गुलामी की मानसिकता से निजात दिलाने वाले तीन कानून लोक सभा से पारित , विपक्ष नदारद

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-मॉब लिंचिंग घृणित अपराध के लिए फांसी की सजा का प्रावधान : अमित शाह 

नई दिल्ली :  भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता 2023, नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक 2023  लोकसभा में पारित हो गया. ये बिल ऐसे समय में पास हुए हैं, जब संसद के 143 सांसदों को निलंबित कर दिया गया है. इनमें से 97 सासंद लोक सभा के हैं, जबकि 46 राज्य सभा से हैं . तीनों विधेयकों पर हुई लम्बी चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में कहा कि आब मॉब लिंचिंग घृणित अपराध के लिए फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है . उन्होंने बल देते हुए कहा कि इस ऐतिहासिक सदन में करीब 150 साल पुराने तीन कानून, जिनसे हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली चलती है को भारतीय  स्वरूप दिया गया है. उन्होंने कहा कि तीनों कानूनों में पहली बार मोदी जी के नेतृत्व में भारतीयता, भारतीय संविधान और भारत की जनता की चिंता करने वाले बहुत आमूल-चूल परिवर्तन की ओर इन विधेयकों के माध्यम से अहम कदम बढ़ाया गया है. उन्होंने साफ़ कर दिया कि ये तीनों कानून दुनिया का सबसे आधुनिक तकनीक का उपयोग करने वाला होगा जबकि आने वाले समय में आवश्यकतानुसार परिवर्तन को भी शामिल करने का प्राविधान होगा.

केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जोर देते हुए कहा कि इन बिलों को पास करवाने का उद्देश्य कानून व्यवस्था को बेहतर बनाना है. ऐसे प्रावधानों को भी शामिल करना है जिन पर पिछले 70 सालों में ध्यान नहीं दिया गया. पहले के कानून ब्रिटिश काल के हैं जो भारतीय लोगों को न्याय दिलाने के लिए नहीं बल्कि भारत पर विदेशी राज बनाये रखने के लिए बनाये गए थे. अब इन कानूनों से देश के लोगों को दंड नहीं बल्कि न्याय दिलाने की व्यवस्था होगी. ये कानून बनने के बाद अगले सौ साल तक जितनी भी तकनीक आएगी उसे अपनाने की व्यवस्था की गई है . यह भारतीय अवधारणा पर आधारित है.

गृह मंत्री ने कहा कि अयोध्या में हम जल्द ही राम मंदिर का दौरा करेंगे और 22 जनवरी 2024 को वहां रामलला स्थापित करेंगे। ये मोदी की सरकार है, जो कहता है वो करता है। उन्होंने कहा कि हमने कहा था कि हम संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण देंगे . कांग्रेस कई बार सत्ता में आई और तारीखों को बरकरार रखा, लेकिन हमने इसे पूरा किया और बहुमत के साथ महिलाओं को शामिल किया।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि तीन आपराधिक कानूनों के स्थानों पर लाए गए विधेयक गुलामी की मानसिकता को मिटाने और औपनिवेशिक कानूनों से मुक्ति दिलाने की नरेन्द्र मोदी सरकार की प्रतिबद्धता को दिखाते हैं. नए विधेयक में राजद्रोह का कानून खत्म कर दिया गया है जबकि आतंकवाद को लेकर नया प्रावधान किया गया है. मोब लिंचिंग का मामला भी इसमें शामिल किया गया है जिसके लिए अब तक कोई प्रावधान नहीं था.

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा  :

-बिल में गैंगरेप के मामलों में अब 20 साल की सजा या आजीवन कारावास का प्रवाधान किया गया है.

-इसके अलावा झूठे वादे या पहचान छुपाकर यौन संबंध बनाना भी अब अपराध की श्रेणी में शामिल होगा.

-इसमें 18 साल से कम आयु की लड़की से दुष्कर्म के मामले में आजीवन कारावास या मृत्यु दंड का प्रावधान किया गया है.

– यौन हिंसा के मामलों में बयान महिला न्यायिक मजिस्ट्रेट ही रिकॉर्ड करेगी.

-पीड़िता का बयान उसके आवास पर महिला पुलिस अधिकारी के सामने ही दर्ज होगा.

-बयान रिकॉर्ड करते समय पीड़िता के माता/पिता या अभिभावक मौजूद रह सकते हैं.

-यौन हिंसा के मामलों में बयान महिला न्यायिक मजिस्ट्रेट ही रिकॉर्ड करेगी.

-पीड़िता का बयान उसके आवास पर महिला पुलिस अधिकारी के सामने ही दर्ज होगा.

-बयान रिकॉर्ड करते समय पीड़िता के माता/पिता या अभिभावक मौजूद रह सकते हैं.

-सरकार ने राजद्रोह जैसे कानूनों को निरस्त कर दिया है.

-इसके अलावा बिल में मृत्युदंड की सजा को आजीवन कारावास में बदलने का प्रावधान किया गया है.

