मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से मिली आजादी, राज्यसभा में ऐतिहासिक बिल पास
नई दिल्ली । मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की कुप्रथा से मुक्ति दिलाने के लिए लाये गये मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019 को आज राज्यसभा की मंजूरी मिल गयी और इस तरह नरेंद्र मोदी सरकार का एक बड़ा चुनावी वादा पूरा हुआ। राज्यसभा में बिल के पक्ष में 99 मत मिले जबकि विरोध में 84 मत पड़े। मुस्लिम महिलाएं इसके लिए लंबे समय से संघर्ष कर रही थीं और मोदी सरकार ने उनका साथ देते हुए तीन तलाक विधेयक को पारित कराने के लिए पूर्व के कार्यकाल में भी प्रयास किये थे लेकिन प्रयास राज्यसभा में अटक जाते थे इस कारण बार-बार अध्यादेश से काम चलाना पड़ रहा था। राज्यसभा में तीन तलाक बिल को पास कराना सरकार के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा था लेकिन सरकार के फ्लोर मैनेजमेंट की दाद देनी होगी कि वह इस महत्वपूर्ण विधेयक को पारित कराने में सफल रही। लोकसभा इसे गत सप्ताह ही पारित कर चुकी है और अब राज्यसभा की भी मंजूरी मिल जाने के बाद इसके कानून बनने की राह साफ हो गयी है। इससे पहले सुबह विधयेक को चर्चा और पारित करने के लिए राज्यसभा में पेश करते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि तीन तलाक संबंधी विधेयक मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के मकसद से लाया गया है और उसे किसी राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा एक फैसले में इस प्रथा पर रोक लगाने के बावजूद तीन तलाक की प्रथा जारी है।
उधर, इस विधेयक पर हुयी चर्चा में भाग लेते हुए विभिन्न दलों के सदस्यों ने इसे अपराध की श्रेणी में डालने के प्रावधान पर आपत्ति जतायी और कहा कि इससे पूरा परिवार प्रभावित होगा। अन्नाद्रमुक, वाईएसआर कांग्रेस ने भी तीन तलाक संबंधी विधेयक का कड़ा विरोध करते हुए इसे प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग की। विपक्षी दलों के सदस्यों ने इसका मकसद ‘‘मुस्लिम परिवारों को तोड़ना’’ बताया। विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने सवाल उठाया कि जब तलाक देने वाले पति को तीन साल के लिए जेल भेज दिया जाएगा तो वह पत्नी एवं बच्चे का गुजारा भत्ता कैसे देगा? उन्होंने कहा, ‘‘यह घर के चिराग से घर को जलाने की कोशिश’’ की तरह है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक का मकसद ‘‘मुस्लिम परिवारों को तोड़ना’’ है। उन्होंने कहा कि इस्लाम में शादी एक दिवानी समझौता है। उन्होंने सरकार से सवाल किया कि आप इसे संज्ञेय अपराध क्यों बना रहे हैं? उन्होंने इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने की मांग की। राकांपा के माजिद मेनन ने कहा कि जब उच्चतम न्यायालय ने इस बारे में कोई निर्णय दे दिया है तो वह अपने आप में एक कानून बन गया है। ऐसे में अलग कानून लाने का क्या औचित्य है?
वाईएसआर कांग्रेस के विजयसाई रेड्डी ने भी विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि जब तीन तलाक को निरस्त मान लिया गया है तो फिर आप तीन साल की जेल की सजा का प्रावधान कैसे कर सकते हैं? उन्होंने कहा कि इस सजा के प्रावधान से दोनों पक्षों के बीच समझौते की संभावना समाप्त हो जाएगी। विधेयक पर हुयी चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस सदस्य अमी याज्ञनिक ने कहा कि महिलाओं को धर्म के आधार पर नहीं बांटा जाना चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि सभी महिलाओं के प्रति क्यों नहीं चिंता की जा रही है? उन्होंने कहा कि समाज के सिर्फ एक ही तबके की महिलाओं को समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। उन्होंने कहा कि यह समस्या सिर्फ एक कौम में ही नहीं है। उन्होंने कहा कि वह विधेयक का समर्थन करती हैं लेकिन इसे अपराध की श्रेणी में डालना उचित नहीं है। चर्चा में भाग लेते हुए जद यू के बशिष्ठ नारायण सिंह ने विधेयक का विरोध किया। उन्होंने कहा कि वह न तो विधेयक के समर्थन में बोलेंगे और न ही इसमें साथ देंगे। उन्होंने कहा कि हर पार्टी की अपनी विचारधारा होती है और उसे पूरी आजादी है कि वह उस पर आगे बढ़े। जद (यू) के सदस्यों ने विधेयक का विरोध करते हुए सदन से बहिर्गमन किया। इससे पूर्व माकपा सदस्य केके रागेश ने 21 फरवरी 2019 को जारी मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अध्यादेश के खिलाफ अपना प्रस्ताव पेश किया।
चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि 33 साल पहले कांग्रेस सरकार को शाहबानो मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद एक मौका मिला था। दोनों सदनों में उसके पास खासी संख्या थी लेकिन वह न्यायालय के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिए विधेयक लेकर आयी थी। उन्होंने कहा कि यह सरकार सभी की चिंता करती है, इसलिए यह विधेयक लेकर आयी है। उन्होंने सरकार द्वारा पिछले पांच साल में शुरू की गयी विभिन्न योजनाओं का जिक्र किया और कहा कि यह सरकार समाज के सभी तबकों की चिंता करती है। उन्होंने कहा कि यह सरकार समावेशी सोच के साथ काम करती है। तृणमूल कांग्रेस की डोला सेन ने कहा कि उनकी पार्टी तीन तलाक के बारे में लाये गये अध्यादेश का इसलिए विरोध कर रही है क्योंकि यह अध्यादेश बिना संसदीय समीक्षा के लाया गया है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में न तो राष्ट्रपति शासन लगा है और न ही तानाशाही है, इसलिए संसद की समीक्षा के बिना कोई भी कानून लाना संविधान की भावना के विरूद्ध है। उन्होंने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ भाजपा महिला सशक्तिकरण के बारे में केवल बात ही करती है। उन्होंने कहा कि यदि सरकार इसके लिए वाकई गंभीर है तो उसे महिला आरक्षण संबंधित विधेयक संसद में लाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके लिए यदि वर्तमान सत्र का एक और दिन बढ़ाना पड़े तो हमारी पार्टी उसके लिए भी तैयार है।
समाजवादी पार्टी के जावेद अली खान ने इस विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि कहा कि कई पत्नियों को उनके पति छोड़ देते हैं। उन्होंने सरकार से जानना चाहा कि क्या वह ऐसे पतियों को दंड देने और ऐसी परित्यक्त महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के लिए कोई कानून लाएगी? अन्नाद्रमुक के ए. नवनीत कृष्णन ने विधेयक का विरोध करते हुए इसे प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि ऐसा कानून बनाने की संसद के पास विधायी सक्षमता नहीं है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के कुछ प्रावधानों को पूर्व प्रभाव से लागू किया गया है जो संविधान की दृष्टि से उचित नहीं है। बीजू जनता दल के प्रसन्न आचार्य ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि उनकी पार्टी महिला सशक्तिकरण के पक्ष में हमेशा से रही है। उन्होंने कहा कि बीजद ने लोकसभा चुनाव में जिन प्रत्याशियों को टिकट दिये थे उनमें एक तिहाई महिलाएं थीं और पार्टी की सात प्रत्याशियों ने चुनाव जीते।