सपा के स्टार प्रचारकों की सूचि में मुलायम का नाम नहीं
आजमगढ़ से अखिलेश लड़ेंगे लोकसभा चुनाव
लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर मायावती की पीएम पद दावेदारी को दी चुनौती
सपा परिवार में घमासान होने के आसार
सुभाष चौधरी
नई दिल्ली/लखनऊ। लोकसभा चुनाव के पहले फेज के लिए मतदान की तारीख ज्यों ज्यों नज़दीक आती जा रही है राजनीतिक दलों में उठापटक तेज हो चली है । एक तरफ भाजपा ने अपने वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को चुनावी राजनीति से सदा के लिए किनारे लगा दिया है तो दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी ने भी अपने वरिष्ठतम नेता और संस्थापक मुलायम सिंह यादव को ठंडे बस्ते में डालने का साफ़ संकेत दिया है। खबर है कि समाजवादी पार्टी ने अपनी उम्मीदवारों की नई लिस्ट जारी कर अखिलेश यादव के लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की है जबकि अपने पिता व स्पा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का नाम पार्टी के स्टार प्रचारक की सूचि से काट दिया है. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री उनके बेटे अखिलेश यादव आजमगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे । मुलायम को चुनाव लडवाना और चुनाव प्रचार से दूर रखना सपा परिवार में जारी घमासान का नतीजा है। इससे संकेत जाता है कि सपा प्रमुख अखिलेश को अब या तो अपने पिता जी के करिश्मा पर भरोसा नहीं रहा या फिर उनके स्टैंड को लेकर आशंकित हैं कि उनका बयान कभी उनके लिए परेशानी न पैदा कर दे. जाहिर है आशंका के बादल चुनाव प्रचार के दौरान भी दिखेंगे ।
ध्यान देने वाली बात यह है कि समाजवादी पार्टी की ओर से गत 7 मार्च को जारी की गई अपनी पहली सूची में ही मैनपुरी से पूर्व रक्षा मंत्री एवं पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का नाम शामिल किया गया था। बाद में यह चर्चा भी जोरों पर चली थी कि मैनपुरी में मुलायम सिंह का चुनाव प्रचार करने के लिए उनकी धुर विरोधी रही बसपा प्रमुख मायावती भी मैनपुरी जाएंगी। इस बात को बल तब मिला था जब सपा बसपा के बीच गठबंधन के बाद पिछले दिनों संयुक्त चुनाव प्रचार के लिए रैलियां आयोजित करने की तिथियां सामने आई थी। इसको लेकर सपा के प्रवक्ताओं से जब पूछा गया था तो उन्होंने अप्रत्यक्ष तौर पर संकेत दिया था कि सपा बसपा के संयुक्त उम्मीदवारों में से सभी के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती दोनों ही चुनाव प्रचार के लिए जाएंगे। हालांकि इस पर मुलायम सिंह यादव का कोई बयान नहीं आया लेकिन सपा बसपा के इस निर्णय को राजनीतिक हलके में आश्चर्यजनक घटना के रूप में देखा गया।
इस बात की ना तो किसी कलमकार को और ना ही राजनीतिक विश्लेषकों को भनक थी कि मुलायम सिंह यादव का नाम लोकसभा चुनाव प्रचार के लिए सपा के स्टार प्रचारकों में से डिलीट किया जा सकता है। यह महज संयोग नहीं कि एक तरफ अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान करें और दूसरी तरफ प्रचार के लिए मुलायम सिंह को नहीं माना जाए. सपा की ओर से जारी प्रत्याशियों की सूची में आजमगढ़ से पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और रामपुर लोकसभा क्षेत्र से सपा के प्रमुख सिपहसालार आजम खान के नाम की घोषणा एक साथ की गयी है. आजम खान तो सपा के लिए महत्वपूर्ण हैं लेकिन मुलायम सिंह नहीं. इसके पीछे समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव की सोची समझी रणनीति है । उनका उद्देश्य अब स्पष्ट हो गया है। एक तीर से उन्होंने दो निशाने किये हैं. इस निर्णय से मायावती को खुश करने की कोशिश की गयी जबकि अपने समर्थक मतदाताओं को यह सन्देश देने का भी प्रयास किया कि केवल मायावती ही नहीं अखिलेश भी पीएम पद के दावेदार हैं. लोकसभा चुनाव लड़ने के