-साथ ही अब आजीवन कारावास को 7 साल की सजा में बदला जा सकेगा.

-भारतीय न्याय संहिता में आतंकवाद की व्याखा की गई है और उसे दंडनीय अपराध बनाया गया है.

-इससे कोई भी आतंकवादी कानबून की किसी भी कमी का फायदा नहीं उठा सकेगा.

-बिल में नस्ल, जाति और समुदाय के आधार पर की गई हत्या के लिए नया प्रावधान पेश किया गया है.

-बिल में मॉब लिंचिंग की घटनाओं को लेकर आजीवन कारावास से लेकर मौत की सजा तक का प्रावधान है.

-पहले के कानूनों के तहत ब्रिटिश राज की सलामती प्राथमिकता थी, अब मानव सुरक्षा, देश की सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है.

-सरकार राजद्रोह को देशद्रोह में बदलने जा रही है.

-नये कानूनों में महिलाओं और बच्चों को प्रभावित करने वाले कानूनों को प्राथमिकता दी गई है.

-उसके बाद मानव अधिकारों से जुड़े कानूनों और देश की सुरक्षा से संबंधित कानूनों को प्राथमिकता दी गई है.

ट्रायल इन एब्सेंटिया का प्रावधान लाया गया है.

-देश में कई मामलों ने हमें झकझोर कर रख दिया, चाहे वह मुंबई बम ब्लास्ट हो या कोई और। वो लोग दूसरे देशों में छुपे हुए हैं और ट्रायल कर रहे हैं। नहीं चल रहे हैं। उन्हें अब यहां आने की जरूरत नहीं है। अगर वे 90 दिनों के भीतर अदालत में पेश नहीं होते हैं तो उनकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलेगा.

-उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए एक सरकारी वकील नियुक्त किया जाएगा।

-फाँसी… इससे उन्हें वापस लाने की प्रक्रिया तेज़ हो जाएगी क्योंकि इससे उन पर मुकदमा चलने पर दूसरे देश में उनकी स्थिति बदल जाएगी।

– अब आरोपी को बरी करने के लिए याचिका दायर करने के लिए सात दिन मिलेंगे.

-जज को उन सात दिनों में और अधिकतम 120 दिनों में मामले की सुनवाई करनी होगी सुनवाई होगी।

-पहले प्ली बार्गेनिंग के लिए कोई समय सीमा नहीं थी।

-अब अगर कोई अपराध के 30 दिनों के भीतर अपना अपराध स्वीकार कर लेता है तो सजा कम होगी.

-सुनवाई के दौरान दस्तावेज पेश करने का कोई प्रावधान नहीं था।

-हमने इसे बना दिया है 30 दिनों के भीतर सभी दस्तावेज प्रस्तुत करना अनिवार्य है। इसमें कोई देरी नहीं की जाएगी।

– सीआरपीसी में पहले 484 धाराएं थीं, अब 531 धाराएं हैं।

-177 धाराएं बदली हैं और 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं।

-39 नई उपधाराएं जोड़ी गई हैं। 44 नई धाराएं जोड़ी गई हैं। जोड़े गए हैं।

 

-आतंकवादी गतिविधियों को पहली बार भारतीय न्याय संहिता के तहत पेश किया गया था. हालांकि इसके लिए पहले से ही यू ए पी ए जैसा कानून है . लेकिन एक प्रकार के अपराध के लिए एक ही कानून लागू होगा .

-इसमें बड़ा बदलाव  करते हुए आर्थिक सुरक्षा को ख़तरा भी आतंकवादी गतिविधि के अंतर्गत लाया गया है .

-तस्करी या नकली नोटों से  वित्तीय स्थिरता को नुकसान पहुंचाना भी आतंकवादी अधिनियम के अंतर्गत आएगा.

– विदेश में भारतीय संपत्ति को नष्ट करना, जो भारत में रक्षा या किसी सरकारी उद्देश्य के लिए थी, यह भी आतंकवादी गतिविधि होगी.

-अब भारत में सरकारों को कुछ भी करने पर मजबूर करने के लिए किसी व्यक्ति को हिरासत में लेना या अपहरण करना भी  आतंकवाद की श्रेणी में होगा.

– नए कानून में बलात्कार के मामलों में अदालती कार्यवाही के संबंध में अदालत की अनुमति के बिना कुछ भी प्रकाशित करने वाले के लिए  2 साल तक की जेल और जुर्माना का प्रावधान है .

-इस विधेयक में सामुदायिक सेवा को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि यह ऐसी सज़ा होगी जो समुदाय के लिए फायदेमंद होगी.  इस सजा के तहत सेवा देने वाले अपराधी को कोई पारिश्रमिक नहीं दिया जाएगा.

-इसमें  छोटी-मोटी चोरी, नशे में धुत होकर परेशान करना जैसे अन्य अपराधों के लिए सज़ा के रूप में सामुदायिक सेवा करवाने का प्रावधान है .

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