अमोघ अस्त्र – नवधा भक्ति
शंकर शर्मा
वर्तमान अर्थ युग में हम सभी भौतिक सुखों के प्रति आकर्षित होते हैं और उसे पाने की चेष्टा करते हैं। इसके लिए हमारी हर कोशिश होती है। नतीजतन, भाग दौड़ वाले जीवन में स्वयं के उत्थान के लिए समय निकालना बेहद कठिन हो जाता है। विविध कार्यों की आपाधापी में हम अपने आध्यात्मिक उत्थान के प्रति बेरूख हो जाते हैं। इसके कारण हमारी शारीरिक एवं मानसिक अवस्था में बेडौल परिवर्तन देखने को मिलता है। इससे मानसिक तनाव और डिप्रेशन जैसी असामयिक बीमारियों का शिकार होने लगते हैं। अधिकतर लोग मानसिक सुकून की खोज में न जाने किन किन उपायों को करने लगते हैं। कभी कभी अव्यावहारिक व हानिकारक उपाय भी करने लगते हैं। लेकिन सनातन धर्म के महान ऋषि मुनियों ने अपने अनुभव से यह बताया है कि अगर किसी व्यक्ति के पास दौलत और सुख-सुविधा हो, सामाजिक प्रतिष्ठा हो, गुणवान एवं बुद्धिमान भी हो लेकिन अगर ईश्वर या गुरु की भक्ति उनके हृदय में नहीं है तो जीवन सुखमय नहीं हो सकता। मानसिक शांति उन्हें नहीं मिल सकती और न ही पारिवारिक जीवन संतुलित रहता है।
इसलिए रामायण में कहा गया है कि हर मनुष्य को भगवान की नवधा भक्ति करनी चाहिए। संत तुलसीदास ने भगवान राम एवं माता शबरी के बीच हुए संवाद के माध्यम से भक्ति के नौ तरीकों का उल्लेख किया है। भगवान राम के श्रीमुख से कहे गए जीवन को सुखमय बनाने के भक्ति ये नौ तरीके हमारे सोए भाग्य जगा सकते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हमें श्रद्धा और विश्वास के साथ इसे अपने जीवन में उतारना चाहिए। वास्तव में ये नौ ऐसे सूत्र हैं कि जिन पर अमल करने से हमारा संसार और अध्यात्म दोनों सफल हो सकता है।
In the Ramayana, Lord Rama explains the nine types of devotion or penance to Shabri :
नवधा भगति कहउं तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं।
The nine steps of devotion, I impart to you. Listen you well and remember it always
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प्रथम भगति संतन्ह कर संगा ।
The first step to devotion (Bhakti) is to keep company of the saints (Satsang)
प्रथम : संतों का सानिध्य (सत्संग) प्राप्त करना। अपने हृदय में मनुष्य को भक्ति जागृत करने के लिए संतों का संग करना चाहिए। संत यानी सज्जन या सदगुणी व्यक्ति की संगति। सदविचार एवं सद चरित्र वाले लोगों का साथ अधिक से अधिक मिले। इससे कुविचारों के वेग से बचा जा सकेगा। हमारी बोली व व्यवहार एवं आचरण में निर्मलता आएगी जो हमारे लिए बेहद जरूरी है। इससे संसार एवं अध्यात्म दोनों के रास्ते खुलेंगे।
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दुसरि रति मम कथा प्रसंगा।।
The second step is to enjoy listening to legends/discourses pertaining to the Lord.
