-प्रोफेसर कपिल कुमार, सीनियर फेलो नेहरू मेमोरियल संग्रहालय ने बताया राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास
-आईसीएटी की कार्यवाहक निदेशक पामेला टिक्कू ने लोगों को राष्ट्रीय ध्वज फहराने को प्रेरित किया
-देश की आजादी के 75 वर्ष के उपलक्ष्य में किया व्याख्यान का आयोजन
गुरुग्राम : केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय की प्रमुख संस्थ इंटरनेशनल सेंटर फॉर आटोमोटिव टेक्नोलॉजी मानेसर में 4 अगस्त गुरुवार को “हमारे राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास “ विषय पर एक महत्वपूर्ण व्याख्यान का आयोजन किया गया. यह आयोजन केंद्र सरकार की ओर से शुरू किए गए हर घर तिरंगा अभियान के तहत किया गया. इसका आशय लोगों को देश की आजादी के 75 वर्ष के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय झंडा तिरंगा फहराने और देशभक्ति की भावना जगाना था. इस अवसर पर पामेला टिक्कू, कार्यवाहक निदेशक-आईसीएटी और प्रोफेसर कपिल कुमार, सीनियर फेलो नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय की ओर से व्याख्यान दिया गया .उन्होंने संस्थान के अधिकारियों व कर्मचारियों को राष्ट्रीय ध्वज के इतिहास की विस्तृत जानकारी दी.
प्रोफेसर कपिल कुमार, सीनियर फेलो नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय ने अपने संबोधन में बताया कि 22 जुलाई का दिन हर भारतीय के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। रंग, रूप वेष, भूषा से चाहे हम कितने भी अनेक हो, लेकिन तिरंगे के नीचे जब खड़े होते हैं तो हम एक हैं, भारतीय हैं। आज उसी भारत के गौरव, तिरंगे का अंगीकरण दिवस है। 22 जुलाई 1947 में भारतीय संविधान सभा की बैठक में तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया था, जो 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पहले हुई थी।
उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय ध्वज शुरुआत में कई परिवर्तनों से हो कर गुजरा। स्वतंत्रता के राष्ट्रीय संग्राम के दौरान कई अलग-अलग ध्वजों का प्रयोग किया गया। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का विकास आज के इस रूप में पहुंचने के लिए अनेक दौर से गुजरा।
प्रोफेसर कपिल कुमार ने कहा कि 1931 ध्वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष रहा। तिरंगे ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया । यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में चलते हुए चरखे के साथ था।यह स्पष्ट रूप से बताया गया इसका कोई साम्प्रदायिक महत्व नहीं था और इसकी व्याख्या इस प्रकार की जानी थी। 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे मुक्त भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। स्स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया।
उनका कहना था कि वर्तमान में भारत के राष्ट्रीय ध्वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी हरियाली, उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है।
उन्होंने कहा कि 2002 से पहले, भारत की आम जनता के लोग केवल गिने चुने राष्ट्रीय त्योहारों को छोड़ सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज फहरा नहीं सकते थे। लेकिन एक याचिका पर 26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन किया गया और स्वतंत्रता के कई वर्ष बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों, कार्यालयों और फैक्टरी में न केवल राष्ट्रीय दिवसों पर, बल्कि किसी भी दिन बिना किसी रुकावट के फहराने की अनुमति मिल गई।
उन्होंने कहा कि भारतीय नागरिक राष्ट्रीय झंडे को शान से कहीं भी और किसी भी समय फहरा सकते है, बशर्ते कि वे ध्वज की संहिता का पालन करें और तिरंगे की शान में कोई कमी न आने दें। सुविधा की दृष्टि से भारतीय ध्वज संहिता, 2002 को तीन भागों में बांटा गया है। संहिता के पहले भाग में राष्ट्रीय ध्वज का सामान्य विवरण है। संहिता के दूसरे भाग में जनता, निजी संगठनों, शैक्षिक संस्थानों आदि के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में बताया गया है। संहिता का तीसरा भाग केन्द्रीय और राज्य सरकारों तथा उनके संगठनों और अभिकरणों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में जानकारी देता है।
इस अवसर पर अपने संबोधन में आईसीएटी की कार्यवाहक निदेशक पामेला टिक्कू ने लोगों को देश की आजादी के अमृत महोत्सव के तत्वावधान में अपने घरों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने को प्रेरित किया . उन्होंने कहा कि यह समय स्वाधीनता के आन्दोलन के दौरान सर्वश्व नौछावर करने वाले लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों को याद करने का है. इससे हम वर्तमान और आने वाली पीढ़ी को उनके त्याग और योगदान के बारे में अवगत कराते हैं. उनमें राष्ट्रीय भावना को जगाने के लिए हमें 75 वें स्वतंत्रता दिवस को ख़ास बनाना चाहिए.
आईसीएटी के मानेसर स्थित ऑडिटोरियम में आयोजित इस ख़ास व्याख्यान में संस्था के सभी वरिष्ठ अधिकारी व कर्मचारी मौजूद थे .