क्या अरविन्द केजरीवाल पॉवर विहीन सीएम रहेंगे ? सुप्रीम कोर्ट की 6 शर्तें !

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नई दिल्ली : दिल्ली शराब नीति घोटाला मामले से जुड़े CBI केस में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से शुक्रवार को जमानत मिल गई। केजरीवाल 177 दिन बाद जेल से बाहर आएंगे। जमानत के लिए वही सारी शर्तें लगाई गई हैं, जो ED वाले मामले में बेल देते वक्त लगाई गई थीं। केजरीवाल के खिलाफ 2 जांच एजेंसी ED और CBI ने अलग अलग मामले  दर्ज किये हैं । ED वाले मामले में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से गत 12 जुलाई को जमानत मिली थी और सी बी आई वाले मामले में उन्हें आज राहत मिली है.

एन्फोर्समेंट डायरेक्टोरेट ने अरविन्द केजरीवाल को गत 21 मार्च को गिरफ्तार किया था। इस मामले में बेल मिलने के तत्काल बाद 26 जून को ही CBI ने उन्हें जेल से ही हिरासत में लिया था।

इस पूरे मामले की ख़ास बात यहाँ है कि अरविन्द केजरीवाल को जमानत तो मिली लेकिन 6 शर्तों के साथ.

-पहली शर्त है कि अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री कार्यालय नहीं जा सकेंगे.

– दूसरी शर्त है कि किसी भी सरकारी फाइल पर साइन नहीं करेंगे.

-सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत देते हुए तीसरी शर्त यह भी लगाई है कि वह इस केस से जुड़ा कोई सार्वजनिक बयान नहीं देंगे.

-इसके अलावा कोर्ट ने उन पर जमानत पर छूटने के लिए 10 लख रुपए का बेल बांड भरने की भी शर्त लगाई है..

– पांचवी शर्त के रूप में कोर्ट ने उन्हें स्पष्ट तौर पर निर्देश दिया है कि जांच में बाधा डालने या गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करेंगे.

-छठी शर्त के तौर पर कोर्ट ने कहा है कि जरूरत पड़ने पर ट्रायल कोर्ट में पेश होंगे और जांच में सहयोग करेंगे

 

कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को जमानत देने के मामले में यह स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें  एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट वाले मामले में जिन शर्तों के आधार पर जमानत दी गई थी वही सभी शर्तें उन पर अब भी लागू रहेंगी।

 

 

दो जजों की बेंच ने इस मामले पर क्या रुख अपनाया :

 

दो जजों की बेंच अरविंद केजरीवाल को जमानत देने पर तो एकमत दिखी लेकिन सीबीआई की ओर से दिल्ली के शराब नीति घोटाला मामले में की गई उनकी गिरफ्तारी पर दोनों ही जजों की राय अलग-अलग थी।

जमानत संबंधी निर्णय सुनाते हुए अदालत ने कहा कि एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट मामले में जमानत मिलने के बावजूद केजरीवाल को जेल में रखना न्याय का मजाक उड़ाना होगा. गिरफ्तारी की ताकत का इस्तेमाल बहुत सोच समझकर किया जाना चाहिए।

 

किन बातों पर जजों की राय अलग रही ?

 

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि :

-अगर कोई व्यक्ति पहले से हिरासत में है तो जांच के सिलसिले में उसे दोबारा अरेस्ट करना गलत नहीं है . सीबीआई ने बताया है कि उनकी जांच क्यों जरूरी थी.

 

-जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि याचिका कर्ता की गिरफ्तारी अवैध नहीं है सीबीआई ने नियमों का कोई उल्लंघन नहीं किया है. उन्हें जांच की जरूरत थी इसलिए इस केस में अरेस्टिंग हुई।

 

दूसरी तरफ जस्टिस उज्जवल भुईयां ने कहा कि :

 

सीबीआई की गिरफ्तारी जवाब से ज्यादा सवाल खड़े करती है. जैसे ही एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट केस में उन्हें जमानत मिलती है सीबीआई एक्टिव हो जाती है. ऐसे में अरेस्टिंग के समय पर सवाल खड़े होते हैं।

 

जस्टिस भूईयां ने यह भी कहा कि सीबीआई को निष्पक्ष दिखाना चाहिए और हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए ताकि गिरफ्तारी में मनमानी न हो. जांच एजेंसी को पिंजरे में बंद तोते की धारणा को दूर करना चाहिए।

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