अंतर्राष्ट्रीय औषधि नियामक प्राधिकरण सम्मेलन : वैज्ञानिक और नैतिक अनुसंधान को बढ़ावा देने पर बल

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नई दिल्ली :  “सभी के लिए सुरक्षित और प्रभावी दवाइयां सुनिश्चित करने के लिए ज्ञान साझा करने, साझेदारी बनाने और सामंजस्य के साथ काम करने में आईसीडीआरए महत्वपूर्ण है। हम विनियमन में इतना अच्छा काम कर रहे हैं कि हमारे प्रयासों से दुनिया भर में लोगों का स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है।” केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री अनुप्रिया सिंह पटेल ने आज नई दिल्ली में 19वें अंतर्राष्ट्रीय औषधि नियामक प्राधिकरण (आईसीडीआरए) के सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह बात कही। नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. वीके पॉल भी इस अवसर पर मौजूद थे।

 

यह कार्यक्रम विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग से भारत में पहली बार स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के केन्द्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ), द्वारा 14 से 18 अक्टूबर तक आयोजित किया जा रहा है। इसमें 200 से अधिक देशों के नियामक प्राधिकरण, नीति निर्माता और स्वास्थ्य अधिकारी भाग ले रहे हैं।

श्रीमती पटेल ने सत्र को संबोधित करते हुए भारत में लागू किए गए नए नियमों और नियामक प्रक्रियाओं पर जोर दिया। उन्होंने कहा, क्लिनिकल ट्रायल के क्षेत्रों में नए नियमों को “न्यू ड्रग्स एंड क्लिनिकल ट्रायल रूल्स 2019 और मेडिकल डिवाइस रूल्स 2017 के रूप में प्रकाशित किया गया है और इनसे वैश्विक अपेक्षा और अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं के अनुरूप वैज्ञानिक और नैतिक अनुसंधान को बढ़ावा मिला है। मेडिकल डिवाइस नियमों में जोखिम-आधारित वर्गीकरण, पंजीकरण के माध्यम से सभी उपकरणों को विनियमन के तहत लाना और नियामक मार्ग तैयार करना शामिल है।” उन्होंने आगे कहा, “डायग्नोस्टिक्स के लिए उत्पाद जीवनचक्र के प्रबंधन में मजबूत नियंत्रण का संकेत देने वाली सभी मेडिकल डिवाइस के लिए उपयुक्त पूर्व-अनुमोदन और अनुमोदन के बाद की नियामक प्रक्रियाएं हैं। भारत, मेडिकल डिवाइस और डायग्नोस्टिक्स के क्षेत्र में नियामक आवश्यकताओं को सुसंगत बनाने के लिए आईएमडीआरएफ, आईएसओ, डब्ल्यूएचओ जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों और एसईएआरएन जैसे क्षेत्रीय नेटवर्क के साथ वैश्विक स्तर पर सहयोग कर रहा है।”

केंद्रीय मंत्री ने बताया कि भारत को हाल ही में आईएमडीआरएफ के एक संबद्ध सदस्य के रूप में मान्यता मिली है। उन्होंने कहा, “फार्माकोपियल चर्चा समूह (पीडीजी) द्वारा भारतीय फार्माकोपिया को मान्यता, सामंजस्य और नियामक मानकों को मान्यता मिलने के रूप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।”

श्रीमती पटेल ने कहा कि हाल ही में प्रकाशित संशोधित अनुसूची एम, जैविक, जांच उत्पादों सहित विभिन्न उत्पादों के लिए अच्छी विनिर्माण कार्यप्रणाली की डब्ल्यूएचओ आवश्यकताओं के अनुरूप है और उससे भी बढ़कर सामंजस्य लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करती है। “सभी विनियामक प्रक्रियाओं के लिए ई-गवर्नेंस के साथ मिलकर इसने भारत में चिकित्सा उत्पादों के नियमन में अच्छे विनियामक कार्यप्रणाली को स्थापित किया है”। उन्होंने यह भी बताया कि “एएमआर नियंत्रण प्राथमिकता वाला क्षेत्र है और इसमें भारत प्रभावी प्रबंधन और नियंत्रण के लिए अपनी रणनीति तैयार कर रहा है।”

कई देशों की विनियामक प्रणालियों को उन्नत करने में डब्ल्यूएचओ के प्रयासों की सराहना करते हुए श्रीमती पटेल ने कहा कि “जिस तरह से डब्ल्यूएचओ साझेदारी, निर्भरता, अनुभवात्मक शिक्षा, फार्माकोविजिलेंस सिस्टम, एंटीकॉंट्रफ़ेटिंग तकनीक और निगरानी प्रणाली और पशु प्रयोगों के उपयोग में कमी को बढ़ावा देता है, उसकी सराहना की जानी चाहिए। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि सहयोग, विचार-विमर्श और समावेशी निर्णय लेने का मॉडल सभी हितधारकों के लिए सर्वोत्तम परिणाम एक साथ लाता है।” ऐसा कहते हुए, श्रीमती पटेल ने कई क्षेत्रों में योगदान देने के लिए डब्ल्यूएचओ के साथ मिलकर काम करने की भारत की प्रतिबद्धता को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “हमारे पास समावेशी प्रक्रियाओं के लिए मूल्यांकन और ज्ञान का खजाना है। आईसीडीआरए की मेजबानी, वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रति हमारी मंशा और प्रतिबद्धता को दर्शाता है।”

 