ऐलान से अखिलेश ने मायावती की पीएम पद की दावेदारी को अप्रत्यक्ष चुनौती दे दी है. बसपा प्रमुख मायावती ने लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया है. अगर बात की जाय मुलायम सिंह की तो यह तय है कि वैचारिक मतभेद के कारण ही सपा संस्थापक उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ समाजवादी नेता को किनारे लगा दिया गया है. कहना न होगा कि यह उत्तर प्रदेश सहित देश के अन्य राज्यों के मतदाताओं एवं राजनीतिक दलों के लिए भी चौकाने वाली घटना है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि मुलायम सिंह यादव के समर्थक आज भी उत्तर प्रदेश में यादव समाज सहित मुस्लिम समुदाय में भी बड़ी संख्या में हैं। खासकर अधिक उम्र वाले लोगों को जिन्होंने मुलायम सिंह के साथ ही अपनी राजनीतिक कहानी लिखनी शुरू की को यह घटना हतप्रभ जरूर करेगी और उनकी प्रतिक्रिया भी चुनावी हलचल में देखने को अवश्य मिलेगी। इसका असर सपा बसपा के चुनावी परफॉर्मेंस पर भी पड़ना तय है। क्योंकि स्वयं को लोकसभा चुनाव प्रचार से अलग रखने के अखिलेश यादव के निर्णय पर अभी मुलायम सिंह यादव का बयान आना भी अभी बाकी है। यह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि समाजवादी पार्टी के इस अप्रत्याशित निर्णय में अगर मुलायम सिंह यादव की भी सहमति है तो यह घटना धीरे से निकल जाएगी लेकिन अगर मुलायम सिंह यादव को विश्वास में लिए बिना यह निर्णय सपा प्रमुख की ओर से लिया गया है तो इस पर उत्तरप्रदेश में राजनीतिक बवाल मचना तय है। इस निर्णय को मुलायम सिंह किस रूप में लेते हैं यह बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा।
उल्लेखनीय है कि कई राजनीतिक विश्लेषक इस घटना को मुलायम सिंह यादव के उस भाषण से जोड़कर देख रहे हैं जिसमें उन्होंने लोकसभा के अंतिम सत्र के अंतिम दिन नरेंद्र मोदी को पुनः देश का प्रधानमंत्री बनने की शुभकामना दी थी और यहां तक कह दिया था कि आप ही दोबारा इस देश के प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं । विपक्ष कमजोर है। पीएम नरेंद्र मोदी जैसा देश में कोई नेता नहीं है. एनडीए के सामने कोई खरा नहीं दिखता है। उन्होंने इसके साथ ही सभी वर्तमान सांसदों को दोबारा से संसद के इसी स्वरूप में विजयी होकर आने की शुभकामना भी दी थी और विपक्ष को तिलमिलाने वाला उन्होंने यह भाषण तब दिया था जब उनकी बगल की सीट पर यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी बैठी हुई थी। उनके इस अचानक दिए गए भाषण से सोनिया गांधी भौंचक रह गई थी और विपक्ष में बैठे सांसदों को भी तब सांप सूंघ गया था।
इस बात की चर्चा संसद के बाहर जोरो से होने लगी थी और क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी स्वयं संसद में मौजूद थे और उन्होंने धन्यवाद की मुद्रा में मुलायम सिंह को इस शुभकामना के प्रति कृतज्ञता भी जाहिर की थी। सत्ता पक्ष ने मुलायम सिंह के इस बयान पर खूब तालियाँ बजाई थी. मुलायम सिंह के इस बयान पर विपक्ष की ओर से खास प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली थी. लगता है अब विवाद कुछ ज्यादा ही गहरा गया है अन्यथा पहली सूची में उनका नाम मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी के रूप में जारी करने के बाद अब लगभग अंतिम दौर में उनके नाम को सपा के स्टार प्रचारकों की सूचि से हटा देना मुलायम सिंह जैसे राजनेता के लिए किसी भी रूप में गंवारा नहीं हो सकता। यह निर्णय संकेत देता है कि समाजवादी पार्टी के अंदर सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है । मजे की बात यह है कि उनको रिप्लेस करने के लिए उनके बेटे अखिलेश यादव को लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए आजमगढ़ से उतारा गया है और पार्टी के चुनाव प्रचार की कमान वे स्वयं संभालेंगे.
