सुभाष चौधरी/मुख्य संपादक
नई दिल्ली। राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने अपने ही खिलाफ धरने पर बैठे विपक्ष के 8 सांसदों को अपने हाथों से चाय पिलाई उनका यह गांधीवादी व्यवहार आज सुबह से ही देश में चर्चा का विषय बना हुआ है अपनी सहृदयता से उन्होंने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर विपक्ष के प्रत्येक नेताओं को अपना मुरीद बना लिया। उन्होंने आज शनिवार को राज्यसभा में उनके साथ यानी उपसभापति के साथ हुए अभद्र व्यवहार और संसदीय परंपराओं को तार तार करने वाले अमर्यादित शब्दों के प्रयोग और राज्यसभा को गुंडागर्दी का अखाड़ा बनाने के खिलाफ 1 दिन का उपवास रखने का एलान किया।
बिहार की धरती जहां से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी वास्तव में गांधी बने और देश में आजादी की लड़ाई को निर्णायक मोड़ देने में सफल हुए उस धरती पर आज भी गांधीवादी लोहिया वादी जयप्रकाश वादी और कर्पूरी ठाकुर वादी व्यक्ति व परंपरा जीवित है इस बात का परिचय राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने आज बखूबी दिया। भारतीय राजनीति में पिछले दो दशकों से भी अधिक समय से ऐसी घटना कम ही देखने को मिलती है जब अपनी आलोचना करने वाले या फिर राजनीतिक रूप से विकृत मानसिकता के तहत नीचा दिखाने वाले अपने विरोधियों से भी सामने वाला व्यक्ति संवाद स्थापित करें या फिर उनके साथ राजनीति सेंटर सामाजिक आचार विचार को जीवित रखे। क्या कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं की लंबे समय बाद संसद के परिसर में आज की वह घटना जिसमें राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश बाबू ने अपने कुकृत्यों को ढकने के लिए धरने पर बैठे 8 सांसदों को अपने हाथों से चाय पिलाई। हरिवंश बाबू यह चाय अपने घर से बनवा कर लाए थे और शांत भाव से एवं आदर के साथ विपक्ष के उन सांसदों को चाय की प्याला पकड़ाई। राजनीतिक मतभेद के बावजूद संवाद कायम रखने और एक दूसरे के प्रति सम्मान का भाव प्रदर्शित करने वाले इस व्यवहार का साक्षी स्वयं महात्मा गांधी की मूर्ति बनी।
उपसभापति ने आदर के साथ तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह सहित सभी सांसदों को अपने पास बैठाया और अपने हाथों से चाय और स्नैक्स के प्लेट और परोसे। हालांकि इस दौरान उनके बारंबार आग्रह के बावजूद तृणमूल नेता डेरेक ओ ब्रायन थोड़ा हिचकते नजर आए और अपने साथ धरने पर बैठे उन सांसदों से कुछ कहते दिखे लेकिन उनके इस व्यवहार का भी उपसभापति पर कोई असर नहीं पड़ा और वह अपनी परंपरा का निर्वहन करते दिखे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके इस व्यवहार की भूरी भूरी प्रशंसा की और उन्होंने इस घटना की फोटो को ट्वीट कर बिहार की धरती को नमन किया वह गांधीवादी परंपरा को जीवित और पोषित करने के लिए आभार जताया। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा है की बिहार ने सदियों से देश को लोकतांत्रिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों की सीख दी है उसी का स्पष्ट नजारा आज एक बार फिर शांतिदूत महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने संसद परिसर में इस देश को देखने को मिला। उन्होंने यह भी लिखा है कि जिस व्यक्ति के साथ अभद्र भाषा का प्रयोग किया गया हो शारीरिक रूप से हमला करने की कुत्सित कोशिश की गई हो यहां तक की जिन्हें धमकाने की कोशिश की गई हो वह व्यक्ति अपने ऐसे विरोधियों को भी गले लगाने की सोच रखता है वास्तव में यह भारतीय राजनीति के लिए सदैव याद रखने वाली रचनात्मक घटना है।
दूसरी तरफ बेहद सधे हुए पत्रकार से राजनीति में प्रवेश करने वाले हरिवंश बाबू ने देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और राज्यसभा के सभापति एवं उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू को संबोधित करते हुए एक खुला पत्र भी लिखा है। उक्त पत्र में राज्यसभा के उपसभापति ने शनिवार को राज्यसभा में उनके साथ हुए कभी नहीं भूलने वाली असंसदीय घटना का पूरा ब्यौरा प्रस्तुत करते हुए अपने मन की व्यथा विस्तार से व्यक्त की है। उन्होंने कहा है कि उक्त अभद्रता और और विपक्ष के सांसदों के अमर्यादित व्यवहार से वे इतने क्षुब्ध हुए हैं कि उस दिन पूरी रात इस घटना को याद कर वह सो नहीं पाए। बल्कि उन्होंने यहां तक कहा है कि जिस ग्रामीण परिवेश से वह संघर्ष कर यहां तक पहुंचे हैं उन्होंने कभी भी महात्मा गांधी जयप्रकाश नारायण राम और लोहिया और कर्पूरी ठाकुर जैसे महान नेताओं के बताए रास्ते से अपने को अलग नहीं किया लेकिन राज्यसभा में उपसभापति के चेयर के साथ जिस प्रकार का व्यवहार किया गया यह किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था या फिर भारत जैसे सांस्कृतिक देश के लिए स्वीकार्य नहीं हो सकता।
हरिवंश बाबू ने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में इस बात का भी उल्लेख किया है की जिस सदन के प्रति देश की जनता के मन में अगाध विश्वास और श्रद्धा है वहां ऐसी घटनाएं पीड़ा पहुंचाने वाली है। उन्होंने याद दिलाया है कि जिस सदन में देश के राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जैसी हस्ती ने दो बार सदस्य के रूप में राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दिया है उनकी जन्मतिथि 23 सितंबर है। इसलिए उन्होंने इस घटना के प्रति पश्चाताप करने को 24 घंटे का उपवास करने का निर्णय लिया है। उन्होंने स्पष्ट किया की वे उपवास के दौरान भी राज्यसभा की कार्यवाही में संसदीय परंपराओं का निर्वहन करने के लिए शामिल होंगे।