आखिर, मनोहर लाल की कुर्सी कैसे बची ?

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सीएम ने कैसे फंसाया बाबा राम रहीम को अपने जाल में ? 

सुभाष चौधरी /प्रधान संपादक /9212490840

आखिर, मनोहर लाल की कुर्सी कैसे बची ? 2नई दिल्ली : हरियाणा के पंचकुला व सिरसा में शुक्रवार को बड़े पैमाने पर हुई हिंसा तोड़फोड़ व आगजनी के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की कुर्सी खतरे में पड़ने की ख़बरें शुक्रवार देर शाम से ही तेज गति से तैरने लगी थी लेकिन शनिवार सुबह होते होते खबर ने पलटा मारा और उनकी कुर्सी सलामत रहने की चर्चा जोर पकड़ गयी. अब खबर यह है कि भाजपा हाईकमान ने उन्हें पूरी तरह क्लीन चिट दे दी है और साध्वी रेप मामले का फैसला आने से पूर्व व बाद की स्थितियों को डील करने में उनके प्रत्येक कदम को सही ठहरा दिया. जाहिर है संघ मुख्यालय , भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह और पीएम नरेन्द्र मोदी को अब भी खट्टर पर भरोसा है. कहा जाता है कि पंचकुला में मचे कोहराम की आशंका खट्टर के रणनीतिकारों को पहले सी ही थी . इसलिए उन्होंने सीएम के साथ मिला कर उन्हें बचाने का प्लाट पहले ही तैयार कर लिया था. विश्लेषक मानते हैं कि इस कहानी के प्लाट में साम दाम दंड और भेद चारों ही शामिल थे जिसका भरपूर फायदा मनोहर लाल को मिला. उनके रणनीतिकारों की योजना ने प्रदेश में   कोहराम मचने के बावजूद उनकी गद्दी बचा दी.

 

कहना न होगा कि अब तक तीन बड़ी समस्याएं झेल चुकी खट्टर सरकार रामपाल मामले में बरती गयी गलती नहीं दोहराना चाहती थी. कहानी का प्लाट इस कदर तैयार किया गया कि सांप भी मर जाए और लाठी भी नहीं टूटे . इसके लिए अलग-अलग भूमिका में दो  अधिकारी और एक दिल्ली के वरिष्ठ वकील को लगाया गया. कुछ सच्चा आश्वासन तो कुछ झूठा आश्वासन देने का भी खेल चला. यानी, यूं कहें कि मनोहर सरकार ने चाणक्य नीति के सारे हथकंडे अपनाए और आखिर डेरा प्रमुख को लपेटे में ले लिया, अन्यथा राम पाल जैसी घटना फिर दोहराई जाती और देश द्रोह का एक और नजारा देश के लोगों को हरियाणा की धरती पर देखने को मिलता.

सूत्र बताते हैं कि सरकार ने पहली प्राथमिकता तय की कि किसी प्रकार डेरा प्रमुख को भरोसे में लिया जाये औऱ उन्हें कोर्ट आने के लिए मनाया जाय. खबर पुष्ट है कि राम रहीम कोर्ट आने को तैयार नहीं थे. इस स्थिति में हाई कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ता और सरकार को निर्देश दिया जा सकता था कि किसी भी परिस्थिति में रेप के आरोपी को कोर्ट में पेश किया जाये या सजा सुनाने की बाद उसे जेल में डाला जाए. अगर ऐसा होता तो सरकार को भारी मशक्कत करनी पड़ती और नाकामी मिलने पर किरकिरी भी होती. यह मामला इतना चर्चित और संवेदनशील हो गया था कि इसके फैसले के प्रति दोनों पक्ष आशंकित थे. फैसला बाबा के हक में होगा या नहीं इसकी जानकारी न तो बाबा को थी और न ही सरकार को. सूत्र बताते हैं कि आरोपी बाबा को मनाने का जिम्मा देश के एक बहुत बड़े वकील को सौंपा गया. कहा जाता है कि उक्त वकील ने बाबा को कोर्ट में पेश होने के लिए यह कह कर मनाया कि अगर फैसला उनके खिलाफ भी आता है तो वो तीन-चार घंटे के अंदर ही उन्हें बेल दिलवा देंगे. यानी उनके मन से जेल जाने का भय निकालने में वकील साहब सफल रहे और बाबा को लगा कि सरकार की सहानुभूति उनके प्रति है ही अब वरिष्ठ वकील कानूनी प्रावधानों को समझते हैं इसलिए उन्हें जेल के बैरक का मुंह नहीं देखना पड़ेगा.आखिर, मनोहर लाल की कुर्सी कैसे बची ? 3

