नई दिल्ली : केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने आज वाराणसी में राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय द्वारा आयोजित अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन का शुभारंभ किया। सम्मेलन में केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री के साथ राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश, उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ, केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, अजय कुमार मिश्रा, निशिथ प्रमाणिक और सांसदगण और सचिव राजभाषा सहित देशभर के विद्वानगण शामिल हुए। दो दिवसीय राजभाषा सम्मेलन के दौरान कई समानांतर सत्रों में हिंदी के प्रगामी प्रयोग को बढ़ाने के विषय में विचार और मंथन किया जाएगा।
इस अवसर पर अपने संबोधन में केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि उनके लिए ये बेहद हर्ष का विषय है कि आज़ादी के अमृत महोत्सव के वर्ष में पहली बार राजभाषा सम्मेलन राजधानी के बाहर लाने में सफलता मिली है।
उन्होंने कहा कि कोई भी सरकारी परिपत्र, अधिसूचना तब तक लोकभोग्य नहीं होती है जब तक वो जन आंदोलन में परिवर्तित नहीं होती है।राजभाषा को गति देने के लिए अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन को दिल्ली के गलियारों से बाहर ले जाने का निर्णय 2019 में ही कर लिया गया था और ये नई शुरूआत उस वर्ष में हो रही है जो हमारी आज़ादी का अमृत महोत्सव वर्ष है।
श्री अमित शाह ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा कि अमृत महोत्सव हमारे पुरखों द्वारा आज़ादी के लिए दिए गए बलिदानों, संघर्षों को स्मृति में पुनर्जीवित करके युवा पीढ़ी को प्रेरणा देने का मौका तो है ही, ये हमारे लिए संकल्प का भी वर्ष है। इसी वर्ष में 130 करोड़ भारतीयों को ये तय करना है कि जब देश की आज़ादी के 100 साल होंगे तो भारत कैसा होगा और हर क्षेत्र में कहां खड़ा होगा। 75वें साल से 100 साल तक का काल अमृत काल होगा और ये अमृत काल हमारे सभी लक्ष्यों की सिद्धि का माध्यम होगा।
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि हम सब हिन्दी प्रेमियों के लिए भी ये संकल्प का वर्ष रहना चाहिए। जब आज़ादी के सौ साल पूरे हों, तब देश में राजभाषा और हमारी सभी स्थानीय भाषाएं इतनी बुलंद हों कि किसी भी विदेशी भाषा का सहयोग लेने की ज़रूरत ना पड़े। उन्होंने कहा कि ये काम आज़ादी के तुरंत बाद होना चाहिए था, क्योंकि हमारी आज़ादी के आंदोलन के तीन स्तंभ थे – स्वराज, स्वदेशी और स्वभाषा। स्वराज तो मिल गया लेकिन स्वदेशी और स्वभाषा पीछे छूट गए।वर्ष 2014 के बाद प्रधानमंत्री मोदी पहली बार मेक इन इंडिया और अब स्वदेशी की बात करके स्वदेशी को फिर से हमारा लक्ष्य बनाने की दिशा में आगे बढ़े हैं। श्री शाह ने आज़ादी के अमृत महोत्सव में देशभर के लोगों का आह्वान करते हुए कहा कि स्वभाषा के लक्ष्य का हम एक बार फिर स्मरण करें और इसे हमारे जीवन का हिस्सा बनाएं।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि हिन्दी और स्थानीय भाषाओं के बीच विवाद और राजनीति करने के बहुत प्रयास हो रहे हैं और मैं ये कहना चाहता हूं कि हिन्दी और हमारी स्थानीय भाषाओं के बीच कोई अंतर्विरोध नहीं है और हिन्दी सभी स्थानीय भाषाओं की सखी है। उन्होंने कहा कि राजभाषा का विकास तभी हो सकता है जब स्थानीय भाषाओं का विकास होगा, और स्थानीय भाषाएं सतत रूप से तभी विकसित हो सकती हैं जब राजभाषा देशभर में मज़बूत हो। ये दोनों एक दूसरे की पूरक हैं।राजभाषा विभाग का काम है स्थानीय भाषाओं को मज़बूत करना और राजभाषा को मज़बूत करना जनता का लक्ष्य होना चाहिए।
