हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार के वकील से कई अहम सवाल किए
नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके तीन केबिनेट सहयोगियों के पिछले आठ दिन से चल रहा धरना अब अदालत के सवालों के घेरे में आ गया है। दिल्ली के एलजी हाउस पर जारी इस धरने पर दिल्ली हाइकोर्ट ने कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। हाईकोर्ट ने पूछा है कि यह धरना है या हड़ताल। कोर्ट ने यह भी सवाल किया है कि दिल्ली के सीएम और केबिनेट के साथियों को इस हड़ताल की इजाजत किसने दी ? कोर्ट ने सवाल किया एलजी हाउस में बैठना किस प्रकार मान्य है।अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि इस संकट का समाधान जरूरी है। दूसरी तरफ चर्चा है कि केजरीवाल में इस नई परिस्थिति में विचार के लिए अपने निवास पर सहयोगियों की अहम बैठक करने का निर्णय लिया है। जाहिर है इससे उनकी अब तक कि रणनीति असफल होती दिख रही है।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि आखिर इसकी इजाजत किसने दी। अदालत ने मुख्यमंत्री की हड़ताल पर सवाल उठाए हुए दिल्ली सरकार की तरफ से पेश वकील से पूछा कि हम समझ नहीं पा रहे हैं कि ये क्या है धरना या हड़ताल ?
आगे अदालत ने पूछा कि इस धरने या हड़ताल के लिए किसने अनुमति दी। क्या दिल्ली के सीएम ने खुद ही धरना पर बैठने का फैसला लिया। यह फैसला उनका व्यक्तिगत था या दिल्ली सरकार की कैबिनेट द्वारा सामूहिक फैसला लिया गया। अदालत ने यह भी सवाल किया कि क्या एल।जी हाउस में उनका इस प्रकार बैठना सही है। क्या उन्हें यह पता है कि वो किसी के ऑफिस में बैठे हैं
अदालत सुनवाई मके दौरान सवाल किया क्या दिल्ली के सीएम और मंत्री हड़ताल के लिए एल जी निवास के बाहर बैठे हैं ? बेहद सख्त लहजे में अदालत ने कहा कि जैसे ट्रेड यूनियन अपनी मांगों को लेकर बाहर हड़ताल करती हैं क्या ये यह उस प्रकार की हड़ताल है साथ ही क्या उन्होंने एलजी हाउस में बैठने के लिए एलजी की अनुमति ली है।
जाहिर है इन तीखे सवालों का दिल्ली सरकार के पास कोई स्पष्ट जवाब नहीं था। अदालत के सख्त तेवर से केजरीवाल सरकार की नींद उड़ गई है। उनकी मनमानी को लेकर उठाये गए सवालों ने उन्हें अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने को मजबूर कर दिया है। चर्चा है कि सीएम अरविंद केजरीवाल ने इस स्थिति पर विचार के लिए अपने निवास पर अहम बैठक बुलाई है। संकेत है कि अदालत के इस रुख से परेशान आप नेताओं के पास जवाब नहीं है क्योंकि इस प्रकार के हथकंडे सीएम और मंत्रियों को अपनाने की परंपरा इस देश में नहीं है। हालांकि उनके धरना को लेकर दिल्ली और देश में मतविभाजन है लेकिन लोकतांत्रिक परंपराओं में विश्वास रखने वाले लोगों को लगता है कि सीएम और मंत्रियों को तो इस प्रकार का रवैया नहीं अपनाना चाहिए। अगर एलजी के खिलाफ कुछ करना था तो राजनीतिक रूप से आम आदमी पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं को धरना व प्रदर्शन करने की आजादी थी। सरकार ही जब हड़ताल पर बैठ जाएगी तो फिर व्यवस्था का क्या होगा?
लोग यह सवाल कर रहे हैं कि अभी नीति आयोग की बाइक हुई जिसमें देश के सभी राज्यो के सीएम मौजूद थे उसमें केंद्र सरकार के समक्ष अपनी बात मजबूती से रखने का मौका था। लेकिन उन्होंने पीएम से सीधे बात करने के रास्ते को दरकिनार करते हुए धरना जारी रखा जो आम लोगों को भी अटपटा लग रहा है।