नयी दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हालिया सूर्य ग्रहण का उल्लेख करते हुए रविवार को कहा कि भारत में खगोल-विज्ञान का बहुत ही प्राचीन और गौरवशाली इतिहास रहा है और तारों के साथ हमारा संबंध, उतना ही पुराना है जितनी पुरानी हमारी सभ्यता है ।
आकाशवाणी पर प्रसारित ‘‘मन की बात’’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘ अभी 26 दिसंबर को सूर्य-ग्रहण था। इसे लेकर मेरे मन में भी तमाम देशवासियों, विशेष तौर पर मेरे युवा-साथियों की तरह ही उत्साह था। मैं भी, सूर्य-ग्रहण देखना चाहता था। लेकिन उस दिन दिल्ली में बादल छाए रहने के कारण मैं वह आनन्द नहीं ले पाया। हालाँकि, टी.वी पर कोझीकोड और भारत के दूसरे हिस्सों में दिख रहे सूर्य-ग्रहण की सुन्दर तस्वीरें देखने को मिलीं। ’’
गौरतलब है कि सूर्य ग्रहण के दिन प्रधानमंत्री ने भी इस नजारे को देखने के अपने उत्साह को ट्विटर पर साझा किया और बताया था कि लाइव स्ट्रीम के जरिए कोझिकोड और अन्य हिस्सों में सूर्य ग्रहण की झलक उन्होंने देखी।
मोदी ने ‘मन की बात’ में कहा कि सूर्य चमकते हुए छल्ले के आकार का नज़र आ रहा था। उन्होंने कहा कि उस दिन उन्हें कुछ विशेषज्ञों से संवाद करने का अवसर भी मिला जिन्होंने बताया कि ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि चंद्रमा, पृथ्वी से काफी दूर होने की वजह से पूरी तरह से सूर्य को ढक नहीं पाता।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस तरह से, एक रिंग का आकार बन जाता है और इसे सूर्य ग्रहण, एक वलय-ग्रहण या कुंडल-ग्रहण भी कहते हैं। उन्होंने कहा कि ग्रहण हमें याद दिलाते हैं कि हम पृथ्वी पर रहकर अंतरिक्ष में घूम रहे हैं जहां सूर्य, चंद्रमा एवं अन्य ग्रहों जैसे और खगोलीय पिंड घूमते रहते हैं ।
उन्होंने कहा, ‘‘ चंद्रमा की छाया से ही हमें, ग्रहण के अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं । भारत में खगोल-विज्ञान का बहुत ही प्राचीन और गौरवशाली इतिहास रहा है । आकाश में टिमटिमाते तारों के साथ हमारा संबंध, उतना ही पुराना है जितनी पुरानी हमारी सभ्यता है ।’’
मोदी ने इस संबंध में जंतर-मंतर वेधशाला का जिक्र किया और कहा कि इसका खगोल शास्त्र से गहरा संबंध है ।
उन्होंने कहा कि महान वैज्ञानिक आर्यभट ने काल-क्रिया में सूर्य-ग्रहण के साथ-साथ, चन्द्र-ग्रहण की दार्शनिक और गणितीय दोनों ही दृष्टिकोण से विस्तृत व्याख्या की है ।
मोदी ने कहा ‘‘भास्कर जैसे उनके शिष्यों ने इस भाव को और ज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए भरसक प्रयास किये। बाद में, चौदहवीं–पंद्रहवीं सदी में, केरल में, संगम ग्राम के माधव ने ब्रहमाण्ड में मौजूद ग्रहों की स्थिति की गणना करने के लिए कैलकुलस का उपयोग किया।’’
उन्होंने कहा कि कुछ वर्ष पहले उन्होंने ‘प्री मॉडर्न कच्छी – नेविगेशन टेक्नीक एंड वायेज’’ पुस्तक का विमोचन किया था । उन्होंने कहा कि यह पुस्तक एक नाविक मालम की डायरी है जिसमें, प्राचीन नौवहन का, तारों का, तारों की गति का वर्णन किया है ।