अमित शाह ने कहा कि ये एक आनंद का विषय है जब हमने राजभाषा सम्मेलन को दिल्ली से बाहर आयोजित करने का निर्णय लिया तो पहला सम्मेलन काशी में हो रहा है। विश्व का सबसे पुराना नगर, बाबा विश्वनाथ का धाम है, मां गंगा का सानिध्य है और मां सरस्वती की उपासना करने वालों के लिए काशी हमेशा स्वर्ग रहा है। भाषा और व्याकरण की उपासना करने वालों के लिए काशी हमेशा गंतव्य स्थान रहा है। आज़ादी के अमृत महोत्सव में संकल्प लेने के लिए हम सब यहां हैं कि आज़ादी के अमृत काल में जब सौ वर्ष होंगे तब स्वभाषा का लक्ष्य भी हम पूर्ण करेंगे।
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि काशी एक सांस्कृतिक नदी है और देश के इतिहास को काशी से अलग करके लिख ही नहीं सकते। चाहे रामायण काल हो, महाभारत काल हो, या फिर उसके बाद देश का गौरवमयी इतिहास हो, चाहे आज़ादी का आंदोलन हो, चाहे देश को विकास की दिशा में ले जाने वाले और देश को दुनिया में सबसे सम्मानित स्थान पर पहुंचाने वाले प्रधानमंत्री जी काशी से सांसद हों, काशी को देश के इतिहास से अलग करके हम नहीं देख सकते। जहां तक भाषा का प्रश्न है, तो काशी भाषा का गौमुख है, भाषाओं का उद्भव, भाषाओं का शुद्धिकरण, व्याकरण का शुद्धिकरण और व्याकरण को लोकभोग्य बनाने में काशी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। जो हिन्दी आज हम बोलते और लिखते हैं, उस का जन्म इसी बनारस में हुआ है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र को कौन भूल सकता है। खड़ी बोली का क्रमबद्ध विकास यहीं हुआ है और आज जो समृद्ध भाषा बनकर हिन्दी हमारे सामने है, इसकी पूरी यात्रा हमारे लिए हमेशा प्रेरणास्त्रोत रहेगी।
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि 1893 में आर्य समाज के अंदर एक आंदोलन चला और शाकाहार व पश्चिमी शिक्षा के मुद्दे पर एक बहुत बड़ा मतभेद हुआ। उस वक़्त शिक्षा का माध्यम क्या हो इस पर पहली बार चर्चा हुई। 1868 में पहली बार यहाँ पर कुछ ब्राह्मण विद्वानों ने माँग उठायी थी कि शिक्षा की भाषा हिंदी होनी चाहिए। माँग को तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर ने मान लिया था और नौकरियों में अभिजात्य तरीक़े से उर्दू भाषा को जो प्राथमिकता दी जाती थी उसे चुनौती मिली और हिन्दी को राजभाषा बनाने की दिशा में पहला कदम उसी वर्ष रखा गया। श्री अमित शाह ने कहा कि हिन्दी भाषा के उन्नयन और उसका व्याकरण बनाने की शुरुआत भी 1893 हुई में काशी नागरी प्रचारिणी सभा के साथ हुई। उन्होंने कहा कि हिंदी के उन्नयन, उसका शब्दकोष और व्याकरण का प्रारूप बनाने के उद्देश्य से ही नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना हुई थी। श्री अमित शाह ने कहा कि हिंदी की पढ़ाई और पाठ्यक्रम तैयार करने की चिंता पंडित मदन मोहन मालवीय ने यहीं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में की थी।
केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि हम तुलसीदास को कैसे भूल सकते हैं, अगर उन्होंने अवधी में रामचरितमानस ना लिखा होता तो शायद आज रामायण लुप्त हो गया होता। तुलसीदास ने यहाँ रामायण के अर्थ को आगे बढ़ाने का काम किया और उन्हीं से अवधी और हिंदी की बोलियों को लोकप्रिय बनाने की शुरुआत हुई। श्री शाह ने कहा कि जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, बाबू श्याम सुंदर दास समेत अनेक विद्वानों ने यहीं पर हिंदी को आगे बढ़ाने का काम किया। इसलिए आज़ादी के अमृत महोत्सव में हिंदी को मजबूत करने व घर-घर पहुंचाने, स्वभाषाओं को मजबूत करने और उन्हें राजभाषा के साथ जोड़ने का जो नया अभियान शुरू होने जा रहा है उसके लिए काशी से उचित स्थान कोई और हो नहीं सकता।