पेशी को तैयार हुए राम रहीम की अगली शर्त थी कि तीन-चार घंटे तो वे रह लेंगे लेकिन किसी जेल में नहीं बल्कि किसी गेस्ट हाउस में जैसे कभी बिहार के पूर्व सीएम व चारा घोटाले के आरोपी लालू यादव को झारखण्ड के गेस्ट हाउस में पुरी सुविधा के साथ रखा जाता था. बाबा अपनी शान-ओ -शौकत को बरकरार रखते हुए किसी गेस्टहाउस को स्पेशल जेल में तात्कालिक रूप से तब्दील करने की मांग पर बल दे रहे थे. इस शर्त पर बाबा और सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के बीच लगातार बातचीत होती रही. सरकार की नजर में यह कोई बड़ी बात नहीं थी क्योंकि इस देश में इस प्रकार के कई उदहारण देखने को मिलते रहे हैं. वरिष्ठ अधिकारी ने सरकार से हरी झंडी मिलते ही उन्हें आश्वासन दे दिया कि तीन-चार घंटे के लिए उन्हें किसी स्पेशल जेल में ही रखा जाएगा. जैसा कि शुक्रवार यानी 25 अगस्त को मिडिया रिपोर्टिंग से भी संकेत मिल रहा था कि सरकार ने पंचकुला स्थित एक सरकारी गेस्ट हाउस को पूरी तरह छावनी में तब्दील कर रखा था. हालांकि मिडिया को लग रहा था कि कालका शिमला हाई वे से उन्हें लाकर पहले गेस्ट हाउस में ही रखा जायेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. परन्तु गेस्ट हाउस में जिस प्रकार की तैयारी थी उससे तो यही संकेत मिलता है कि सरकार बाबा को तीन चार घंटे इसी गेस्ट हाउस में रखने की तैयारी में थी जिस पर फैसला आने के बाद उनके समर्थकों द्वारा हिंसा व आगजनी करने से पानी फेर दिया गया. यह कहना सही होगा कि बाबा के रंग में भंग उनके समर्थकों ने ही पंचकुला में बलवा कर डाल दिया. उनके शिष्यों ने सार किये कराये पर पानी फेर दिया.

 

सूत्र बताते हैं कि बाबा की यह भी चाहत थी कि इन तीन-चार घंटों में उनका परिवार भी उनके साथ गेस्ट हाउस वाले जेल में रहे. सरकार के उक्त वरिष्ठ अधिकारी ने बाबा को समझाया कि पूरे परिवार की जगह केवल एक-दो लोगों को साथ रखने की इजाजत दी जायेगी. इस पर दोनों पक्ष सहमत भी हो गए और इसलिए ही वे अपने लाव लश्कर सहित दो करोड़ की गाडी में दो सौ गाड़ियों वाले काफिले के साथ इस तरह आये की शाम होते होते वे फिर इसी शान–ओ-शौकत के साथ वापस अपने महल को जायेंगे. उन्हें वकील व सरकार के नुमाइंदे पर पूरा भरोसा था इसलिए वे बादशाह की तरह पंचकुला आये.