द्वीतिय : भगवान की कथा व प्रसंग के प्रति लगाव पैदा करना। अपनी दिनचर्या में एक वक्त ऐसा भी शामिल करें जब आप अपने गुरु या फिर ईश्वर की कथा सुनें या फिर उनसे संबंधित आध्यात्मिक साहित्य या धर्म ग्रंथ का अध्ययन करें। इससे मानसिक शांति तो मिलेगी ही साथ ही ईश्वर के प्रति श्रद्धा एवं विश्वास प्रगाढ़ होगा। अपनी सांसारिक परेशानियों का हल भी आप इसमें आसानी से ढूंढ पाएंगे क्योंकि आपकी निर्भरता ईश्वर पर बढ़ेगी। और अगर सर्वशक्तिमान का सहारा हमें मिल जाए तो फिर जीवन के हर प्रकार के ताप को सहने की हममें शक्ति भी पैदा हो जाती है।
3. गुरु पद पंकज सेवा तीसरी भगति अमान ।
Selfless service to the Guru’s lotus feet without any pride is the third step
तृतीय : तीसरा उपाय अपने सदगुरु की सेवा करना बताया गया है। कहा जाता है कि गुरु ईश्वर एवं संसार के बीच की ऐसा पुल है जिनके माध्यम से हम ईश्वर तक आसानी से पहुंच सकते हैं। हां ध्यान रखने योग्य बात यह है कि गुरु वास्तव में पूर्ण गुरु हों अन्यथा ढोंगी के सहारे दीन और दुनिया दोनों का नुकसान होता है। अतएव हमें ऐसे समर्थ गुरु की खोज करनी चाहिए और उनके आश्रय हो जाना चाहिए उनके उपदेशों पर अमल करना ही उनकी सबसे बड़ी सेवा है जबकि उनके मिशन की सेवा करना भी हमारा धर्म होना चाहिए। गुरु की शक्ति अपार व असीम है। उनकी दया का पात्र बनने से हमार कल्याण निश्चित है। हम संसार सागर को बड़ी आसानी से पार कर पाते हैं। विविध विषमताओं को झेलने में भी सक्षम हो जाते हैं।
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चौथि भगति मम गुन गन करई कपट तजि गान।।
The fourth step is to earnestly sing praises of the Lord’s virtues with a heart clear of guile, deceipt or hypocrisy
चतुर्थ : कपट व छल का त्याग। ईश्वर का गुणगाण कपट एवं छल रहित होकर करना चाहिए। सर्वसमर्थ भगवान जो सर्वज्ञ हैं एवं सर्वत्र विराजमान हैं उनके समक्ष विचारों की कृपणता व क्षुद्रता के साथ जाने से हमें अपेक्षित फल नहीं मिल पाता है। उनकी भक्ति आर्त एवं दीन बन कर करनी चाहिए। ईश्वर निश्छल और निर्विकार हैं। उनका कृपा पात्र हम तभी बन सकते हैं जब हम कपट रहित हों। इससे हमें स्वत: ही मानसिक शांति मिलती है।
5.मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा ।।
Chanting My Name with steadfast faith is the fifth step as the Vedas reveal.
पंचम : मंत्र जाप। वेदों में वर्णित मंत्र का जाप अगर ईश्वर में दृढ़ विश्वास के साथ किया जाए तो यह अमोघ एवं शीघ्र फल देने वाला होता है। विविध प्रकार के कष्टों के लिए अलग-अलग मंत्रों का जाप सुझाया गया है। शर्त यह है कि हमें मंत्र एवं भगवान के उस विग्रह स्वरूप में अटूट विश्वास हो। स्नानादि के बाद विना अन्न जल ग्रहण किए श्रद्धा के साथ नियमित जाप करने से हमें दुखों के पहाड़ से छुटकारा मिलता है। विद्या एवं बुद्धि में वृद्धि होती है जबकि हमारा पौरूष भी अश्चर्यजनक रूप से विकसित होता है। संसारिक सफलता का यह बड़ा राज है।
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छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा।।
The sixth, is to practice self-control, good character, detachment from manifold activities and always follow the duties as good religious person
छठा : इन्द्रियों का निग्रह। चरित्र, स्वभाव और कर्म को साफ रखना। हम गृहस्थ जीवन व्यतीत कर रहे लोगों को आत्म नियंत्रण की सदा कोशिश करनी चाहिए। सद चरित्र से भरे आचरण पर अमल करना जरूरी है और यह काम ईश्वर की कथा सुनने से आसान होता है। क्योंकि देवताओं के चरित्र और आदर्शों का स्मरण कर जीवन में उतारने का संकल्प हम ले सकते हैं। भक्ति के इस छठे स्वरूप को अपनाने का यथासंभव प्रयास करते रहना चाहिए। इससे जीवन सुंदर एवं सुखमय बनेगा।