श्री अमित शाह ने कहा कि हिंदी भाषा को लेकर विवाद खड़ा करने का प्रयास किया गया, लेकिन अब वह समय समाप्त हो गया है। उन्होंने कहा कि मैं बचपन से देखता था कि अगर अंग्रेजी बोलनी नहीं आती तो बच्चे के मन में एक हीनभावना पैदा हो जाती थी। आज मैं दावे से कहता हूं कि कुछ समय बाद अपनी भाषा में ना बोल सकने पर हीनभावना का अनुभव होगा क्योंकि देश के प्रधानमंत्री जी ने अपनी कृति से गौरव के साथ अपनी भाषाओं को दुनिया और देशभर के अंदर प्रस्थापित करने का काम किया है। उन्होने कहा कि शायद ही कोई प्रधानमंत्री होगा जिनको वैश्विक मंच पर इतना सम्मान मिला होगा जितना श्री नरेंद्र मोदी जी को मिला है। श्री नरेंद्र मोदी जी ने दुनियाभर में भारत की बात अपनी राजभाषा में रखकर राजभाषा के गौरव को बढ़ाया। उन्होंने कहा कि जो देश अपनी भाषा को खो देता है वह कालक्रम में अपनी सभ्यता, संस्कृति और अपने मौलिक चिंतन को भी खो देता है। जो देश अपने मौलिक चिंतन को खो देता है वे दुनिया को आगे बढ़ाने के लिए योगदान नहीं कर सकता। इसलिए हमारी भाषाओं को संभालकर रखना बहुत महत्वपूर्ण है।
श्री शाह ने कहा कि मैं चाहता हूं कि हमारी भाषा चिरंजीव बने और आगे बढ़े क्योंकि भाषा समाज और जीवन को आगे बढ़ाने, संस्कृति के धाराप्रवाह को आगे बढ़ाने और संस्कृति के धाराप्रवाह से उपजे ज्ञान को दुनिया भर में फैलाने का एक बहुत महत्वपूर्ण स्रोत है। श्री अमित शाह ने कहा कि इसीलिए हमारे यहां भाषा में अक्षर शब्द का प्रयोग होता है, जिसका कभी क्षरण नहीं होता उसे अक्षर कहते हैं। महर्षि पाणिनि, महर्षि पतंजलि और महऋषि भर्तृहरि ने भाषाओं के लिए अनेक प्रकार की विधाओं को हमारे देश के अंदर जन्म दिया, आज भी कुछ लोग उन्हें संभाल कर आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मुझे पूरा भरोसा है कि अगर एक बार देश की जनता आजादी के अमृत काल में मन बना ले कि हमारे देश का व्यवहार, बोलचाल, पत्रव्यवहार और शासन स्वभाषा में चलना शुरू हो जाए तो महर्षि पतंजलि और पाणिनी हमें जो देकर गए हैं वह तुरंत पुनर्जीवित हो जाएगा।
केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि इस सम्मेलन के माध्यम से मैं देश भर के अभिभावकों से यह अपील और अनुरोध करता हूँ कि अपने बच्चों के साथ अपनी भाषा में बात करिए। बच्चे चाहे किसी भी माध्यम में पढ़ते हो, घर के अंदर उनसे अपनी भाषा में बात करिए और उनका आत्मविश्वास बढाइए। उसके मन से में अपनी भाषा बोलने के लिए जो झिझक है उसे निकाल दीजिए। उन्होंने कहा कि इससे भाषा का तो भला होगा मगर उससे ज्यादा भला बच्चों का होगा क्योंकि मौलिक चिंतन अपनी भाषा से ही आ सकता है। दूसरी भाषा रटा रटाया ज्ञान तो दे सकती है मगर ज्ञान को अर्जित करना और उसे आगे बढ़ाने की यात्रा मौलिक चिंतन से ही हो सकती है और मौलिक चिंतन स्वभाषा से ही प्राप्त हो सकता है।
