होने से वहां की व्यवस्था में सुधार होने की संभावना बनेगी. वहां की कमियों का वे स्वयं ही आकलन कर पायेंगे जो जनहित में अच्छा रहेगा.

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