कहा यह जा रहा है कि मुलायम सिंह यादव इस बात को लेकर नाखुश थे कि अखिलेश यादव ने विना उनको विश्वास में लिए बहुजन समाजवादी पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन किया। इस गठबंधन के सामने आने के बाद ही मुलायम सिंह ने अपनी प्रतिक्रिया इस गठबंधन के खिलाफ जाहिर की थी । हालांकि उन्होंने 2014 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी के साथ सपा का तालमेल करने का भी विरोध किया था लेकिन इस बार बसपा के साथ गठबंधन का विरोध करना इस बात को दर्शाता है कि मुलायम सिंह यादव आज भी बसपा प्रमुख मायावती के साथ राजनीति करने में स्वयं को असहज महसूस करते हैं। दूसरी तरफ यह जगजाहिर है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से मुलायम सिंह यादव का उनसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तालमेल बना रहा है। पिछले 5 वर्षों में उन्होंने पीएम मोदी की खुलकर कभी आलोचना नहीं की और अपने बेटे अखिलेश यादव को कोसने की प्रक्रिया जारी रखी। जब भी उन्हें किसी सार्वजनिक मंच पर मौका मिला उन्होंने अखिलेश यादव एंड कंपनी को निशाना बनाया और अपने चहेते भाई व अखिलेश के विरोधी शिवपाल यादव की हमेशा सराहना की।
इसके अलावा शिवपाल यादव से मुलायम सिंह यादव का तालमेल बेहतर बना रहा है। यहां तक कि अपने छोटे भाई द्वारा गठित नए राजनीतिक दल के मंच पर भी उन्हें आशीर्वाद देने वह स्वयं पहुंचे । संभव है अखिलेश यादव और उनके चहेते चाचा प्रोफेसर रामगोपाल यादव को उनके अब तक के हाव-भाव पसंद नहीं आ रहे हो और चुनाव के दौरान उनके इस प्रकार के पुनः बयान जारी करने या अलग राग अलापने की आशंका के मद्देनजर सपा ने अपना सख्त निर्णय ले लिया। कारण जो भी हो, अखिलेश यादव ने एक तरह से मुलायम सिंह यादव को सक्रिय राजनीति से जबरन रिटायर करने का फरमान सुना दिया है। इसकी हनक उत्तर प्रदेश की राजनीति में देखने को अवश्य मिलेगी। संभव है चुनावी परिणाम पर भी इसका असर दिखे। क्योंकि भाजपा इस स्थिति का फायदा उठाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी । हालांकि प्रधानमंत्री मोदी भी मुलायम सिंह यादव की प्रशंसा गाहे-बगाहे करते रहे हैं और अब सपा के इस निर्णय के बाद तो और खुलकर हमला करेंगे।
पिता पुत्र के बीच इस तनातनी को भाजपा खूब भुनायेगी और उनके साथ अन्याय करने की बात कर लोगों को भावनात्मक रूप से उद्वेलित करने का तानाबाना भी बुना जा सकता है। भाजपा यह तर्क देगी कि एल के आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को तो पार्टी ने विश्वास में लेकर प्रत्याशी नहीं बनाने का निर्णय लिया था लेकिन सपा ने तो मुलायम को पूछा भी नहीं और ठन्डे बस्ते में डालने का कदम उठा लिया. राजनीति में कब कौन सा तर्क चल जाये कुछ नहीं कहा जा सकता।