गुरुग्राम, 25 फरवरी। रीयल एस्टेट के प्रोजेक्ट में फेज के आधार पर अप्रूवल के लिए एक्ट में बदलाव की सख्त जरूरत है। इससे डिवलेपर व अलाटियों की लगभग सभी परेशानियां दूर हो सकती है और समय पर प्रोजेक्ट डिलीवर किए जा सकते हैं। यह मामला रेरा गुरुग्राम के चैयरमैन डॉ के के खंडेलवाल ने अर्बन डेवलपमेंट कॉन्क्लेव के एक टेक्नीकल सेशन में उठाया. इस पर राजस्थान , यूपी , हिमाचल प्रदेश सहित कई राज्यों के रेरा चैयरमैन ने अपने अपने तर्क देते हुए सहमती व्यक्त की. सत्र के दौरान विभिन्न राज्यों के रीयल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी के चेयरमैनों ने भी सुझाव दिए और उनके राज्यों में रीयल एस्टेट लाइसेंस जारी करने व रेरा में रजिस्ट्रेशन को लेकर अपनाई जा रही प्रक्रिया के बारे में बताया।
गुरुग्राम के लीला होटल में आयोजित अर्बन डेवलपमेंट कॉन्क्लेव के पहले दिन एक टेक्नीकल सत्र को संबोधित करते हुए हरियाणा नगर एवं ग्राम आयोजना विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव देवेंद्र सिंह ने भी रीयल एस्टेट के प्रोजेक्ट में फेज के आधार पर अप्रूवल के लिए एक्ट में बदलाव के सुझाव पर विचार करने का संकेत दिया। सभी वक्ताओं के सुझावों पर देवेंद्र सिंह ने कहा कि सत्र के दौरान कुछ बातें सामने आई है, जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि हरियाणा में रीयल एस्टेट प्रोजेक्ट को विकसित करने में डिवलेपर को परेशानियों का सामना करना पड़ता है जिसकी वजह से अलाटियों को भी परेशानी होती है। इसमें मुख्य रूप से फेज़ आधार पर अनुमति की व्यवस्था नहीं होना शामिल है। रीयल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी एक्ट 2016 के अनुसार फेज़ आधार पर अनुमति प्रदान करने में कुछ संशय हैं।
ऐसे में एक्ट में बदलाव की जरूरत है। इसके बाद डिवलेपर की फेज आधार पर लाइसेंस संबंधी लगभग सभी परेशानियां दूर हो जाएंगी और साथ ही ग्राहकों को भी प्रोजेक्ट समय पर उपलब्ध करवाए जा सकेंगे। इसके अलावा एक्ट के अनुसार लेआउट की परिभाषा को भी स्पष्ट करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि प्रोजेक्ट की शुरुआत में डिवलेपर द्वारा जो डिजाइन दिखाया जाता है वहीं अगर डिलीवर किया जाए तो ग्राहकों की परेशानी भी दूर हो सकती है। प्रोजेक्ट के प्रत्येक फेज के लिए अलग ओ. सी. होनी चाहिए ताकि अनुमति के अनुसार ही प्रोजेक्ट विकसित हो।
हरियाणा रीयल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी के चेयरमैन डा के के खंडेलवाल ने अपने संबोधन में कहा कि रेरा एक्ट के सेक्शन 3 के अनुसार डिवलेपर अपने किसी प्रोजेक्ट को फेज आधार पर हिस्सों में तैयार कर सकता है और इसके लिए सक्षम विभाग से अनुमति ले सकता है। लेकिन अभी तक विभाग द्वारा पूरे प्रोजेक्ट को एक ही फेज के तौर पर देखा जाता है। ऐसे में पूरा प्रोजेक्ट समय सीमा में तैयार नहीं हो पाता है और डिवलेपर सहित ग्राहकों को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। सभी प्रोजेक्ट में अलग-अलग फेज का अलग प्लान स्वीकृत किया जाना चाहिए। अगर भूमि बढ़ती है तो उसके लिए रिवाइज आवेदन होना चाहिए।
सत्र में उत्तर प्रदेश रेरा के चेयरमैन राजीव कुमार ने कहा कि इस एक्ट के आने के बाद सभी राज्यों के प्राधिकरण ने अच्छा काम किया है। अब प्रयास होना चाहिए कि ग्राहकों और डिवलेपर की परेशानियों को ध्यान में रखते हुए एक्ट के अनुसार सीमा निश्चित की जाए और जनहित में राज्यों के एक्ट को प्रयोग करना चाहिए। डिवलेपर प्रोजेक्ट की शुरुआत में जिस डिजाइन को दिखाकर ग्राहकों के साथ एग्रीमेंट करते हैं उसी की डिलीवरी हो तो समस्याओं का समाधान हो सकता है। फेज आधार पर प्रोजेक्ट तैयार करने के लिए डिवलेपर को अनुमति मिलनी चाहिए।
हरियाणा नगर एवं ग्राम आयोजना विभाग के महानिदेशक केएम पांडुरंग ने कहा कि फिलहाल विभाग द्वारा एक प्रोजेक्ट के आधार पर अनुमति प्रदान की जा रही है। लेकिन ओ. सी. के अनुसार इसे फेज माना जा सकता है।
पंचकुला रेरा के चेयरमैन राजन गुप्ता ने कहा कि रीयल एस्टेट के डिवलेपर और प्रमोटर को अपने प्रोजेक्ट को फेज के आधार पर घोषित करने की अनुमति मिलनी चाहिए। एक्जिस्टिंग लाइसेंस को भी फेज आधार पर अनुमति मिलनी चाहिए। उद्देश्य के लिए नियमों के अनुसार कानून की पालना जरूरी है। उन्होंने कहा कि इसके लिए अगर कानून में बदलाव की जरूरत है तो उसके लिए भी कार्य किए जा सकते हैं।
सत्र में गुजरात रेरा के चेयरमैन डॉ अमरजीत सिंह ने वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से विचार रखें। हिमाचल प्रदेश रेरा के चेयरमैन डॉ श्रीकांत बल्दी और राजस्थान रेरा के चेयरमैन एनसी गोयल ने भी अपने राज्य में अपनाई जा रही प्रक्रिया के बारे में बताया। प्रिमूस पार्टनर्स की एमडी आरती हरभजनका, क्रेडाई के प्रतिनिधि कुशागर अंसल, हरियाणा के वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता आलोक सांगवान व अतिरिक्त महाधिवक्ता अंकुर मित्तल ने भी विचार रखे।