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सातवॅं सम मोहि मय जग देखा। मोते संत अधिक करि लेखा।
The seventh step is to perceive the world as God Himself and regard the saints higher than the Lord
सातवीं : ईश्वर मय संसार एवं ईश्वर से बढ़ कर संत का आदर करना। भगवान राम कहते हैं संसार के सभी प्राणियों को ईश्वर का स्वरूप समझना चाहिए। क्योंकि सभी कुछ परमात्मा का ही बनया हुआ है तथा उन्हीं का अंश है। इसलिए व्यवहार में विभेद नहीं होना चाहिए। भगवान ने संत की महत्ता को अपने से बढ़ कर बताया है। इसलिए हमें संत का आदर ईश्वर से बढ़ कर करना चाहिए। यानि पूर्ण संत ईश्वर के ही स्वरूप होते हैं। उनमें वही शक्ति विद्यमान रहती है। संत की सेवा व पूजा भक्ति से हमार कल्याण निश्चित है।
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आठवॅं जथालाभ संतोषा । सपनेहुं नहिं देखइ परदोषा।
The eighth, is a state (which one arrives at when one travels the first seven steps) where there is no desire left, but the gift of perfect peace and contentment with whatever one has. (In this state) one does not see fault in others, even in a dream.
आठवां : ईशवर ने जो दिया है उसमें संतुष्ट रहना एवं परदोष देखने की आदत से दूर रहना। भक्ति के आठवें प्रकार में कहा गया है कि व्यक्ति को अधिकाधिक सुख या धन वैभव आदि प्राप्त करने का लोभ नहीं होना चाहिए। इससे मनुष्य अनैतिक रास्ते पर चलने को प्रेरित होता है। इसलिए भगवान की कृपा से जितना मिले उसी में संतोष करना चाहिए। इसके अलावा इस बात के लिए अगाह किया गया है कि सपने में भी दूसरे का दोष ढूंढना चाहिए। यह बुरी आदत है। इसका बुरा असर हम पर पड़ता है। धीरे धीरे हमारी आदत में घर करने से हमें दूसरों की बुराई आने लगती है। यह स्थिति ठीक नहीं है। हमें इससे बचना चाहिए।
9.नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हिय हरष न दीना।।
In this state, one has full faith in the Lord, and becomes (child-like) simple with no hypocrisy or deceit. The devotee has strong faith in the Lord with neither exaltation or depression in any life circumstance (but becomes equanimous
नवम : सम व विषम परिस्थिति में एक समान रहना व दोष दर्शन से बचना। भगवान कहते हैं कि मनुष्य को दुख हो या सुख हमेशा एक समान रहना चाहिए। और प्रत्येेक परिस्थिति में ईश्वर के आश्रय में रहना चाहिए। भगवान में पूर्ण विश्वास रखने से हर्ष व विषाद उस मनुष्य को नहीं छू सकता है। जीवन क्लेश मुक्त रहता है और मन प्रसन्नचित्त रहता है। भगवान की कृपा उन पर सदा बनी रहती है। सर्वशक्तिमान का साथ ऐसे व्यक्ति को सदा मिलता है। इससे व्यक्ति सफलता की सीढिय़ां विना प्रयास के चढ़ता जाता है।
अंत में कहा गया है :
नव महुं एकउ जिन्ह कें होई। नारि पुरूष सचराचर कोई।।
सोई अतिसय प्रिय भामिनी मोरें। सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें।।
भगवान आने श्रीमुख से कहते हैं हे शबरी अगर इन नौ में से भक्ति के किसी एक रास्ते को भी कोई प्राणी मन, वचन एवं कर्म से अपनाता है तो वह हमें अति प्रिय होगा। उन पर ईश्वरीय कृपा सदा बरसती रहेगी।
Shri Ram adds that Shabri’s Bhakti is perfectly complete. Yet if anyone were to have taken even one step towards devotion, out of all nine, he/she would be very dear to the almighty Lord.