 

आखिर, मनोहर लाल की कुर्सी कैसे बची ? 4अब बात थी पंचकुला में लगातार बढ़ती भीड़ को हटाने की. सरकार के रणनीतिकारों ने यहाँ बाबा के साथ जबरदस्त चाल खेली. सरकार में बड़े स्तर पर यह तय किया गया कि बाबा को विश्वास दिलाने के लिए यह जरूरी है कि उनके समर्थकों को नहीं छेडा जाए. क्योंकि सरकार उन्हें यह भरोसा दिलाना चाहती थी कि सरकार बाबा के साथ खड़ी है. इस मद में सीएम मनोहर लाल की अध्यक्षता में कैबिनेट की हुई आपात बैठक के बाद शिक्षा मंत्री रामविलास शर्मा द्वारा यह बयान दिलवाया जाना कि सभी डेरा प्रेमी उनके अतिथि हैं और उनके भोजन व ठहरने की व्यवस्था भी सरकार करेगी. उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया था की धारा 144 डेरा प्रेमियों के लिए नहीं है.

 

सरकार की रणनीति के इस चाल ने  राम रहीम को अपने डेरे से बाहर निकलने को आकर्षित किया और अंततः वे कोर्ट पहुंचें. सरकार को इस बात की चिंता थी कि अगर कोर्ट का फैसला बाबा के खिलाफ आय़ा और वो कोर्ट में हाजिर नहीं होंगे तो उन्‍हें सिरसा स्थित उनके महल से निकालना सांप के बिल में हाथ देने जैसा हो सकता है. वोट की चिंता करने वाली लोकतान्त्रिक व्यवस्था में बनी सरकार के लिए यह कठिन काम था. इसमें हरियाणा पुलिस के अधिकारियों के हाथ पांव फूल रहे थे क्योंकि बाबा की फ़ौज से लड़ने का मतलब था सिरसा में हजारों लाशों को बिछाना.  

 

उल्लेखनीय है कि सिरसा डेरा सच्चा सौदा, लगभग 700 एकड़ में बसा है जिसमें लगभग 40 से 50 हजार की संख्या में उनके अनुयायी निःशुल्क कार्यरत रहते हैं. उनकी स्वतंत्र आर्थिक सत्ता थी जहाँ बाबा ही राष्ट्रपति, पीएम और सीएम थे . उस इलाके तक में भी किसी अधिकारी को फटकने की इजाजत नहीं थी. ध्यान देने वाली बात है कि यह स्थिति केवाल मनोहर राज में ही नहीं बल्कि इनेलो व कांग्रेस राज में भी रही है. इसके अलावा वहां कई बार लाखों की संख्या में समर्थक सत्संग के लिए मौजूद रहते हैं. इस घटना में तो और भी लोगों के जमा होने की आशंका थी. ऐसे में पुलिस की बाबा के समर्थकों से भिड़ंत होती और जान माल का पंचकूला की तुलना में कई गुना ज्यादा नुकसान हो सकता था.

अन्दर की बात तो यह है कि मनोहर लाल खट्टर ने अपनी पूरी कार्रवाई को  केंद्र सरकार, संघ मुख्यालय और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के समक्ष रखा. इस पूरे माजरा को खट्टर ने इस कदर केन्द्रीय नेतृत्व के सामने पेश किया कि शुक्रवार रात में ही भाजपा ने उन्हें अभय दान देने का मन बाना लिया और साफ़ कर दिया कि खट्टर को सीएम के पद से हटाने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता.

 

मनोहर लाल सरकार ने केंद्र को समझाया कि अगर इस बार भी रामपाल वाले मामले की तरह स्थिति उत्पन्न होती तो सिरसा डेरा से राम रहीम को गिरफ्तार कर जेल पहुँचाने के लिए सैकड़ों लाशों से गुजरना पड़ता क्योंकि उनके अंधभक्त उनके लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. इसलिए ही एक रणनीति के तहत ही धारा 144 लगाने के बावजूद पंचकूला में लाखों की संख्या में डेरा समर्थकों को बेधड़क आने दिया गया. सरकार ने केन्द्रीय गृह मंत्री को बताया कि अगर डेरा प्रमुख कोर्ट में हाजिर होने से मना करते तो स्थिति और भी भयानक हो सकती थी और  वहां पंजाब में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार की तरह की कार्रवाई करनी पड़ती.

इन तर्कों ने ही मनोहर लाल खट्टर की कुर्सी पर पड़ी कई नेताओं की गिद्ध नजर को निराश कर दिया है.

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