स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता जताते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा, “हमारा ध्यान हमारी आबादी की जरूरतों को पूरा करने वाली एक मजबूत स्वास्थ्य सेवा प्रणाली बनाने पर है। आयुष्मान भारत जैसे कार्यक्रम यह सुनिश्चित करते हैं कि गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा का लाभ 500 ​​मिलियन से अधिक लोगों को मिले। यह न कि केवल किसी एक के विशेषाधिकार, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं को प्रत्येक नागरिक का अधिकार बनाने के लिए हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।”

उन्होंने केंद्र सरकार के उत्साह को उजागर करते हुए बताया कि कैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बना रही है। उन्होंने कहा, “एआई हमें तेजी से निर्णय लेने, रोगी देखभाल को बेहतर बनाने और अनुसंधान को गति देने में सहायता कर सकती है। नई तकनीकों को अपनाकर, हम लोगों को बेहतर सेवाएं दे सकते हैं और उनके स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं।”

केंद्रीय मंत्री ने सभी से स्वस्थ भविष्य के लिए मिलकर काम करने का आग्रह करते हुए अपने संबोधन का समापन किया। उन्होंने कहा, “आईसीडीआरए केवल एक सम्मेलन नहीं है; यह हमारे लिए सहयोग करने, नवाचार करने और सभी के लिए बेहतर स्वास्थ्य के हमारे साझा मिशन में एक-दूसरे का सहयोग करने का अवसर है।”

इस अवसर पर डॉ. वी.के. पॉल ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण दवाइयां, मानव उत्पादकता के साथ-साथ स्वास्थ्य गुणवत्ता और जीवन शैली में सुधार लाती हैं; इस वर्ष का आईसीडीआरए विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के बाद, दुनिया भर में नियामक वातावरण को मजबूत करने की प्रतिबद्धता के लिए महत्वपूर्ण है।

 

डॉ. पॉल ने सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य आश्वासन योजना की शुरूआत और डिजिटल स्वास्थ्य क्षेत्र में बड़े पैमाने पर किए जा रहे प्रयासों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत के साथ-साथ दुनियाभर में स्वास्थ्य सेवाओं का भविष्य प्रौद्योगिकियों द्वारा संचालित होगा, भारत अपने समृद्ध प्रतिभा पूल, डिजिटल स्वास्थ्य और चिकित्सा बुनियादी ढांचे को लेकर सरकार द्वारा की जा रही ठोस पहलों के साथ इस बदलाव यात्रा में नेतृत्व की भूमिका निभा सकता है।

डॉ. पॉल ने बताया कि भारत ने कोविड महामारी के दौरान इस्तेमाल के लिए उचित विनियामक प्रक्रिया के माध्यम से 8 टीकों को लाइसेंस दिया। उन्होंने कहा कि भारत ने एमआरएनए, डीएनए, नाक के जरिए दिए जाने वाले टीकों सहित विभिन्न प्रकार के टीके विकसित किए, जो दुनिया में उपलब्ध अन्य टीकों की तुलना में बहुत सस्ती कीमत पर उपलब्ध थे।

उन्होंने सैकड़ों वर्ष पुरानी भारत की समृद्ध पारंपरिक चिकित्सा पद्धति विरासत की ओर भी ध्यान दिलाया। उन्होंने ऐसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को मुख्यधारा में लाने के महत्व को रेखांकित किया, जो लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाने में सहायक हो सकती हैं।

स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग सचिव और आईसीएमआर महानिदेशक डॉ. राजीव बहल ने स्वास्थ्य अनुसंधान में नियामकों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “महामारी के पहले तीन महीनों में, भारत ने लागत का 40वां हिस्सा खर्च करते हुए स्वदेशी परीक्षण विकसित किए। इसी तरह, महामारी के नौ महीनों की अवधि में, भारत ने कोविड-19 वैक्सीन को मंजूरी दे दी।” उन्होंने बताया कि एमपॉक्स के लिए तीन डायग्नोस्टिक टेस्ट भी विकसित किए गए, जिन्हें सीडीएससीओ ने मंजूरी दी थी।

डब्ल्यूएचओ की सहायक महानिदेशक डॉ. युकिको नाकातिनी ने कहा कि आईसीडीआरए 2024 कोविड-19 महामारी के बाद इसका पहला आयोजन है। उन्होंने कहा कि महामारी के दौरान हमें इस बात का एहसास हुआ कि एक मजबूत नियामक प्रणाली की बहुत आवश्यकता थी। डॉ. युकिको ने वैक्सीन विनियमन के लिए परिपक्वता स्तर III को बनाए रखने की उपलब्धि के लिए भारत को बधाई भी दी।”

अमरीका के यू.एस. खाद्य एवं औषधि प्रशासन की उपायुक्त सुश्री किम्बर्ली ट्रेज़ेक ने पारंपरिक तरीकों के विपरीत उन्नत दवा निर्माण प्रणालियों को शुरू करने से सामने आने वाले अवसरों और कठिनाइयों पर प्रकाश डाला। उन्होंने गुणवत्ता बनाए रखना सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया और दुनिया भर में दवा नियामक निकायों के बीच सहयोग के महत्व को रेखांकित किया।

 

इस अवसर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के विनियमन एवं पूर्व योग्यता विभाग के निदेशक डॉ. रोजेरियो गैसपर, स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के सचिव एवं आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल, भारतीय औषधि महानियंत्रक डॉ. राजीव सिंह रघुवंशी, स्वास्थ्य मंत्रालय के सलाहकार (लागत) श्री राजीव वधावन, भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधि डॉ. रोडेरिको एच. ओफ्रिन, विश्व स्वास्थ्य संगठन के विनियमन एवं पूर्व योग्यता विभाग के विनियमन एवं सुरक्षा इकाई प्रमुख श्री हिटी सिलो और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

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