गुड़गांव । मीडिया की खबर के अनुसार कांग्रेस के नेतृत्व में सात विपक्षी पार्टियों ने मिलकर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का नोटिस राज्यसभा के चेयरमैन एम वेंकैया नायडू को दिया है खबर है कि इसमें सात विपक्षी दलों के साथ सांसदों के हस्ताक्षर हैं इसमें कांग्रेस सीपीआई सीपीएम समाजवादी पार्टी मुस्लिम लीग टीएमसी डीएमके और आरजेडी शामिल है सभी सांसदों द्वारा हस्ताक्षर किया नोटिस श्री नायडू को सौंपा
इससे पूर्व कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों के नेताओं की बैठक मैं यह प्रस्ताव लाने पर विचार किया गया। कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में देश की अधिकतर विपक्षी पार्टियों की बैठक हुई जिसमें कांग्रेस सहित सात दलों की सात 60 राज्यसभा सांसदों ने हस्ताक्षर किए। हालांकि महाभियोग प्रस्ताव के लिए केवल 50 सांसदों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है लेकिन सभी दलों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए ही कांग्रेस ने अन्य विपक्षी पार्टियों के सांसदों से इसमें हस्ताक्षर करवाए। खबर है कि इस बैठक में महाभियोग का प्रस्ताव राज्यसभा में लाने पर विचार किया गया ।
इस मीटिंग के सूत्रधार राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता एवं लीडर ऑफ अपोजिशन गुलाम नबी आजाद हैं। इसमें वामपंथी दल, बंगाल में सत्ताधारी पार्टी टीएमसी के नेता , NCP DM के सीपीआई सीपीएम समाजवादी पार्टी मुस्लिम लीग के सांसद भी शामिल हुए । चर्चा यह है कि कल गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जज लोया कांड की दोबारा जांच कराने संबंधी याचिका को खारिज करने का निर्णय आने के बाद विपक्ष में खलबली मची है। अदालत में अपने निर्णय में याचिकाकर्ताओं की नियत पर जिस प्रकार से तथ्यात्मक सवाल खड़े किए हैं उससे विपक्ष के खेमे में घबराहट है और पिछले संसद सत्र के दौरान छोड़े गए महाभियोग के शगूफे को अब धरातल पर लाने की कोशिश में एक बार फिर विपक्षी दल जमा हो रहे हैं। राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि बावजूद इसके कि संसद के दोनों सदनों में विपक्षी दलों को दो तिहाई बहुमत प्राप्त नहीं है फिर भी वह चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाने को आतुर दिख रहे हैं चर्चा इस बात की है कि विपक्षी दल जज लोया काम पर आए फैसले के बाद अब अदालतों पर दबाव बनाने की राजनीति करना चाहते है ।
जानकारी के अनुसार आरजेडी आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की पार्टी तेलुगूदेशम सहित कई क्षेत्रीय दलों ने इस प्रस्ताव पर ना तो हस्ताक्षर किया और ना ही इसके विचार के लिए शामिल हुए।
समझा जाता है कि कई विपक्षी दल इस स्थिति से वाकिफ हैं कि महाभियोग का प्रस्ताव लाने के बावजूद संसद में इसे पारित कराना संभव नहीं होगा क्योंकि उन्हें दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत प्राप्त नहीं है।
संभव है कुछ क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस की दबाव की राजनीति करने की मंशा का एहसास हो गया हो और उन्हें लगता है कि सुप्रीम कोर्ट जैसे इंस्टिट्यूशन को राजनीतिक विवाद में घसीटना भविष्य के लिए सही नहीं होगा।