गुरुग्राम 10 फरवरी । अंगदान संबंधी विषय को लेकर आमजन में जागरूकता लाने के उद्देश्य से आज मेदांता -द- मेडिसिटी में सेमिनार का आयोजन किया गया । इस सेमिनार में निजी अस्पतालों, स्वयंसेवी संस्थाओं , राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (नोटो), स्वास्थ्य विभाग के पदाधिकारियों के अलावा इस क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों व हितधारकों ने भाग लिया।
इस मौके पर राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन(नोटो) के पूर्व सलाहकार डॉ सुरेश बधान ने ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन एक्ट -1994 के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जिस व्यक्ति का ब्रेन दिमागी चोट, ब्रेन हेमरेज या अन्य किसी कारणवश डेड हो जाता है , ऐसी स्थिति में उसके शरीर के अन्य अंगों को जरूरतमंद व्यक्ति को देकर उसे जीवनदान दिया जा सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि ब्रेन डेड वाले व्यक्ति के शरीर से 6 लोगों को जीवनदान दिया जा सकता है। उन्होंने बताया कि किडनी, लीवर, हृदय , आंखे, शरीर के टिशूज , ब्लड सैल्स को ट्रांसप्लांट किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि अंगदान संबंधी जानकारी के लिए अस्पतालों में कोर्डिनेर टीम लगाई गई है जो लोगों को इस बारे में जागरूक करती है। अंगदान के लिए फॉर्म नंबर- 8 परिजनों द्वारा भरा जाता है। लीविंग डोनर के बारे में बताते हुए उन्होंने बताया कि जीवित व्यक्ति के शरीर से कुछ अंग जैसे किडनी, बोन मैरो (अस्थि मज्जा), लीवर और फेफड़े का कुछ हिस्सा भी वह अपने जरूरतमंद परिजनों को डोनेट कर सकता है। उन्होंने बताया कि विश्व में हिंदुस्तान ट्रांसप्लांट के मामले में दूसरे नंबर पर आता है लेकिन मृतक के अंगदान की सूची में काफी पीछे है। एक अध्ययन के अनुसार पिछले वर्ष पूरे देश में सिर्फ 900 मृतकों के परिजनों द्वारा अंगदान किए गए हैं ।
उन्होंने बताया कि हर साल 2 लाख लोगों को किडनी ट्रांसप्लांट की आवश्यकता पड़ती है जिनमें से केवल 12 हजार लोगो को ही समय पर किडनी मिल पाती है। इसी प्रकार, 50 हजार से अधिक लोगों को लीवर की जरूरत होती है जिनमें से केवल 4 हजार लोगों को ही यह समय पर मिल पाती है। उन्होंने बताया कि बहुत से लोगो की अंग न मिलने के कारण मृत्यु हो जाती है इसलिए अंगदान के प्रति लोगों में जागरूकता लाई जानी अत्यंत आवश्यक है।
इस मौके पर फोर्टिस अस्पताल के डॉ. अवनीश सेठ ने बताया कि वर्तमान में सबसे तेजी से बढ़ रही बीमारियों में से हैं ऑर्गन फैलियर, जिसका अभिप्राय है जरूरी अंगों का खराब हो जाना व उनका काम न करना। ऑर्गन फैलियर के बहुत सारे मामलों में दवा की बजाय अंग प्रत्यारोपण ही विकल्प बचता है। अंग प्रत्यारोपण से बहुत सारी जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। अगर हम अपनी सोच में बदलाव लाएं तो अंगदान से बहुत सारे लोगों का जीवन बचाया जा सकता है।
आर्टिमिस अस्पताल से डॉ रेशमा तिवारी ने बताया कि ब्रेन डेड व्यक्ति की पहचान विभिन्न तरीको से की जाती है जैसे डॉल्स आई टेस्ट, कोल्ड वाटर टेस्ट, कॉर्निया टेस्ट व कई अन्य टैस्ट भी किए जाते है जिसके बाद यह फैसला लिया जाता है कि मरीज का ब्रेन पूरी तरह से डेड हो चुका है । अंगदान के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए अस्पतालों की अहम भूमिका है। उन्होंने सेमिनार में लोगों को जागरूक करने संबंधी विस्तार से रूपरेखा रखी। इस अवसर पर लोगों ने आर्गन डोनेशन को लेकर अपने संशयों को भी विशेषज्ञों से दूर किया।
इस मौके पर मेदांता द मेडिसिटी , फोर्टिस, आर्टेमिस अस्पतालों की एक्सपर्ट्स टीम सहित डॉ सुरेश बधान, डॉ अवनीश सेठ , मोहन फाउंडेशन से डॉ मुनीत साही , डॉ रेशमा तिवारी, डॉ हर्ष सपरा , डॉ विजय वोहरा , डॉ विजय खेर , डॉ अरविंद सिंह सोहनी सहित कई अन्य भी उपस्थित र