सीबीआई में बदलाव पर सरकार और विपक्ष के बीच मचा घमासान !

Font Size

सुभाष चौधरी 

नई दिल्ली : सीवीसी के निर्देशन पर सीबीआई में दो बड़े अधिकारियों को हटाए जाने और नये निदेशक की नियुक्ति के मसले पर देश में घमासान मच गया है. एक तरफ देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सरकार के इस फैसले का बचाव किया है जबकि समूचा विपक्ष इसे असंवैधानिक करार देते हुए नरेन्द्र मोदी सरकार पर हमलावर हो गया है. सीबीआई में हुए उथल-पुथल के बीच केंद्रीय वित्त मंत्री ने बुधवार को कहा कि जांच एजेंसी की संस्थागत विश्वसनीयता एवं ईमानदारी को कायम रखने के लिए सरकार ने यह अंतरिम व्यवस्था की है जबकि दूसरी तरफ कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनुसिंघवी ने इसे नियमों का खुला उल्लंघन कहते हुए दोषी अधिकारियों को बचाने की कोशिश करार दिया है जबकि दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने राफेल घोटाले के तार इससे जुड़ने की आशंका व्यक्त की . 

आज एक प्रेस वार्ता के दौरान केन्द्रीय वित्त मंत्री ने अरुण जेटली ने कहा कि केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी का ‘मखौल’ न बनने पाए। वित्त मंत्री ने कहा कि सीबीआई के दो आला अधिकारियों ने एक-दूसरे पर जो आरोप लगाए हैं उसकी जांच एक एसआईटी करेगी।

वित्त मंत्री ने बल देते हुए कहा कि , ‘सीबीआई एक प्रमुख जांच एजेंसी है और देश की जनता की नजरों में इसकी संस्थागत विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए पूर्व शर्त यह है कि जांच निष्पक्ष तरीके से हो। उन्होंने तर्क दिया कि सीबीआई के निदेशक ने स्पेशल डायरेक्टर पर आरोप लगाए हैं। स्पेशल डायरेक्टर ने सीबीआई के निदेशक पर आरोप लगाए हैं। सीबीआई के दो शीर्ष अफसरों पर आरोप लगे हैं। सवाल है कि इसकी जांच कौन करेगा ? इस मामले की जांच में निष्पक्षता की जरूरत है। सरकार इस मामले की जांच नहीं कर सकती।’ उन्होंने कहा कि सीवीसी इस संस्था को सुपरवाइज़ करती है.

वित्त मंत्री ने कहा कि सीबीआई की जांच से संबंधित अधिकार केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के पास है। सीबीआई में भ्रष्टाचार के मामले की जांच का अधिकार सीवीसी के पास होता है। उन्होंने कहा कि जांच निष्पक्ष तरीके से हो रहा है या नहीं इसकी निगरानी का अधिकार भी केवल सीवीसी के पास है। दोनों अधिकारियों पर जो आरोप लगे हैं कि उससे संबंधित दस्तावेज सीवीसी के पास हैं।

वित्त मंत्री ने कहा कि ‘सीवीसी ने दोनों अधिकारियों पर लगे आरोपों की जांच एसआईटी से कराने की सिफारिश की है। साथ ही सीवीसी ने कहा है कि दोनों अधिकारी इस एसआईटी के प्रभारी नहीं होंगे और न ही उनकी निगरानी में जांच हो सकती है।’ वित्त मंत्री ने कहा कि जांच पूरी होने तक दोनों अधिकारी सिस्टम से बाहर रहेंगे और जांच में दोषमुक्त होने पर ही उनकी वापसी हो सकेगी। इसलिए जांच होने तक सीबीआइ के निदेश आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेजना जरूरी था.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी मोदी सरकार पर हमला बोला और इस मामले को राफेल सौदे से जोड़कर देखा. राहुल गांधी ने कहा कि सीबीआई चीफ आलोक वर्मा राफेल से जुड़े कागजात इकट्ठा कर रहे थे, इसी वजह से प्रधानमंत्री ने उन्हें छुट्टी पर भेज दिया है.