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि दुनिया में लगभग 6000 भाषाएं बोली जाती है लेकिन भाषाओं के बारे में हमारे देश पर ईश्वर और मां सरस्वती की कृपा है। उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा बोली जाने वाली और लिपिबद्ध भाषाएं अगर किसी एक देश में है तो वह भारत के अंदर है। हजारों साल का हमारा इतिहास और संस्कृति का धाराप्रवाह इनके अंदर समाहित है, हमें उसे आगे बढ़ाना है। श्री अमित शाह ने कहा कि भाषा जितनी सशक्त और समृद्ध होगी, संस्कृति और सभ्यता उतनी ही विस्तृत, सशक्त और चिरंजीव होगी। अगर हम अपनी संस्कृति को संभाल कर रखना चाहते हैं, इसे आगे ले जाना चाहते हैं तो हमें अपनी भाषाओं को मजबूत करना पड़ेगा। श्री अमित शाह ने कहा कि मैं युवाओं का आह्वान करना चाहता हूँ कि वे अपनी भाषा से जुड़ाव और लगाव तथा अपनी भाषा के उपयोग से कभी भी शर्म न रखें, क्योंकि अपनी भाषा गौरव का विषय है। उन्होंने कहा कि एक ज़माना था जब घबराहट होती थी, लेकिन अब एक ज़माना शुरू हो चुका है जब गौरव की अनुभूति होगी। घबराहट को गौरव में बदलना नरेन्द्र मोदी जी के शासनकाल की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। स्वभाषा ही अभिव्यक्ति को सुनिश्चित करती है, चिंतन को गति देती है और नए परिमाणों की दिशा में सोचने को हमें प्रेरित करती है। स्वभाषा व्यक्ति के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अगर हमें आत्मसम्मान चाहिए तो हमें राजभाषा और स्वभाषा, दोनों को मज़बूत करना होगा।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में बनी नई शिक्षा नीति का एक प्रमुख स्तंभ है राजभाषा और अन्य भारतीय भाषाओं का संरक्षण और संवर्धन। शिक्षा का मूल आधार सोचना और स्मरण करना है और ये स्वभाषा में सबसे अच्छे तरीक़े से होती हैं। अनुसंधान अपनी भाषा में सबसे अच्छा हो सकता है। हमारे देश के पिछड़ने का मूल कारण है कि हमारी पढ़ाई-लिखाई और अनुसंधान के विषय हमारी भाषाओं में नहीं होते थे। लेकिन मोदी जी द्वारा किया गया परिवर्तन आने वाले दिनों में भारत के भविष्य को बदलने वाला परिवर्तन होगा। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र तभी सफल हो सकता है जब प्रशासन की भाषा स्वभाषा और राजभाषा हो। आज गृह मंत्रालय में शत-प्रतिशत काम राजभाषा में होता है और बहुत सारे विभाग भी इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
केंद्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि अमृत काल में हमने कुछ लक्ष्य तय किए हैं कि देश की शिक्षा, प्रशासन, न्याय व्यवस्था, तकनीक की भाषा स्थानीय और राजभाषा हो, जनसंचार और मनोरंजन की भाषा भी स्थानीय और राजभाषा हो। यह लक्ष्य इतने बड़े हैं कि हम आत्मविश्वास के साथ लोगों के सामने रखें तो जनमानस उसको तुरंत स्वीकार कर लेगा। राजभाषा और स्वभाषा के प्रचार के लिए किसी के साथ संघर्ष की जरूरत नहीं है, इसका बढ़ना अब नियति है। हमें उसमें उद्दीपक का काम करना है और इसे आगे ले जाने के लिए वाहक का काम करना है। यह पांच क्षेत्र हैं जहां भाषा को हमें मजबूत करना है उसके लिए मेरा आप सब से आग्रह है कि देश में इस प्रकार के वातावरण का निर्माण करने की दिशा में हम आगे बढ़ें।
श्री अमित शाह ने कहा कि देश की आजादी का इतिहास और देश का इतिहास अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग राज्यों में और राज्यों के इतिहास में है। मेरा सभी से आग्रह है कि इसका राजभाषा में अनुवाद करने की एक मुहिम चलानी चाहिए। गुजरात का इतिहास अगर गुजराती में है तो उत्तर प्रदेश का बच्चा कैसे पढेगा, अगर यह राजभाषा में है तो वो पढ़ पाएगा। ये राष्ट्रीय एकात्मता के निर्माण के लिए ये बहुत जरूरी है कि देश के कोने कोने में बिखरी हुई इतिहास की