गेट व नेट परीक्षा में भू-स्थानिक भी विषय के रूप में शामिल

Font Size

नई दिल्ली : सीएसआईआर प्रयोगशालाओं में जेआरएफ के लिए आईआईटी, एनआईटी और अभियांत्रिकी में स्नातक अभिक्षमता परीक्षा (गेट) सहित भारतीय विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में जूनियर रिसर्च फेलोशिप (जेआरएफ) और लेक्चरशिप के लिए लोकप्रिय राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (एनईटी) के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाले छात्र अब एक विषय के रूप में भू-स्थानिक का विकल्प चुन सकते हैं।

अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) ने इसरो के पूर्व अध्यक्ष डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भू-स्थानिक कार्य बल रिपोर्ट 2013 की अनुशंसा पर गेट और नेट परीक्षा में भू-स्थानिक विषय को शामिल करने की स्वीकृति दे दी है।

एक संगठन के रूप में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) और कई पेशेवरों ने विभिन्न मंचों पर विशेष रूप से गेट और नेट परीक्षा में भू-स्थानिक विषय को शामिल करने की आवश्यकता का उल्लेख किया है।

दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के भू-सूचना केन्द्र के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के भू-स्थानिक अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. के.सी. तिवारी (सेवानिवृत्त कर्नल) ने गेट और नेट परीक्षा में भू-स्थानिक विषय को शामिल करने के लिए अथक प्रयास किए और यह निर्णय डीएसटी की लगन और उनके कठिन परिश्रम का एक परिणाम है।

इससे बड़ी संख्या भू-स्थानिक को विभिन्न स्तरों पर एक विषय के रूप लेन वाले छात्रों को लाभ मिलेगा साथ ही देश में भू-स्थानिक पारिस्थितिकी तंत्र के विकास में मदद भी मिलेगी।

डीएसटी के अंतर्गत प्राकृतिक संसाधन डेटा प्रबंधन प्रणाली (एनआरडीएमएस) एक अंतःविषय अनुसंधान कार्यक्रम है जिसने भू-स्थानिक विज्ञान, प्रौद्योगिकी के उभरते क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहन दिया है और क्षेत्र-विशिष्ट समस्याओं के समाधान के लिए इसके अनुप्रयोगों को बढ़ावा भी दिया है। वर्षों से, इसने अग्रणी रूप से राज्य, जिला और स्थानीय स्तर पर भू-स्थानिक डेटा और सूचना प्रबंधन के लिए निर्णय लेने और विकसित क्षमता में भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों की उपयोगिताओं का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है।

अब, यह शासन के सभी स्तरों पर सतत समाजशास्त्र-आर्थिक विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और राष्ट्रीय भू-स्थानिक पारिस्थितिकी तंत्र, भू-स्थानिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी समाधान, क्षमता निर्माण एवं उद्यमशीलता को उत्प्रेरणा देने के लिए राष्ट्रीय भू-स्थानिक कार्यक्रम के रूप में विकसित हो रहा है और भू-स्थानिक विषय को विभिन्न स्तरों पर शामिल करने पर जोर भी दे रहा है।

डीएसटी के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा कि भू-स्थानिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी एक तेजी से विकसित होने वाला एक विषय है जो सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में अभूतपूर्व अवसरों के साथ नियोजन, विकास और शासन गतिविधियों का महत्वपूर्ण आधार है। प्रधानमंत्री द्वारा हाल ही में शुभारंभ की गई योजना स्वमित्व, ड्रोन और नवीनतम सर्वेक्षण विधियों का उपयोग करके ग्रामीण आबादियों की भूमियों का नक्शा बनाने के लिए एक अच्छा उदाहरण है। यह योजना अन्य बातों के साथ न सिर्फ नियोजन, राजस्व संग्रहण और संपत्ति के अधिकारों को सुव्यवस्थित करेगी बल्कि उत्तराधिकारियों द्वारा ऋण हासिल करने और संपत्तियों से संबंधित विवाद का समाधान करने की दिशा में भी बेहद सकारात्मक प्रभाव डालेगी।

You cannot copy content of this page