दूसरी तरफ कांग्रेस के प्रवक्ता व सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रधान मंत्री नरेन्द्र पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि पीएम ने संवैधानिक प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हुए सीबी आई में बदलाव के कदम उठाये हैं जो इस संस्था को बर्बाद करने की कोशिश है. उन्होंने आशंका जताई कि यह बदलाव भाजपा सरकार के काले कारनामे को ढकने की एक कोशिश है जिमें कथित राफेल घोटाला भी शामिल है.

अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि गैरकानूनी और न्याय विरुद्ध तरीके से मोदी सरकार की ओर से देश की संस्थाओं को आइसीयू में धकेल दिया जा रहा है. प्रधानमंत्री को ‘रफेलोफोबिया’ हो गया है.राफेल घोटाले की पोल खुलने से डरे हुए बीजेपी नेताओं ने गुजरात मॉडल केंद्र में थोप दिया है. CBI को कहीं का नहीं छोड़ा.जिस तरह CBI डाइरेक्टर को हटाया गया है वो गैर कानूनी और असंवैधानिक है.

कांग्रेस प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि CBI डायरेक्टर को हटा कर सरकार ने उच्चतम न्यायालय को नकार दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्र CBI की जरूरत बताई है. उन्होंने नियमों का हवाला देते ही बताया कि सी बी आई एक्ट में स्पष्ट है कि डायरेक्टर का कार्यकाल दो वर्षों का होगा. उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार अभियुक्त के समर्थन में खड़ी है जबकि अभियोजक को हटा दिया है. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि प्रधानमंत्री मोदी सीधा सीबीआई के अधिकारियों को बुलाते हैं और एक फौजदारी मामले में सीढे दखल दे रहे हैं.

इस मामले पर दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने एक ट्वीट कर कहा कि ‘क्या राफेल डील और आलोक वर्मा को हटाने के बीच कोई संबंध है? क्या आलोक वर्मा राफले में जांच शुरू करने जा रहे थे, जो मोदी जी के लिए समस्या बन सकती थी?   

माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने आलोक वर्मा को पद से ‘हटाए’ जाने को ‘गैरकानूनी’ करार दिया। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा चुने गए अधिकारी पर लगे गंभीर आरोप के बाद उसे जांच से बचाने के लिए ऐसा किया गया है। इससे, विशेष निदेशक के शीर्ष भाजपा नेतृत्व के साथ सीधे संबंध को बचाने के लिए गंभीर कवरअप का संकेत मिलता है।

आलोक वर्मा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के आदेश को चुनौती देने वाले सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने आशंका व्यक्त की कि शायद राफेल की जांच से बचने के लिए मोदी सरकार ने आलोक वर्मा को हटाया है. उन्होंने कहा कि ‘सीबीआई डायरेक्टर को गलत तरीके से हटाया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने तय किया था कि सीबीआई डायरेक्टर का टर्म दो साल का फिक्स होगा और सिर्फ सेलेक्शन कमेटी ही सीबीआई डायरेक्टर को हटा सकता है. उन्होंने जानकारी दी कि वे शुक्रवार को एक याचिका दायर करेंगे. श्री भूषण ने कहा कि ‘राफेल डील की जांच सीबीआई नहीं कर सके, इसलिए शायद सीबीआई डायरेक्टर को हटाया गया है.

बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने बयान में कहा कि सीबीआई में विभिन्न प्रकार के हस्तक्षेपों के चलते पहले भी काफी कुछ गलत होता रहा है। अब इस एजेंसी में जो भी उठापटक हो रही है, वह देश के लिए बहुत बड़ी चिन्ता की बात है। उन्होंने कहा कि सीबीआई में इस उठापटक के लिये अफसरों से कहीं ज्यादा केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ज़िम्मेदार है, क्योंकि उसकी द्वेषपूर्ण, जातिवादी तथा साम्प्रदायिकता पर आधारित नीतियों और कार्यों ने सीबीआई ही नहीं, बल्कि हर उच्च सरकारी, संवैधानिक तथा स्वायत्त संस्था को संकट और तनाव में डाल रखा है।

 

यह खबर भी पढ़ें : सीबीआई के निदेशक और विशेष निदेशक हटाए गए , नागेश्वर राव नए निदेशक नियुक्त

सीबीआई के निदेशक और विशेष निदेशक हटाए गए , नागेश्वर राव नए निदेशक नियुक्त

You cannot copy content of this page