घटनाओं और इतिहास की पुस्तकों को राजभाषा में अनुवादित किया जाए। हिंदी की स्वीकृति अगर लानी है तो हिंदी को लचीला बनाना पड़ेगा। उदाहरण के लिए, वीर सावरकर हमारे देश में अनेक प्रकार के कामों के लिए जाने जाते हैं और दुनिया भर में उनकी स्वीकृति है, मगर बहुत कम लोग जानते हैं कि वीर सावरकर ने स्वभाषा और राजभाषा के लिए बहुत बड़ा काम किया। उन्होने हिंदी का शब्दकोश बनाया, कई नए शब्दों की रचना कर हिंदी को समृद्ध बनाने का प्रयास, अगर वीर सावरकर जी न होते तो शायद हम अंग्रेजी शब्दों का ही प्रयोग कर रहे होते। श्री शाह ने कहा कि अब समय आ गया है कि हम हिंदी को लचीला बनाएं। राज्यों की भाषा के शब्द आते हैं तो उनसे परहेज न रखें, विदेशी भाषा का शब्द आता है तो परहेज नहीं रखें, उसका बोलने, लिखने और सोचने का माध्यम हिंदी हो जाए। अगर इतना कर लिया तो हिंदी अपना रास्ता अपने आप तय कर लेगी।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि इस सम्मेलन में दो दिन तक जो सत्र होने वाले हैं, उनमें कई सारे विषय हैं। इनमें एक विषय है, भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता और एक है भारतीय भाषाओं का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान। यह दोनों बहुत बड़े विषय हैं और हमें इन्हें लोकभोग्य बना कर जन-जन तक पहुंचाना होगा। हिंदी और राजभाषा को थोपना नहीं है, बल्कि हमारे प्रयासों से इसको सर्व स्वीकृत बनाना है। प्रधानमंत्री मोदी जी के आप जितने भी भाषण सुनते हैं, वह हिंदी में ही होंगे। लेकिन जब तक जनमानस के अंदर अपने अपने राज्य की भाषा और राजभाषा की स्वीकृति का वातावरण हम निर्मित नहीं करेंगे, यह कभी नहीं होगा।
श्री अमित शाह ने कहा कि हमें हिंदी के शब्दकोश को भी समृद्ध करने की जरूरत है और मेरा आप सभी से अनुरोध है कि इसके लिए भी हमें काम करना चाहिए। अब समय आ गया है कि इसे एक नए सिरे से लिखा जाए और कुछ विद्वानों की कमेटी बने। हिंदी के शब्दकोश को मजबूत, विस्तृत करना चाहिए, इसकी सीमाओं को बढ़ाना चाहिए। एक परिपूर्ण संपूर्ण भाषा बनाने के लिए कुछ विद्वानों को काम करना पड़ेगा। नया क्या ला सकते हैं और अगर इस पर नहीं सोचेंगे तो काल अपना काम करेगा और धीरे-धीरे कालबाह्य हो जाएंगे, क्योंकि भाषा तो नदी जैसी है, बहती रहती है।
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्रा ने कहा कि इस दो दिन के सम्मेलन के दौरान कई विषयों पर आज यहां चर्चा की जाएगी। स्वतंत्रता संग्राम और स्वतंत्र भारत में संपर्क की भाषा का एक विषय है, मीडिया में हिंदी का प्रभाव और योगदान एक विषय है, राजभाषा के रूप में हिंदी की विकास यात्रा और योगदान विषय और इसके पूरे इतिहास पर चर्चा होगी। वैश्विक संदर्भ में हिंदी के सामने चुनौतियाँ विषय पर भी चर्चा होगी। भाषा चिंतन की भारतीय परंपरा और संस्कृति के निर्माण में हिंदी की भूमिका पर भी चर्चा होगी और न्यायपालिका में हिंदी के प्रयोग पर भी चर्चा होगी। मैं आशा करता हूं कि दो दिवसीय राजभाषा सम्मेलन बहुत सफल रहेगा और आजादी के अमृत काल में जब हम आजादी की शताब्दी मनाएंगे, उन लोगों को हिंदी के लिए इतना बोलने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 25 साल में इस काम को पूरा करने का लक्ष्य रखकर हम चले हैं और मोदी जी ने जो कल्पना की है आजादी के अमृत काल की, उसमें स्वदेशी और स्वभाषा छूट गए हैं और इन्हें फिर से एक बार चर्चा में लाकर देश का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम बनाना है।