केंद्रीय मंत्री ने कहा भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, द्वारा अनुमोदित और “डायबिटीज इन प्रेग्नेंसी स्टडी ग्रुप इंडिया (डीआईपीएसआई)” द्वारा जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस (जीडीएम) की पहचान के लिए “सिंगल टेस्ट प्रक्रिया” एक किफायती टेस्ट प्रक्रिया है, जो कि समाज के सभी वर्गों की जरूरतों को पूरा करती है
प्रेग्नेंसी स्टडी ग्रुप इंडिया (डीआईपीएसआई 2021) में मधुमेह पर दो दिवसीय 15वें वार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन समारोह को वर्चुअल रूप से संबोधित करते हुए मंत्री ने कहा कि युवा पीढ़ी को इस बीमारी से बचाने के लिए उसका समय पर पता लगाना सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि रोग के पहचान की प्रक्रिया का मानदंड बेहद सरल, व्यवहारिक, किफायती और सबूतों पर आधारित होनी चाहिए तथा इस संबंध में भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, द्वारा अनुमोदित और “डायबिटीज इन प्रेग्नेंसी स्टडी ग्रुप इंडिया (डीआईपीएसआई)” द्वारा जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस (जीडीएम) की पहचान के लिए “सिंगल टेस्ट प्रक्रिया” एक सस्ती टेस्ट प्रक्रिया है, जो कि समाज के सभी वर्गों की जरूरतों को पूरा करती है।
टेस्टिंग की इस प्रक्रिया को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ गायनेकोलॉजिस्ट एंड ओब्स्टेट्रिशियन (एफआईजीओ) और इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (आईडीएफ) द्वारा स्वीकृत किया गया है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने सभी गर्भवती महिलाओं के लिए एंटीनटाल पैकेज के तहत जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस (जीडीएम) की स्क्रीनिंग अनिवार्य कर दिया है। उसने यह फैसला 2014 के राष्ट्रीय दिशानिर्देश के आधार पर लिया है। लेकिन इसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों यानि जमीनी स्तर पर ऑपरेशनल करना अभी भी एक बड़ी चुनौती होगी।
डॉ. सिंह ने कहा कि जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस (जीडीएम) वैश्विक स्तर पर एक तेजी से बढ़ती सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है और सभी आयु समूहों में इसका प्रसार बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि, अकेले भारत में, जीडीएम के सालाना लगभग चार मिलियन मामले गर्भधारण को जटिल बनाते हैं। मंत्री ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह महासंघ (आईडीएफ 2019) ने अनुमान लगाया है कि वैश्विक स्तर पर लगभग 463 मिलियन लोग मधुमेह से प्रभावित हैं। जो कि वर्ष 2040 तक बढ़कर 642 मिलियन को पीड़ित कर सकता है।
साल 2019 में, 20-49 उम्र के आयु वर्ग में गर्भावस्था के दौरान हाइपरग्लेसेमिया (एचआईपी) का वैश्विक स्तर पर प्रसार 20.4 मिलियन या नवजात बच्चों में 15.8 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया था। उन्हें गर्भावस्था में किसी न किसी रूप में हाइपरग्लेसेमिया था, जिनमें से 83.6 प्रतिशत जीडीएम के कारण थे, जो कि एक वैश्विक स्तर की स्वास्थ्य समस्या के रूप में चुनौती बनकर खड़ा हो गया है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जीडीएम या एचआईपी में ग्लाइसेमिक के खराब नियंत्रण होने से एचआईपी से पैदा होने वाली संतानों में मेटाबोलिक सिंड्रोम/एनसीडी के भविष्य में होने का जोखिम रहता है, इसलिए गर्भावस्था के दौरान उत्कृष्ट देखभाल प्रदान करके एनसीडी के बढ़ते बोझ को रोकने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए, जो कि फीटो-मैटरनल स्थिति में किसी तरह के नकारात्मक असर को कम करता है।
इस मौके पर डॉ. जितेंद्र सिंह ने वर्चुअल माध्यम से डीआईपीएसआई 2021 के दिशानिर्देश और डीआईपीएसआई के फाउंडर पैटर्न प्रोफेसर वी शेषैया द्वारा लिखित एक पुस्तक का विमोचन भी किया।