अरुणाचल हिमालय के अध्ययन से ऊपरी परत की गहराई में भूकंप पैदा होने का पता चला

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नई दिल्ली। हिमालय का उद्भव और विकास एक सतत प्रक्रिया है, जो मुख्य रूप से रिवर्स फाल्ट के परिणामस्वरूप होती है। इसमें फाल्ट प्लेन की निचली सतह की चट्टानें, ऊपरी सतह पर अपेक्षाकृत स्थिर चट्टानों के नीचे जाती हैं। यूरेशियन प्लेट के नीचे इंडियन प्लेट के जाने की इस प्रक्रिया को अंडरथ्रस्टइंग (एक प्लेट के नीचे दूसरे प्लेट का घुसना) कहा जाता है। यह प्रक्रिया प्रवाह (ड्रेनेज) पैटर्न और भू-संरचना में निरंतर परिवर्तन करती रहती है, जो हिमालय तथा इसके आसपास के क्षेत्रों में भारी भूकंपीय खतरा पैदा करने का मुख्य कारण है। निर्माण कार्यों के शुरू होने से पहले, गहराई, तीव्रता और कारण के संदर्भ में भूकंप के आकलन और विवरण की आवश्यकता पड़ती है।

     ट्युटिंग-टिडिंग सुतर ज़ोन (टीटीएसजेड) पूर्वी हिमालय का एक प्रमुख हिस्सा है, जहाँ हिमालय दक्षिण की ओर मुड़ता है और इंडो-बर्मा रेंज से जुड़ जाता है। अरुणाचल हिमालय का यह हिस्सा हाल के दिनों में सड़कों और पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण की बढ़ती आवश्यकता के कारण महत्वपूर्ण हो गया है। इस कारण इस क्षेत्र में भूकंप के पैटर्न को समझने की आवश्यकता है।

     विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के स्वायत्त संस्थान वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्‍यूआईएचजी) ने भारत के इस सबसे पूर्वी हिस्से में चट्टानों और भूकंपीयता के लोचदार गुणों का अध्ययन किया है। इससे पता चला है कि यह क्षेत्र दो अलग-अलग गहराई पर मध्यम स्तर का भूकंप पैदा कर रहा है। निम्न स्तर के भूकंप 1-15 किमी की गहराई पर केंद्रित होते हैं और 4.0 से अधिक तीव्रता वाले भूकंप ज्यादातर 25-35 किमी गहराई से उत्पन्न होते हैं। मध्यवर्ती गहराई भूकंप सम्भावना से रहित है और द्रव/आंशिक पिघले हुए पदार्थ के समान है।

     इस क्षेत्र में भूमि की ऊपरी परत की मोटाई ब्रह्मपुत्र घाटी के नीचे 46.7 किमी से लेकर अरुणाचल के ऊंचाई वाले क्षेत्र के नीचे लगभग 55 किमी है, यह संपर्क के स्थान पर थोडा ऊंचा है, जो ऊपरी परत और मेंटल के बीच की सीमा को परिभाषित करता है, जिसे तकनीकी रूप से मोहो डिस्कॉन्टिनूइटी कहा जाता है।

     इससे ट्यूलिंग-टिडिंग सुतर ज़ोन में इंडियन प्लेट के अंडरथ्रस्टइंग तंत्र का पता चलता है। अत्यधिक उच्च पॉइसन का अनुपात लोहित घाटी के उच्च भागों में भी पाया गया, जो भूमि के ऊपरी परत की गहराई पर द्रव या आंशिक पिघले हुए पदार्थ की उपस्थिति को दर्शाता है। इस क्षेत्र में भूकंप-आवृति का यह विस्तृत मूल्यांकन भविष्य में इस क्षेत्र में किसी भी बड़े पैमाने पर निर्माण की योजना बनाने के लिए सहायक होगा।

     डॉ. देवजीत हजारिका के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम ने भारत के इस सबसे पूर्वी हिस्से में चट्टानों और भूकंपीयता के लोचदार गुणों को समझने के लिए अरुणाचल हिमालय की लोहित नदी घाटी के किनारे 11 ब्रॉडबैंड भूकंपीय स्टेशन स्थापित किए। यह अध्ययन जर्नलऑफ़एशियनअर्थसाइंसेज में प्रकाशित हुआ है।

     वर्तमान अध्ययन में, डब्ल्‍यूआईएचजी की टीम ने दोनों टेलिसिज़्मिक (भूकंप जो माप स्थल से 1000 किमी से अधिक दूरी पर होते हैं) और स्थानीय भूकंप डेटा का उपयोग किया। इसके लिए 0.004-35 हर्ट्ज की आवृत्ति रेंज वाले सीस्मोमीटर की मदद ली गयी। 20 नमूना प्रति सेकंड की दर से लगातार डेटा दर्ज किये गए और समय के तालमेल के लिए ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) रिसीवर का उपयोग किया गया। जनवरी 2007-जून 2008 के दौरान टेलिसिज़्मिक और स्थानीय भूकंप के आंकड़ों का अध्ययन करने से देश के इस सबसे पूर्वी हिस्से में अंडरथ्रस्टइंग को समझाने में मदद मिली है और यह न केवल योजना निर्माण में मदद कर सकता है बल्कि इससे क्षेत्र में भूकंप के लिए तैयारी में भी सुधार लाया जा सकता है।

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